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27 अप्रैल 2018

अनक़रीब तुम कुछ ऐसे और लोगों को भी पाओगे जो चाहते हैं कि तुमसे भी अमन में रहें

अनक़रीब तुम कुछ ऐसे और लोगों को भी पाओगे जो चाहते हैं कि तुमसे भी अमन में रहें और अपनी क़ौम से भी अमन मे रहें (मगर) जब कभी झगड़े की तरफ़ बुलाए गए तो उसमें औंधे मुँह के बल गिर पड़े बस अगर वह तुमसे न किनारा कशी करें और न तुम्हें सुलह का पैग़ाम दें और न लड़ाई से अपने हाथ रोकें बस उनको पकड़ों और जहाँ पाओ उनको क़त्ल करो और यही वह लोग हैं जिनपर हमने तुम्हें सरीही ग़लबा अता फ़रमाया (91)
और किसी ईमानदार को ये जायज़ नहीं कि किसी मोमिन को जान से मार डाले मगर धोखे से (क़त्ल किया हो तो दूसरी बात है) और जो शख़्स किसी मोमिन को धोखे से (भी) मार डाले तो (उसपर) एक ईमानदार गु़लाम का आज़ाद करना और मक़तूल के क़राबतदारों को खूंन बहा देना (लाजि़म) है मगर जब वह लोग माफ़ करें फिर अगर मक़तूल उन लोगों में से हो वह जो तुम्हारे दुश्मन (काफि़र हरबी) हैं और ख़ुद क़ातिल मोमिन है तो (सिर्फ) एक मुसलमान ग़ुलाम का आज़ाद करना और अगर मक़तूल उन (काफि़र) लोगों में का हो जिनसे तुम से एहद व पैमान हो चुका है तो (क़ातिल पर) वारिसे मक़तूल को ख़ून बहा देना और एक बन्दए मोमिन का आज़ाद करना (वाजिब) है फि़र जो शख़्स (ग़ुलाम आज़ाद करने को) न पाये तो उसका कुफ़्फ़ारा ख़ुदा की तरफ़ से लगातार दो महीने के रोज़े हैं और ख़ुदा ख़ूब वाकिफ़कार (और) हिकमत वाला है (92)
और जो शख़्स किसी मोमिन को जानबूझ के मार डाले (ग़ुलाम की आज़ादी वगैरह उसका कुफ़्फ़ारा नहीं बल्कि) उसकी सज़ा दोज़ख़ है और वह उसमें हमेशा रहेगा उसपर ख़ुदा ने (अपना) ग़ज़ब ढाया है और उसपर लानत की है और उसके लिए बड़ा सख़्त अज़ाब तैयार कर रखा है (93)
ऐ ईमानदारों जब तुम ख़ुदा की राह में (जेहाद करने को) सफ़र करो तो (किसी के क़त्ल करने में जल्दी न करो बल्कि) अच्छी तरह जाच कर लिया करो और जो शख़्स (इज़हारे इस्लाम की ग़रज़ से) तुम्हे सलाम करे तो तुम बे सोचे समझे न कह दिया करो कि तू ईमानदार नहीं है (इससे ज़ाहिर होता है) कि तुम (फ़क़्त) दुनियावी आसाइश की तमन्ना रखते हो मगर इसी बहाने क़त्ल करके लूट लो और ये नहीं समझते कि (अगर यही है) तो ख़ुदा के यहाँ बहुत से ग़नीमतें हैं (मुसलमानों) पहले तुम ख़़ुद भी तो ऐसे ही थे फिर ख़ुदा ने तुमपर एहसान किया (कि बेखटके मुसलमान हो गए) ग़रज़ ख़ूब छानबीन कर लिया करो बेशक ख़ुदा तुम्हारे हर काम से ख़बरदार है (94)
माज़ूर लोगों के सिवा जेहाद से मुँह छिपा के घर में बैठने वाले और ख़ुदा की राह में अपने जान व माल से जिहाद करने वाले हरगिज़ बराबर नहीं हो सकते (बल्कि) अपने जान व माल से जिहाद करने वालों को घर बैठे रहने वालें पर ख़ुदा ने दरजे के एतबार से बड़ी फ़ज़ीलत दी है (अगरचे) ख़ुदा ने सब इमानदारों से (ख़्वाह जिहाद करें या न करें) भलाई का वायदा कर लिया है मगर ग़ाजि़यों को खाना नशीनों पर अज़ीम सवाब के एतबार से ख़ुदा ने बड़ी फ़ज़ीलत दी है (95)
(यानी उन्हें) अपनी तरफ़ से बड़े बड़े दरजे और बखि़्शश और रहमत (अता फ़रमाएगा) और ख़ुदा तो बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (96)
बेशक जिन लोगों की क़ब्जे़ रूह फ़रिश्ते ने उस वक़त की है कि (दारूल हरब में पड़े) अपनी जानों पर ज़ुल्म कर रहे थे और फ़रिश्ते कब्जे़ रूह के बाद हैरत से कहते हैं तुम किस (हालत) ग़फ़लत में थे तो वह (माज़ेरत के लहजे में) कहते है कि हम तो रूए ज़मीन में बेकस थे तो फ़रिश्ते कहते हैं कि ख़ुदा की (ऐसी लम्बी चौड़ी) ज़मीन में इतनी सी गुन्जाइश न थी कि तुम (कहीं) हिजरत करके चले जाते बस ऐसे लोगों का ठिकाना जहन्नुम है और वह बुरा ठिकाना है (97)
मगर जो मर्द और औरतें और बच्चे इस क़दर बेबस हैं कि न तो (दारूल हरब से निकलने की) काई तदबीर कर सकते हैं और उनको अपनी रिहाई की कोई राह दिखाई देती है (98)
तो उम्मीद है कि ख़ुदा ऐसे लोगों से दरगुज़रे करे और ख़ुदा तो बड़ा माफ़ करने वाला और बख्शने वाला है (99)
और जो शख़्स ख़ुदा की राह में हिजरत करेगा तो वह रूए ज़मीन में बा फ़राग़त (चैन से रहने सहने के) बहुत से कुशादा मक़ाम पाएगा और जो शख़्स अपने घर से जिलावतन होकर ख़ुदा और उसके रसूल की तरफ़ निकल ख़ड़ा हुआ फिर उसे (मंजि़ले मक़सूद) तक पहुँचने से पहले मौत आ जाए तो ख़ुदा पर उसका सवाब लाजि़म हो गया और ख़ुदा तो बड़ा बख़्श ने वाला मेहरबान है ही (100)

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