और न छाँव (बेहिश्त) और धूप (दोज़ख़ बराबर है) (21)
और न जि़न्दे (मोमिनीन) और न मुर्दें (क़ाफिर) बराबर हो सकते हैं और खु़दा जिसे चाहता है अच्छी तरह सुना (समझा) देता है और (ऐ रसूल) जो (कुफ़्फ़ार मुर्दों की तरह) क़ब्रों में हैं उन्हें तुम अपनी (बातें) नहीं समझा सकते हो (22)
तुम तो बस (एक खु़दा से) डराने वाले हो (23)
हम ही ने तुमको यक़ीनन कु़रान के साथ खु़शख़बरी देने वाला और डराने वाला ( पैग़म्बर) बनाकर भेजा और कोई उम्मत (दुनिया में) (24)
ऐसी नहीं गुज़री कि उसके पास (हमारा) डराने वाला पैग़म्बर न आया हो और अगर ये लोग तुम्हें झुठलाएँ तो कुछ परवाह नहीं करो क्योंकि इनके अगलों ने भी (अपने पैग़म्बरों को) झुठलाया है (हालाँकि) उनके पास उनके पैग़म्बर वाज़ेए व रौशन मौजिजे़ और सहीफ़े और रौशन किताब लेकर आए थे (25)
फिर हमने उन लोगों को जो काफि़र हो बैठे ले डाला तो (तुमने देखाकि) मेरा अज़ाब (उन पर) कैसा (सख्त हुआ (26)
अब क्या तुमने इस पर भी ग़ौर नहीं किया कि यक़ीनन खु़दा ही ने आसमान से पानी बरसाया फिर हम (खु़दा) ने उसके ज़रिए से तरह-तरह की रंगतों के फल पैदा किए और पहाड़ों में क़तआत (टुकड़े रास्ते) हैं जिनके रंग मुख़तलिफ है कुछ तो सफेद (बुर्राक़) और कुछ लाल (लाल) और कुछ बिल्कुल काले सियाह (27)
और इसी तरह आदमियों और जानवरों और चारपायों की भी रंगते तरह-तरह की हैं उसके बन्दों में ख़ुदा का ख़ौफ करने वाले तो बस उलेमा हैं बेशक खु़दा (सबसे) ग़ालिब और बख़्शने वाला है (28)
बेशक जो लोग खुदा की किताब पढ़ा करते हैं और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ते हैं और जो कुछ हमने उन्हें अता किया है उसमें से छिपा के और दिखा के (खु़दा की राह में) देते हैं वह यक़ीनन ऐसे व्यापार का आसरा रखते हैं (29)
जिसका कभी टाट न उलटेगा ताकि खु़दा उन्हें उनकी मज़दूरियाँ भरपूर अता करे बल्कि अपने फज़ल (व करम) से उसे कुछ और बढ़ा देगा बेशक वह बड़ा बख़्शने वाला है (और) बड़ा क़द्रदान है (30)
और न जि़न्दे (मोमिनीन) और न मुर्दें (क़ाफिर) बराबर हो सकते हैं और खु़दा जिसे चाहता है अच्छी तरह सुना (समझा) देता है और (ऐ रसूल) जो (कुफ़्फ़ार मुर्दों की तरह) क़ब्रों में हैं उन्हें तुम अपनी (बातें) नहीं समझा सकते हो (22)
तुम तो बस (एक खु़दा से) डराने वाले हो (23)
हम ही ने तुमको यक़ीनन कु़रान के साथ खु़शख़बरी देने वाला और डराने वाला ( पैग़म्बर) बनाकर भेजा और कोई उम्मत (दुनिया में) (24)
ऐसी नहीं गुज़री कि उसके पास (हमारा) डराने वाला पैग़म्बर न आया हो और अगर ये लोग तुम्हें झुठलाएँ तो कुछ परवाह नहीं करो क्योंकि इनके अगलों ने भी (अपने पैग़म्बरों को) झुठलाया है (हालाँकि) उनके पास उनके पैग़म्बर वाज़ेए व रौशन मौजिजे़ और सहीफ़े और रौशन किताब लेकर आए थे (25)
फिर हमने उन लोगों को जो काफि़र हो बैठे ले डाला तो (तुमने देखाकि) मेरा अज़ाब (उन पर) कैसा (सख्त हुआ (26)
अब क्या तुमने इस पर भी ग़ौर नहीं किया कि यक़ीनन खु़दा ही ने आसमान से पानी बरसाया फिर हम (खु़दा) ने उसके ज़रिए से तरह-तरह की रंगतों के फल पैदा किए और पहाड़ों में क़तआत (टुकड़े रास्ते) हैं जिनके रंग मुख़तलिफ है कुछ तो सफेद (बुर्राक़) और कुछ लाल (लाल) और कुछ बिल्कुल काले सियाह (27)
और इसी तरह आदमियों और जानवरों और चारपायों की भी रंगते तरह-तरह की हैं उसके बन्दों में ख़ुदा का ख़ौफ करने वाले तो बस उलेमा हैं बेशक खु़दा (सबसे) ग़ालिब और बख़्शने वाला है (28)
बेशक जो लोग खुदा की किताब पढ़ा करते हैं और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ते हैं और जो कुछ हमने उन्हें अता किया है उसमें से छिपा के और दिखा के (खु़दा की राह में) देते हैं वह यक़ीनन ऐसे व्यापार का आसरा रखते हैं (29)
जिसका कभी टाट न उलटेगा ताकि खु़दा उन्हें उनकी मज़दूरियाँ भरपूर अता करे बल्कि अपने फज़ल (व करम) से उसे कुछ और बढ़ा देगा बेशक वह बड़ा बख़्शने वाला है (और) बड़ा क़द्रदान है (30)
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