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27 जून 2019

उनमें से किसी को दोस्त न बनाओ फिर अगर वह उससे भी मुँह मोड़ें तो उन्हें गिरफ़्तार करो

जिसने रसूल की इताअत की तो उसने ख़ुदा की इताअत की और जिसने रूगरदानी की (मुँह मोड़ा) तो तुम कुछ ख़्याल न करो (क्योंकि) हमने तुम को पासबान (मुक़र्रर) करके तो भेजा नहीं है (80)
(ये लोग तुम्हारे सामने) तो कह देते हैं कि हम (आपके) फ़रमाबरदार हैं लेकिन जब तुम्हारे पास से बाहर निकले तो उनमें से कुछ लोग जो कुछ तुमसे कह चुके थे उसके खि़लाफ़ रातों को मशवरा करते हैं हालांकि (ये नहीं समझते) ये लोग रातों को जो कुछ भी मशवरा करते हैं उसे ख़ुदा लिखता जाता है पास तुम उन लोगों की कुछ परवाह न करो और ख़ुदा पर भरोसा रखो और ख़ुदा कारसाज़ी के लिए काफ़ी है (81)
तो क्या ये लोग क़ुरान में भी ग़ौर नहीं करते और (ये नहीं ख़्याल करते कि) अगर ख़ुदा के सिवा किसी और की तरफ़ से (आया) होता तो ज़रूर उसमें बड़ा इख़्तेलाफ़ पाते (82)
और जब उनके (मुसलमानों के) पास अमन या ख़ौफ़ की ख़बर आयी तो उसे फ़ौरन मशहूर कर देते हैं हालांकि अगर वह उसकी ख़बर को रसूल (या) और ईमानदारो में से जो साहबाने हुकूमत तक पहुँचाते तो बेशक जो लोग उनमें से उसकी तहक़ीक़ करने वाले हैं (पैग़म्बर या वली) उसको समझ लेते कि (मशहूर करने की ज़रूरत है या नहीं) और (मुसलमानों) अगर तुमपर ख़ुदा का फ़ज़ल (व करम) और उसकी मेहरबानी न होती तो चन्द आदमियों के सिवा तुम सबके सब शैतान की पैरवी करने लगते (83)
बस (ऐ रसूल) तुम ख़ुदा की राह में जिहाद करो और तुम अपनी ज़ात के सिवा किसी और के ज़िम्मेदार नहीं हो और ईमानदारों को (जिहाद की) तरग़ीब दो और अनक़रीब ख़ुदा काफि़रों की हैबत रोक देगा और ख़ुदा की हैबत सबसे ज़्यादा है और उसकी सज़ा बहुत सख़्त है (84)
जो शख़्स अच्छे काम की सिफ़ारिश करे तो उसको भी उस काम के सवाब से कुछ हिस्सा मिलेगा और जो बुरे काम की सिफ़ारिश करे तो उसको भी उसी काम की सज़ा का कुछ हिस्सा मिलेगा और ख़ुदा तो हर चीज़ पर निगेहबान है (85)
और जब कोई शख़्स सलाम करे तो तुम भी उसके जवाब में उससे बेहतर तरीक़े से सलाम करो या वही लफ़्ज़ जवाब में कह दो बेशक ख़ुदा हर चीज़ का हिसाब करने वाला है (86)
अल्लाह तो वही परवरदिगार है जिसके सिवा कोई क़ाबिले परस्तिश नहीं वह तुमको क़यामत के दिन जिसमें ज़रा भी शक नहीं ज़रूर इकट्ठा करेगा और ख़ुदा से बढ़कर बात में सच्चा कौन होगा (87)
(मुसलमानों) फिर तुमको क्या हो गया है कि तुम मुनाफि़क़ों के बारे में दो फ़रीक़ हो गए हो (एक मुवाफि़क़ एक मुख़ालिफ़) हालांकि ख़ुद ख़ुदा ने उनके
करतूतों की बदौलत उनकी अक़्लों को उलट पुलट दिया है क्या तुम ये चाहते हो कि जिसको ख़ुदा ने गुमराही में छोड़ दिया है तुम उसे राहे रास्त पर ले आओ हालांकि ख़ुदा ने जिसको गुमराही में छोड़ दिया है उसके लिए तुममें से कोई शख़्स रास्ता निकाल ही नहीं सकता (88)
उन लोगों की ख़्वाहिश तो ये है कि जिस तरह वह काफि़र हो गए तुम भी काफि़र हो जाओ ताकि तुम उनके बराबर हो जाओ बस जब तक वह ख़ुदा की राह में हिजरत न करें तो उनमें से किसी को दोस्त न बनाओ फिर अगर वह उससे भी मुँह मोड़ें तो उन्हें गिरफ़्तार करो और जहाँ पाओ उनको क़त्ल करो और उनमें से किसी को न अपना दोस्त बनाओ न मददगार (89)
मगर जो लोग किसी ऐसी क़ौम से जा मिलें कि तुममें और उनमें (सुलह का) एहद व पैमान हो चुका है या तुमसे जंग करने या अपनी क़ौम के साथ लड़ने से दिलतंग होकर तुम्हारे पास आए हों (तो उन्हें आज़ार न पहुँचाओ) और अगर ख़ुदा चाहता तो उनको तुमपर ग़लबा देता तो वह तुमसे ज़रूर लड़ पड़ते बस अगर वह तुमसे किनारा कशी करे और तुमसे न लड़े और तुम्हारे पास सुलाह का पैग़ाम दे तो तुम्हारे लिए उन लोगों पर आज़ार पहुँचाने की ख़ुदा ने कोई सबील नहीं निकाली (90)

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