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25 मई 2018

ईमानदार मर्द और ईमानदार औरते

और ईमानदार मर्द और ईमानदार औरते उनमें से बाज़ के बाज़ रफीक़ है और नामज़ पाबन्दी से पढ़ते हैं और ज़कात देते हैं और ख़़ुदा और उसके रसूल की फरमाबरदारी करते हैं यही लोग हैं जिन पर ख़़ुदा अनक़रीब रहम करेगा बेषक ख़़ुदा ग़ालिब हिकमत वाला है (71)
ख़़ुदा ने ईमानदार मर्दों और ईमानदारा औरतों से (बेहशत के) उन बाग़ों का वायदा कर लिया है जिनके नीचे नहरें जारी हैं और वह उनमें हमेषा रहेगें (बेहश्त अदन के बाग़ो में उम्दा उम्दा मकानात का (भी वायदा फरमाया) और ख़़ुदा की ख़़ुशनूदी उन सबसे बालातर है- यही तो बड़ी (आला दर्जे की) कामयाबी है (72)
ऐ रसूल कुफ़्फ़ार के साथ (तलवार से) और मुनाफिकों के साथ (ज़बान से) जिहाद करो और उन पर सख़्ती करो और उनका ठिकाना तो जहन्नुम ही है और वह (क्या) बुरी जगह है (73)
ये मुनाफे़क़ीन ख़़ुदा की क़समें खाते है कि (कोई बुरी बात) नहीं कही हालाकि उन लोगों ने कुफ्ऱ का कलमा ज़रूर कहा और अपने इस्लाम के बाद काफिर हो गए और जिस बात पर क़ाबू न पा सके उसे ठान बैठे और उन लोगें ने (मुसलमानों से) सिर्फ इस वजह से अदावत की कि अपने फज़ल व करम से ख़़ुदा और उसके रसूल ने दौलत मन्द बना दिया है तो उनके लिए उसमें ख़ैर है कि ये लोग अब भी तौबा कर लें और अगर ये न मानेगें तो ख़ुदा उन पर दुनिया और आखि़रत में दर्दनाक अज़ाब नाजि़ल फरमाएगा और तमाम दुनिया में उन का न कोई हामी होगा और न मददगार (74)
और इन (मुनाफे़की़न) में से बाज़ ऐसे भी हैं जो ख़़ुदा से क़ौल क़रार कर चुके थे कि अगर हमें अपने फज़ल (व करम) से (कुछ माल) देगा तो हम ज़रूर ख़ैरात किया करेगें और नेकोकार बन्दे हो जाएगें (75)
तो जब ख़ुदा ने अपने फज़ल (व करम) से उन्हें अता फरमाया-तो लगे उसमें बुख़्ल करने और कतराकर मुह फेरने (76)
फिर उनसे उनके ख़ामयाजे़ (बदले) में अपनी मुलाक़ात के दिन (क़यामत) तक उनके दिल में (गोया खुद) निफाक डाल दिया इस वजह से उन लोगों ने जो ख़़ुदा से वायदा किया था उसके खि़लाफ किया और इस वजह से कि झूठ बोला करते थे (77)
क्या वह लोग इतना भी न जानते थे कि ख़ुदा (उनके) सारे भेद और उनकी सरगोशी (सब कुछ) जानता है और ये कि ग़ैब की बातों से ख़ूब आगाह है (78)
जो लोग दिल खोलकर ख़ैरात करने वाले मोमिनीन पर (रियाकारी का) और उन मोमिनीन पर जो सिर्फ अपनी मशक्कत (मेहनत) की मज़दूरी पाते (शख़ी का) इल्ज़ाम लगाते हैं फिर उनसे मसख़रापन करते तो ख़़ुदा भी उन से मसख़रापन करेगा और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है (79)
(ऐ रसूल) ख़्वाह तुम उन (मुनाफिक़ों) के लिए मग़फिरत की दुआ मागों या उनके लिए मग़फिरत की दुआ न मागों (उनके लिए बराबर है) तुम उनके लिए सत्तर बार भी बखि़्शश की दुआ मांगोगे तो भी ख़ुदा उनको हरगिज़ न बख़्शेगा ये (सज़ा) इस सबब से है कि उन लोगों ने ख़़ुदा और उसके रसूल के साथ कुफ्र किया और ख़़ुदा बदकार लोगों को मंजि़लें मकसूद तक नहीं पहुँचाया करता (80)

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