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25 अगस्त 2018

कथित प्रोसेस के नाम पर ,,अनोखबाई को जेल प्रशासन चक्कर कटवाता रहा

राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा अभियुक्त को अपील सुनवाई के बाद भुगती हुई सज़ा पर छोड़ने के 8 अगस्त के आदेश के बाद भी जब कोटा जेल अधीक्षक ने 16 अगस्त तक अभियुक्त को रिहा कर पालना रिपोर्ट देना मुनासिब नहीं समझा तो अभियुक्त जानकीलाल की पत्नी अनोखबाई ने अपने वकील मेघराज सिंह शक्तावत के ज़रिये न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया और पति को रिहा करवाने की गुहार लगाई ,,कोटा न्यायालय अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट क्रम 6 के सुमरथ लाल मीणा साहिब के समक्ष जानकीलाल की पत्नी अनोखबाई ने प्रस्तुत प्रार्थना पत्र में कहा के 8 अगस्त को ही राजस्थान उच्च न्यायालय ने अपील में भुगती हुई सजा में अभियुक्त जानकीलाल को छोड़ने के आदेश दिए , इसकी सुचना कोटा जेल प्रशासन को थी ,लेकिन जब उन्होंने जानकीलाल को नहीं छोड़ा तो ,पत्नी अनोखबाई ने हाईकोर्ट के आदेश के साथ लिखित प्रार्थना पत्र जेल प्रशासन को 12 अगस्त को सौंपा ,लेकिन कथित प्रोसेस के नाम पर ,,अनोखबाई को जेल प्रशासन चक्कर कटवाता रहा ,और अभियुक्त को रिहा नहीं किया ,,आखिर अनोख बाई ने अपने वकील के ज़रिये न्यायालय के समक्ष प्रार्थना पत्र पेश किया ,न्यायिक मजिस्ट्रेट ने हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी सप्ताह भर गुज़रने पर ,अभियुक्त को नहीं छोड़ने के कृत्य को गंभीरता से लेकर ,कोटा जेल अधीक्षक को तलब किया ,उप अधीक्षक कोटा जेल न्यायलय में उपस्थित हुए ,न्यायालय ने माननीय हाईक्रोट के आदेश की पालना सुनिश्चित नहीं करने के उनके कृत्य पर उन्हें लताड़ पिलाते हुए कार्यवाही के लिए प्रक्रिया शुरू ,की तो जेल उपाधीक्षक को अपना कर्तव्य और माननीय न्यायालय के आदेशों के सम्मान की अहमियत पता चली ,उन्होंने माफ़ी मांगते हुए कहा के अभियुक्त बारां ट्रांसफर कर दिया गया है और अभियुक्त की रिहाई का आदेश ज़रिये डाक बारां भिजवाया गया है जो नहीं पहुंचने की वजह से वोह रिहा नहीं हो सका ,,अजीब बात है ,आज इंटरनेट के युग में ,,हायकोर्ट के आदेशों पर जेल की तहरीर ,जेल के आदेश सिर्फ सरकारी डाक से भेजने की बात कही जा रही है ,जबकि मोबाइल ,वीडियो कॉलिंग ,इंटरनेट ,मेसेज भेजने की सभी सुविधाएं है ऐसे में बहाना तो हास्यास्पद सा लगा ,लेकिन न्यायालय के कान उमेठने से एक हफ्ते से ज़्यादा समय बाद ही सही ,अभियुक्त जानकीलाल जेल से रिहा हो गया ,,इसके पूर्व ही एक पूर्व जेल अधीक्षक कोटा की एक वरिष्ठ न्यायालय में न्यायधीश द्वारा विचाराधीन क़ैदी से मारपिटाई की घटना के बाद चोटों का मेडिकल के आदेश की पालना नहीं कर पाए तो न्यायधीश महोदय ने जब सवाल उठाया ,तो जेल अधीक्षक ने ,उल्टा अधिकार जताते हुए कह डाला के हमे तो क़ैदी को गोली मारने का भी हुक्म है बस ,न्यायलय ने अपने अधिकार बताते हुए तुरंत न्यायलय की अवमानना मानते हुए चालानी गार्ड बुलवाये अधीक्षक महोदय की सिट्टीपिट्टी गुम हुई ,उन्हें कहा गया जिस जेल के तुम अधिकारी हो अब तुम उसी जेल में रहोगे ,लेकिन मौखिक मुआफी के बाद उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गयी ,वैसे होनी को कोन टाल सकता है ,,एक ईमानदार गीता के प्रमुख ज्ञाता के यह शब्द थे ,तो पुरे तो होना ही थे ,ईश्वर की विधि विधान ही कहा जाएगा के इन जनाब अधिकारी महोदय के बाद में इसी जेल में अधिकारी होते हुए मुल्ज़िम के रूप में रहना भी पढ़ा ,,, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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