कल एक दिलचस्प घटना हुई।एक होटल में एक आदमी दाल रोटी खा रहा था।अच्छे
परिवार का बुजुर्ग था । खाने के बाद जब बिल देने की बारी आई तो वो बोला कि
उसका पर्स घर में रह गया है और थोड़ी देर में आकर बिल चुका जाएगा।
काऊंटर पर बैठे सरदार जी ने कहा," कोई बात नहीं, जब पैसे आ जाएं तब दे जाना" और वो वहां से चला गया।
वेटर ने जब ये देखा तो उसने कांउटर पर बैठे सरदार जी को बताया कि ये आदमी पहले भी दो तीन होटलों में ऐसा कर चुका है और ये पैसे कभी भी नहीं आते ।
इस पर उन सरदार जी ने कहा," वो सिर्फ दाल रोटी खा कर गया है, कोई कोफ्ते,पनीर शनीर खा कर नहीं गया। उसने ऐयाशी करने के लिए नहीं खाया सिर्फ अपनी भूख मिटाने के लिए खाना खाया । वो इसे होटल समझ कर नहीं आया था, गुरूद्वारा समझ कर आया था, और हम पंजाबी लोग लंगर के पैसे नहीं लेते।
काऊंटर पर बैठे सरदार जी ने कहा," कोई बात नहीं, जब पैसे आ जाएं तब दे जाना" और वो वहां से चला गया।
वेटर ने जब ये देखा तो उसने कांउटर पर बैठे सरदार जी को बताया कि ये आदमी पहले भी दो तीन होटलों में ऐसा कर चुका है और ये पैसे कभी भी नहीं आते ।
इस पर उन सरदार जी ने कहा," वो सिर्फ दाल रोटी खा कर गया है, कोई कोफ्ते,पनीर शनीर खा कर नहीं गया। उसने ऐयाशी करने के लिए नहीं खाया सिर्फ अपनी भूख मिटाने के लिए खाना खाया । वो इसे होटल समझ कर नहीं आया था, गुरूद्वारा समझ कर आया था, और हम पंजाबी लोग लंगर के पैसे नहीं लेते।
... धन्य हो ऐसी विचारधारा...

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