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13 जनवरी 2019

कितनी अजीब बात है ,जिस चीन का विरोध करके हमारे देश के लोग सियासत करते है

कितनी अजीब बात है ,जिस चीन का विरोध करके हमारे देश के लोग सियासत करते है ,विशिष्ठ विचारधारा के संगठन चीन के बने सामानों के बहिष्कार का नारा देते ,है आंदोलन चलाते है ,उसी चीन की ,अविष्कारिक ,पतंग को हम हवा में उढ़ाकर अपने त्यौहार ,अपने जश्न मनाते है ,चीन की इस संस्कृति को हम यूँ ही आगे नहीं ,बढ़ाते हम चाइना मांझे का इस्तेमाल कर चाइना की अविष्कारिक इस पतंग को हमारे देश में उड़ाने की ज़िद करते है ,और देखिये नतीजा ,लोग इस चायनीज़ मांझे से लहूलुहान होते है ,कट्टे है ,कुछ मोत के आगोश में भी गंभीर घायल होकर सो जाते है ,चीन आज भी चायनीज़ मांझे के नाम पर हमारे ही देश के लोगों को हथियार बनाकर ,गुमराह ,कर हमारे देश के आम नागरिकों के साथ हादसे करवा रहा ,हमारा ,देश ,हमारा क़ानून ,,हमारे सुरक्षाकर्मी ,हमारे स्वदेशी की बात करने वाले चुनावी नेताओं के बंधक बने कथित राष्ट्रभक्त अपनी बोलती इस मुद्दे पर बंद कर चुके है ,,तो जनाब यह कड़वा सच है ,जिसे हमे स्वीकार तो करना ही होगा ,कुतर्क चाहे करके इस सच को सत्तर सालों में क्या हुआ कहकर हम झुंठला दे ,लेकिन सच यही है ,शतुरमुर्ग की तरह ,ज़मीन में ,रेत में मुंह छुपाने से खून का प्यासा बना यह चाइनीज़ हमलावर बना मांझा हमे लहू लुहान करता रहेगा ,और हम ,चीन से नफरत के नाम पर वोट मांगेंगे ,चीन के उत्पाद के सामानों के बहिष्कार के नाम पर लोगो को गुमराह कर स्वदेशी आंदोलन के नाम पर खुद कोई देश भक्ति बघारेंगे ,लेकिन सच आपके सामने है ,,,दोस्तों ऐसा माना जाता है कि दुनिया में सबसे पहले पतंग का आविष्कार चीन में हुआ था. लगभग 2000 साल पहले पूर्वी चीन के शानडोंग नामक प्रांत तो पतंग का घर कहा जाता था.एक मान्यता के अनुसार एक चीनी किसान अपनी टोपी को हवा में उड़ने से बचाने के लिए उसे एक रस्सी से बांधकर रखता था जिससे आगे चलकर पतंग का आविष्कार किया गया,,,माना जाता है कि पतंग का आविष्कार ईसा पूर्व तीसरी सदी में चीन में हुआ था। दुनिया की पहली पतंग एक चीनी दार्शनिक "हुआंग थेग"ने बनाई थी। इस प्रकार पतंग का इतिहास लगभग २,३०० वर्ष पुराना है। पतंग बनाने का उपयुक्त सामान चीन में उप्लब्ध था जैसे:- रेशम का कपडा़, पतंग उडाने के लिये मज़बूत रेशम का धागा और पतंग के आकार को सहारा देने वाला हल्का और मज़बूत बाँस वगेरा ,,तो दोस्तों पतंग तो पतंग है ,,यह एक खेल ,एक धार्मिक मान्यता हो सकती है ,एक मनोरंजन हो सकता है ,लेकिन सच तो यही है ,के हम चायनीज़ अविष्कारक पतंग को ,,अपने मांझे से भी उड़ाने में नाकाम है ,हम चायनीज़ मांझे के इस्तेमाल से हमारे ही इस देश के राहगीरों ,पंछियों ,जानवरों ,बच्चों ,बूढ़ों ,को लहूलुहान कर रहे है ,बेमौत ,चायनीज़ मांझे के हथियार से उनकी हत्या कर रहे है ,जहाँ का यह मांझा है ,जहाँ का यह अविष्कार है ,वहां ,ऐसा लहूलुहान का खेल नहीं होता ,वहां ,ऐसा क़ातिल मांझे का उपयोग नहीं होता ,,लेकिन देश में राष्ट्रभक्त ,ठेकेदार ,तो बस ,गिरेहबान में झांकते ही नहीं ,,क्योंकि ,,,,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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