आपका-अख्तर खान

हमें चाहने वाले मित्र

26 अप्रैल 2018

ज़रा ग़ौर तो करो कि गुनाहगारों का अन्जाम आखिर क्या हुआ

हाँ तुम औरतों को छोड़कर षहवत परस्ती के वास्ते मर्दों की तरफ माएल होते हो (हालाकि उसकी ज़रूरत नहीं) मगर तुम लोग कुछ हो ही बेहूदा (81)
सिर्फ करनें वालों (को नुत्फे को ज़ाए करते हो उस पर उसकी क़ौम का उसके सिवा और कुछ जवाब नहीं था कि वह आपस में कहने लगे कि उन लोगों को अपनी बस्ती से निकाल बाहर करो क्योंकि ये तो वह लोग हैं जो पाक साफ बनना चाहते हैं) (82)
तब हमने उनको और उनके घर वालों को नजात दी मगर सिर्फ (एक) उनकी बीबी को कि वह (अपनी बदआमाली से) पीछे रह जाने वालों में थी (83)
और हमने उन लोगों पर (पत्थर का) मेह बरसाया-पस ज़रा ग़ौर तो करो कि गुनाहगारों का अन्जाम आखिर क्या हुआ (84)
और (हमने) मदयन (वालों के) पास उनके भाई शुएब को (रसूल बनाकर भेजा) तो उन्होंने (उन लोगों से) कहा ऐ मेरी क़ौम ख़ुदा ही की इबादत करो उसके सिवा कोई दूसरा माबूद नहीं (और) तुम्हारे पास तो तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से एक वाजे़ए व रौषन मौजिज़ा (भी) आ चुका तो नाप और तौल पूरी किया करो और लोगों को उनकी (ख़रीदी हुयी) चीज़ में कम न दिया करो और ज़मीन में उसकी असलाह व दुरूस्ती के बाद फसाद न करते फिरो अगर तुम सच्चे ईमानदार हो तो यही तुम्हारे हक़ में बेहतर है (85)
और तुम लोग जो रास्तों पर (बैठकर) जो ख़़ुदा पर ईमान लाया है उसको डराते हो और ख़़ुदा की राह से रोकते हो और उसकी राह में (ख़्वाहमाख़्वाह) कज़ी ढूँढ निकालते हो अब न बैठा करो और उसको तो याद करो कि जब तुम (शुमार में) कम थे तो ख़ुदा ही ने तुमको बढ़ाया, और ज़रा ग़ौर तो करो कि (आखि़र) फसाद फैलाने वालों का अन्जाम क्या हुआ (86)
और जिन बातों का मै पैग़ाम लेकर आया हूँ अगर तुममें से एक गिरोह ने उनको मान लिया और एक गिरोह ने नहीं माना तो (कुछ परवाह नहीं) तो तुम सब्र से बैठे (देखते) रहो यहाँ तक कि ख़ुदा (खुद) हमारे दरम्यिान फैसला कर दे, वह तो सबसे बेहतर फैसला करने वाला है (87) तो उनकी क़ौम में से जिन लोगों को (अपनी हशमत(दुनिया पर) बड़ा घमण्ड था कहने लगे कि ऐ शुएब हम तुम्हारे साथ इमान लाने वालों को अपनी बस्ती से निकाल बाहर कर देगें मगर जबकि तुम भी हमारे उसी मज़हब मिल्लत में लौट कर आ जाओ (88)
हम अगरचे तुम्हारे मज़हब से नफरत ही रखते हों (तब भी लौट जाए माज़अल्लाह) जब तुम्हारे बातिल दीन से ख़ुदा ने मुझे नजात दी उसके बाद भी अब अगर हम तुम्हारे मज़हब मे लौट जाए तब हमने ख़ुदा पर बड़ा झूठा बोहतान बाधा (ना) और हमारे वास्ते तो किसी तरह जायज़ नहीं कि हम तुम्हारे मज़हब की तरफ लौट जाएँ मगर हाँ जब मेरा परवरदिगार अल्लाह चाहे तो हमारा परवरदिगार तो (अपने) इल्म से तमाम (आलम की) चीज़ों को घेरे हुए है हमने तो ख़ुदा ही पर भरोसा कर लिया ऐ हमारे परवरदिगार तू ही हमारे और हमारी क़ौम के दरमियान ठीक ठीक फैसला कर दे और तू सबसे बेहतर फ़ैसला करने वाला है (89)
और उनकी क़ौम के चन्द सरदार जो काफिर थे (लोगों से) कहने लगे कि अगर तुम लोगों ने शुएब की पैरवी की तो उसमें शक ही नहीं कि तुम सख़्त घाटे में रहोगे (90)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...