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26 मई 2018

इन लोगों ने यक़ीनन ख़़ुदा और उसके रसूल के साथ कुफ्ऱ किया

(जंगे तबूक़ में) रसूले ख़़ुदा के पीछे रह जाने वाले अपनी जगह बैठ रहने (और जिहाद में न जाने) से ख़ुश हुए और अपने माल और आपनी जानों से ख़ुदा की राह में जिहाद करना उनको मकरू मालूम हुआ और कहने लगे (इस) गर्मी में (घर से) न निकलो (ऐ रसूल) तुम कह दो कि जहन्नुम की आग (जिसमें तुम चलोगे उससे कहीं ज़्यादा गर्म है (81)
अगर वह कुछ समझें जो कुछ वह किया करते थे उसके बदले उन्हें चाहिए कि वह बहुत कम हॅसें और बहुत रोएँ (82)
तो (ऐ रसूल) अगर ख़ुदा तुम इन मुनाफेक़ीन के किसी गिरोह की तरफ (जिहाद से सहीसालिम) वापस लाए फिर तुमसे (जिहाद के वास्ते) निकलने की इजाज़त माँगें तो तुम साफ़ कह दो कि तुम मेरे साथ (जिहाद के वास्ते) हरगिज़ न निकलने पाओगे और न हरगिज़ दुश्मन से मेरे साथ लड़ने पाओगे जब तुमने पहली मरतबा (घर में) बैठे रहना पसन्द किया तो (अब भी) पीछे रह जाने वालों के साथ (घर में) बैठे रहो (83)
और (ऐ रसूल) उन मुनाफिक़ीन में से जो मर जाए तो कभी ना किसी पर नमाजे़ जनाज़ा पढ़ना और न उसकी क़ब्र पर (जाकर) खडे़ होना इन लोगों ने यक़ीनन ख़़ुदा और उसके रसूल के साथ कुफ्ऱ किया और बदकारी की हालत में मर (भी) गए (84)
और उनके माल और उनकी औलाद (की कसरत) तुम्हें ताज्जुब (हैरत) मने डाले (क्योकि) ख़ुदा तो बस ये चाहता है कि दुनिया में भी उनके माल और औलाद की बदौलत उनको अज़ाब में मुब्तिला करे और उनकी जान निकालने लगे तो उस वक़्त भी ये काफि़र (के काफि़र ही) रहें (85)
और जब कोई सूरा इस बारे में नाजि़ल हुआ कि ख़़ुदा को मानों और उसके रसूल के साथ जिहाद करो तो जो उनमें से दौलत वाले हैं वह तुमसे इजाज़त मांगते हैं और कहते हैं कि हमें (यहीं छोड़ दीजिए) कि हम भी (घर बैठने वालो के साथ (बैठे) रहें (86)
ये इस बात से ख़ुश हैं कि पीछे रह जाने वालों (औरतों, बच्चों, बीमारो के साथ बैठे) रहें और (गोया) उनके दिल पर मोहर कर दी गई तो ये कुछ नहीं समझतें (87)
मगर रसूल और जो लोग उनके साथ ईमान लाए हैं उन लोगों ने अपने अपने माल और अपनी अपनी जानों से जिहाद किया- यही वह लोग हैं जिनके लिए (हर तरह की) भलाइयाँ हैं और यही लोग कामयाब होने वाले हैं (88)
ख़़ुदा ने उनके वास्ते (बेहष्त) के वह (हरे भरे) बाग़ तैयार कर रखे हैं जिनके (दरख़्तों के) नीचे नहरे जारी हैं (और ये) इसमें हमेशा रहेंगें यही तो बड़ी कामयाबी हैं (89)
और (तुम्हारे पास) कुछ हीला करने वाले गवार देहाती (भी) आ मौजदू हुए ताकि उनको भी (पीछे रह जाने की) इजाज़त दी जाए और जिन लोगों ने ख़़ुदा और उसके रसूल से झूठ कहा था वह (घर में) बैठ रहे (आए तक नहीं) उनमें से जिन लोंगों ने कुफ्ऱ एख़्तेयार किया अनक़रीब ही उन पर दर्दनाक अज़ाब आ पहुँचेगा (90)

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