यह फूल छाप कोंग्रेसी है ,,यह कोंग्रेस में रहकर ,भाजपा की मुखबीरी ,भाजपा
की एजेंटगिरि कर रहे है ,इन लोगों का कांग्रेस के संविधान ,कांग्रेस की
विचारधारा ,सिद्धांतों से कोई लेना देना नहीं ,कम से कम नामज़द लोगों की
हज़ारो लिखित शिकायते ,लेकिन खामोशी थी ,आज पता चल रहा है कोन कोन फूल छाप
कोंग्रेसी है ,विधायक ,,सांसद ,,,खुद संजय सिंह ,खुद पूर्व कांग्रेस
प्रवक्ता ,,कई सदस्य ,भाजपा के पावर में आते ही अब अपनी जगह पर चले गए
,,भाजपा का तो कांग्रेसीकरण हो गया ,,लेकिन देश की सियासत के लिए यह
बेहतर नहीं है ,,जब कांग्रेस पावर में थी तब यह लोग कांग्रेस में ,अब
भाजपा पॉवर में है तो यह लोग भाजपा में ,,फूल छाप कोंग्रेसी जहाँ के थे
वहां गए तो सही ,लेकिन यह ,भाजपा ,देश की जनता ,उनके मुद्दे ,,देश के क़ानून
के कभी सगे नहीं हो सकते ,क्या गारंटी है के यह ओपोर्चुनिस्ट लोग
कांग्रेस के पॉवर में आने के बाद तोबा करके फिर से कांग्रेस में नहीं आएंगे
,क्या गारंटी है के यह लोग देश के लिए काम कर रहे है , क्या गारंटी है के
यह लोग आम जनता की सेवाभावी के लिए जवाबदार है ,उनके हक़ संघर्ष के लिए
ज़िम्मेदार है ,,भाजपा का तो क्या ,,कांग्रेस के कचरे ,कांग्रेस के गद्दारों
को अपने में शामिल कर रही ,है गद ,गद है ,, लेकिन दूसरे अल्फ़ाज़ों में अगर
कहा जाए तो कांग्रेस और दूसरी क्षेत्रीय पार्टियों के गद्दारों का एक
समूह बना है ,जिसे भाजपा ने ताक़त भी दी है ,, आज कांग्रेस के तलवे चाटने
वाले लोग भाजपा में ,सांसद ,,विधायक ,मंत्री ,महत्वपूर्ण पदों पर है ,तो
जनाब भाजपा का तो कांग्रेसीकरण हो गया ,कांग्रेस मुक्त भारत का सपना देखने
वाले नरेंद्र मोदी की भाजपा अब कांग्रेस युक्त है ,,,,,,,वर्तमान में
राज्यसभा में ट्रिपल तलाक़ बिल पर तो प्रतिपक्ष की फूलछापी की हद ही हो गयी
,बहुमत में विपक्ष ,एक जुट विपक्ष ,लेकिन अचानक एक मौक़ापरस्त सियासी
शख्सियत कांग्रेस की वफादारी को धता बताकर भाजपा में दो में से एक पत्नी
सहित शामिल होने की बात कहते है ,ऍन वक़्त पर गद्दारी ,दूसरों का बाइकाट ,
बाइकाट इसलिए क्योंकि अब लोकसभा ,विधानसभा ,राज्यसभा ,विधानपरिषद में
,अनुपस्थित रहने पर भी फीलगुड मिलता है ,मक़सद पूरा होता है ,,यह बेईमानी
,,ये ,लूट ,यह सिद्धान्तविहीनता ,,इस देश के लिए घातक ,,है ,सांसद
,विधायकों की खरीद फरोख्त ,इनकी उपस्थिति हर हाल में सुनिश्चित करने की
ज़रूरत को लेकर ,ऐसे उलंग्घन पर इनकी सदस्य्ता खुद ब खुद खत्म होने पर किसी
भी सियासी पार्टी ने अब तक कोई क़ानून बनाने की हिम्म्मत नहीं की है
,क्योंकि सियासत में सिद्धांतों की कोई क़ीमत अब नज़र नहीं आती सिर्फ किराए
के लोगों के साथ अपनी कुनबापरस्ती बढ़ाना ,अपना काम निकालना , ही एक मात्र
इस लोकतंत्र का लक्ष्य साबित करने की होड़ लग गयी है ,,देश हम लोग इन
हालातों में हमारे प्रतिनिधियों ,निर्वाचित लोगों के इस आचरण से कहाँ ले जा
रहे है ,,खुद दिल पर हाथ रख कर सोचने की बात है ,,,,,,,अख्तर खान अकेला
कोटा राजस्थान
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