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30 मई 2018

मैं पत्रकार हो गया हूँ

*मैं पत्रकार हो गया हूँ...*
*समझदार था पर अब चाटुकार हो गया हूँ*
एक मीडिया साथी ने भड़ासी कविता भेजी है। यह कविता उस साथी का ही नहीं हर उस पत्रकार का दर्द बयां करती जो कुछ करने, कुछ बदलने के लिए इस क्षेत्र में आया था , लेकिन आज ‘भेड़-चाल में शुमार’ हो गया है।
पढ़ें कविता:

*सुना है कि अब मैं पत्रकार हो गया हूं*
*ना समझ था पहले अब समझदार हो गया हूं।*
*बहुत गुस्सा था इस व्यवस्था के खिलाफ*
*अब उसी का भागीदार हो गया हूं।*
*दिल पसीजता था राह चलते हुए पहले, कलम हाथ में आते ही दिमागदार हो गया हूं।*
*कभी नफरत थी कुछ छपी हुई खबरों से मुझे,आज उन्हीं खबरों का तलबगार हो गया हूं।*
*सोचा था अलग राह पकडूंगा पत्रकार बनकर,अब मैं भी भेड़ चाल में शुमार हो गया हूं।*
*लिखकर बदलने चला था दुनिया को मैं,पर चाटुकारों की वफादारी देख मैं खुद बदलने पर मजबूर हो गया हूं।*
*मुझे दिख रही है देश की तरक्की सारी,क्योंकि अब मैं नेताओं का चाटुकार हो गया हूं।*
*इंकबाल वंदे मातरम जैसे कई नारे आते थे मुझे,पर क्या करूं कमाई के लालच के कारण नेताओं का चाटुकार हो गया हूं।*
*ढूंढ रहा था पहले देश की बेहाली के जिम्मेदारों को,पर अब समझ गया हूं सब कुछ,इसीलिए अब मैं समझदार हो गया हूं,*
*सुना है कि अब मैं पत्रकार हो गया हूं।🙏🙏*
हिंदी पत्रकारिता दिवस पर विशेष,,,,,,

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