आपका-अख्तर खान

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10 जून 2019

यह भेड़िये ,यह अपराधी सभी तरफ भरे पढ़े है

बेबस ,मासूम ,लाचार ,आसिफा ,अपराधियों की घिनौनी करतूत ,,फिर भी एक समूह ,कुछ ठेकेदार ,,,कुछ ज़िम्मेदार सड़को पर आये ,बचाव किया ,अफ़सोस हमारे अपने विचारधारा से जुड़े लोग भी उस विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए ,लेकिन हुआ वही जो मंज़ूर ऐ खुदा हुआ ,इन्साफ हुआ ,इंसाफ हुआ ,वोह बात अलग है ,साक्ष्य से छेड़छाड़ होने पर मुक़दमे को रेयर टू रेयरेस्ट साबित नहीं हो पाने से अभियुक्तों को सिर्फ और सिर्फ उम्र क़ैद की सज़ा ,पांच साल की सजा हो पायी है ,खेर अभियुक्तों पास अभी हाईकोर्ट का दरवाज़ा ,सुप्रीमकोर्ट का अधिकार है ,तो फरियादी की तरफ से भी मानवता की ,इन्साफ की बात करने वाले समूह के ज़िम्मेदार लोगो की ज़िम्मेदारी है ,,,में बात कर रहा हूँ कठुआ ,जम्मू के घिनोने काण्ड की ,में किसी स्थल ,,किसी समूह को टारगेट नहीं कर रहा ,क्योंकि सभी जानते है ,यह भेड़िये ,यह अपराधी सभी तरफ भरे पढ़े है ,बस हम इन्हे कभी अपना होने पर प्रोटेक्ट करते है ,तो कभी पराया होने पर चिल पो कर खुद को मसीहा ,इंसाफ का फरिश्ता साबित करने की कोशिश करते है ,सोशल मीडिया ,मीडिया ,समाज के सभी वर्ग में ऐसी घटनाओं की टी आर पी बढ़ाने ,माइलेज लेने के लिए सभी अपनी अपनी तरह से माहौल बनाते है ,बढ़ी शर्मिंदगी की बात है ,,,अपराधी सिर्फ अपराधी होता है ,किसी मासूम की हत्या को धार्मिक रूप देकर वातावरण बनाना गलत बात है ,,अपराधी को कैसे सजा मिले ,वोह कैसे पकड़ा जाए ,त्वरित न्याय कैसे हो इस पर हमे विचार करना होगा ,कठुआ मामला एक मिसाल है ,सभी इस घृणास्पद घटना का सच जानते ,है ,सरकार किनके हाथों में थी ,सिस्टम किन लोगों के पास था ,घटना को झूंठ क़रार देकर ,अपराधियों की मदद के लिए किस तरह के लोग समूहबद्ध होकर आये ,देश ने देखा है ,,,लेकिन अब हमे बदलना होगा ,सुधरना होगा ,ऐसी घटनाओं पर सियासत ,,धार्मिक ,सामाजिक विवादों से अलग हठ कर इन्साफ की बात करना होगी ,,अपराधी को सजा कैसे मिले इसके लिए जुगत लगाना होगी ,ताकि देश में अमन सुकून हो सके ,बेटियां हिफाज़त से रह सके ,,,आपके भी बेटियां है ,बहने है ,मेरे भी बेटियां ,बहने है ,इनकी अस्मत का कोई धर्म ,मज़हब ,कोई पार्टी ,कोई सियासत नहीं होती ,यह सिर्फ अस्मत होती है ,जिसकी सुरक्षा की पैरोकार मुझे आपको ,गैर सियासी होकर ,,गैर धार्मिक होकर ,सिर्फ एक भाई ,एक पिता बनकर सोचना होगा ,तुम्हे बदलना होगा ,मुझे बदलना होगा ,हमें सब को बदलना होगा ,और जो ऐसे हालातों में भी खुद को नहीं बदलता ,,खुद को मज़हबी उन्माद ,सियासी उन्माद ,वोटों की सियासत ,नफरत बाज़ों की सियासत से ऐसी घटनाओं को जोड़कर ,ताने तिश्ने करता है ,,घटना पर आंसू बहाने की जगह उसका धरने ,प्रदर्शन ,विरोध ,नफरत का माहौल बनाकर सियासी गणित का जुगाड़ करता हो ऐसे लोगों को हमे बेनक़ाब करना होगा ,ताक़त के बल पर ऐसे लोगों का स्टिंग कर उन्हें जनता के सामने सरे बाज़ार शर्मिंदा करना होगा ,,शायद कुछ नहीं बहुत ,से भी बहुत ज़्यादा बदलाव आ जाये ,घटना अलवर की हो ,घटना अलीगढ़ की हो ,इंदौर की हो ,बिहार की हो ,उत्तरप्रदेश की हो ,केरल की हो कहीं की भी हो घटना है ,ऐसी घटनाओं में शामिल लोगों को कठोर से कठोर सजा मिलना चाहिए ,,कठुआ मामले में आसिफा के इन्साफ के साथ कोन था ,कोन है वोह जो क़ातिलों को बचाने के लिए बाहुबली से लेकर ताक़त से लेकर सिस्टम से लेकर हर तरह का दुरूपयोग कर उन्हें बचाना चाहता था ,लेकिन कहते ,है न जिसका कोई नहीं उसका तो खुदा है यारों ,,आसिफा कठुआ मामले में उसे भी इंसाफ मिला ,भारत के इतिहास के पन्नों में प्रभावित न्याय को बचाने के लिए सुप्रीमकोर्ट के निर्देशों पर यह एक ऐतिहासिक फैसला है ,,प्रकरण जम्मू क्षेत्राधिकार का लेकिन हालात ही कुछ ऐसे बने ,सय्या भय कोतवाल होने लगे ,तो सुप्रीमकोर्ट ने इस सच को महसूस किया और निष्पक्ष सुनवाई ,निष्पक्ष इन्साफ के लिए पुलिस ने जो कार्यवाही की सी बी आई ने जैसी भी कार्यवाही की ,उस पुरे मामले की निष्पक्ष सुनवाई के लिए मुक़दमे को जम्मू के क्षेत्राधिकार से हटाकर पंजाब के पठानकोट को सुनवाई के निर्देश दिए ,,में यह नहीं कहता के जम्मू में सुनवाई होती तो इस मुक़दमे का क्या हश्र होता ,लेकिन यह पूंछता हूँ के आखिर एक मासूम बिटिया की हत्या ,बलात्कार ,सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद इस समाज में जहाँ बेटी पढ़ाओ ,बेटी बचाओं का हर सरकार का ,हर समाज का ,,हर धर्म का मुख्य नारा ,है ,वहां इन्साफ की इस जंग में सुप्रीमकोर्ट को हालातों का जायज़ा लेकर निष्पक्ष सुनवाई के लिए अपना वीटो अधिकार क्यों किन परिस्थितयों के कारण इस्तेमाल करना पढ़ा ,घटना की तफ्तीश की मॉनिटरिंग ,,घटना की सुनवाई क्षेत्राधिकार से बदल कर ,,स्टेट बदल कर दूसरे राज्य की अदालत को देना पढ़ा ,खेर इंसाफ हुआ ,लेकिन आसिफा के इंसाफ के इस सफर ने कई शर्मिन्दगियां ,,कई पेचीदगियां ,कई क़ानूनी हक़ हुक़ूक़ की लड़ाई ,कई अनुसंधान की मजबूरियां ,,आखरी इन्साफ का सच जैसे कई सवाल छोड़े है ,जिनपर हमे विचार करना है ,,अभी हमे आसिफा कठुआ मामले में इंसाफ मिला है ,लेकिन इससे भी खतरनाक ,दिलदहलाने वाले घटना अलीगढ ट्विंकल हत्याकांड की है ,बेरहमी से क़त्ल ,क़ातिलों की बेशर्मी ,रिश्तों को तार तार करने की बेहूदगी सभी के सामने जग ज़ाहिर है ,,लेकिन प्रकरण की सुनवाई किसी भी सूरत बचाव वकील नियुक्त किये बगैर सम्भव नहीं ,है ,और जो भी वकील नियुक्त होगा वोह भी अपनी पेचीदगियां बताएगा ,,ऐसे में जब प्रकरण लास्ट सीन एविडेंस ,सर्कमटांसेज़ एविडेंस ,,बरामदगी ,उपधारणाओं का आधार ,अपराधियों का दुश्चरित्र जैसी साक्ष्य है तो हमे इस मुक़दमे के अनुसंधान पर नज़र रखना होगी ,वैज्ञानिक तकनीकों से साक्ष्य जुटाना होंगे ,,साक्ष्य में अपराधियों का सीधा संबंध स्थापित करना होगा ,और फिर अदालत में मुक़दमा पेश होने पर दिन प्रति दिन ,सुनवाई की मांग कर अपने खुद के ज़िम्मेदार वकील साथियों की टीम बनाकर मुक़दमे की निगरानी करना होगी ,गवाहान को सुरक्षा और ज़िम्मेदार बनाकर विधिक रूप से साक्षर करना होगा ,ताकि ऐसे घृणास्पद अपराध में लिप्त अपराधियों को उम्र क़ैद नहीं ,रेयर तो रेयरेस्ट केस साबित करवाकर मृत्युदंड ,फांसी की सजा दिलवा सके ,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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