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10 मार्च 2018

वकीलों की महत्वपूर्ण भूमिका

BCR ELECTION special for think my all brother candidateभारत की आजादी में वकीलों की महत्वपूर्ण भूमिका थी, देश के इन वकीलों के नाम आप अच्छी तरह जानते होंगे....
1 बाल गंगाधर तिलक
2 महात्मा गांधी
3 जवाहरलाल नेहरू
4 भीमराव अंबेडकर
5 मोतीलाल नेहरू
6 वल्लभ भाई पटेल
7 चितरंजन दास
8 सैफुद्दीन
9 सोमनाथ चटर्जी
10 श्यामा प्रसाद मुखर्जी
11 सैयद सुल्तान
12 सच्चिदानंद सिन्हा
13 दादाभाई नौरोजी
14 सुंदर नाथ बनर्जी
15 मदन मोहन मालवीय
16 मोतीलाल नेहरू
17 सी राजगोपालचारी
18 लाला लाजपत राय
19 सी आर दास
20 राजेंद्र प्रसाद
21 भुला भाई देसाई
22 तेज बहादुर
23 अनगिनत अन्य वकील
जिन्होंने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर हमें आज़ादी दिलाई, इस कारण वकील को Respected Advocate कहा जाता था.....
आज़ादी के बाद इस न्यायिक व्यवस्था में जो लोग आए उन्होंने इस पर ऐसा कब्जा किया कि आज-
1. वकीलों को कोई बैंक लोन नहीं देता....
2. वकीलों को मकान किराए पर नहीं मिलता....
3. वकील परिवारों को बेटी देने में आजकल हर कोई झिझकता है....
4. शुरुआती 10 वर्षों तक वकील परिवार पालने के लिए संघर्ष करता रहता है.....
5. वकील अपने बच्चों को उचित शिक्षा नहीं दिला पाता है....
6. भरी कोर्ट में वकील पर हमला हो जाता है....
7. जूनियर वकीलों के बैठने के लिए आज भी उचित चैम्बर या जगह नहीं है....
8. वकीलों के रोजगार या पेंशन की कोई गारण्टी नहीं है....
9. वकालत से गुजारा नहीं चलने पर साथ मे दूसरा रोजगार करना Advocate Act में अपराध है....
Hon'ble Judge और Respected Advocate हम आपस में ही बोल लेते हैं....
अरे कैसा respect....यह Respect तो जनता में होना चाहिए....हम आपस में ही एक दूसरे का Respect कर लेते हैं.....
न्यायपालिका में न्याय नहीं फैसले होते हैं और हम वकील केवल अपना और अपने परिवार का पेट पालते हैं....किसी को न्याय नहीं दिला पाते हैं क्योंकि-
1. न्यायाधीश के सामने उसका पेशकार या बाबू रोजाना वकीलों और पक्षकारों से 100-100, 200-200 रुपये लेता रहता है क्या जज साहब को दिखता नहीं है....?
2. हाईकोर्ट के ज़ज़ का निजी जमादार(चपरासी) पैसे के लिए वकीलों के पीछे भागता है....
3. कोर्ट में फैसला कुछ pronounce(सुनाया) किया जाता है और फैसला आता कुछ और ही है....
4. कोर्ट तारीख पर तारीख देती रहती है...
5. कई बार सरकारी वकील चुप हो जाते हैं और कई बार जोर-शोर से बोलते हैं....
6. सत्ताधारी दल अपने कार्यकाल में चहेते लोगों को न्यायिक व्यवस्था में पद देती है....
7. अपराधी खुद हम वकीलों को आकर बताते हैं कि मेरा मामला/ रिवीजन उस ज़ज़ के पास जाएगा....
8. आजकल लोग वकील करने की बजाय सीधा जज ही कर लेते हैं....
9. स्थाई लोक अदालतों, Consumer Forum सहित अन्य न्यायालयों में सिफारिशी वकील ज़ज़ बन जाते हैं....
10. जज साहब के घर पर कपड़े धोते-धोते आदमी न्यायालयों में नौकरी लग जाते हैं....
11. और भी बहुत सी बातें हैं जो बहुत से वकील और जनता जानती है....
लेकिन इस व्यवस्था के लिए जिम्मेदार कौन है.....?
राजस्थान में बार काउंसिल चुनाव से एक बड़ी जिम्मेदारी न्यायिक व्यवस्था ठीक करने के लिए 25 वकीलों को दी जाती है....यही चुनाव बार काउंसिल ऑफ इंडिया को बनाते हैं लेकिन क्या आज़ादी के बाद जो लोग बार काउंसिल में चुने गए उन्होंने इस व्यवस्था में कोई बदलाव किया....?
हम राजस्थान बार काउंसिल की बात करें तो यहाँ से 25 सदस्य चुने जाते हैं.... जिसमें 13 सदस्य 10 साल से अधिक प्रैक्टिस वाले होते हैं और 12 सदस्य 10 साल से कम वाले हो सकते हैं.....
दुर्भाग्य से आज़ादी के बाद आज तक 10 साल से कम प्रैक्टिस वाला एक भी वकील बार काउंसिल के लिए नहीं चुना गया.....जबकि 50% वोटर 10 साल से कम प्रैक्टिस वाले हैं...
और भी चौंकाने वाला तथ्य यह है कि वर्ष 2018 के इस चुनाव में 10 साल से कम प्रैक्टिस वाली 12 सीटों के लिए उम्मीदवार केवल 6 ही हैं.....
यानि जूनियर, उम्मीदवारी करने से भी घबराता है या उसे उम्मीदवारी कर सकने की जानकारी ही नहीं है...
कहीं ऐसा तो नहीं है कि सीनियर वकील इसी व्यवस्था को बनाए रखना चाहते हैं... ताकि जूनियर केवल उनके बस्ते और फाइलें उठाता रहे....
रसातल में डाल दिया गया है इस नोबेल प्रोफेशन को...
क्या आपने कभी पूछा है उन वकीलों से जो बार काउंसिल में कुर्सी पर बैठकर आए?
क्या उनसे यह पूछा जा सकता है कि आप पिछले 9 साल से इस कुर्सी पर बैठे क्या कर रहे थे?
क्या आजादी के बाद इन कुर्सियों पर बैठने वाले सभी लोगों ने न्यायिक व्यवस्था में कोई बदलाव किया या अपना विरोध भी दर्ज कराया?
राजस्थान बार काउंसिल के पास वकीलों का लगभग 76 करोड रुपया आज भी है जिसका ब्याज भी बड़ी रकम होता है.....
क्या वकीलों की इस रकम का पारदर्शी हिसाब हर एक वकील को मिलता है...?
क्या बार काउंसिल की वेबसाइट पर, इस हिसाब की जानकारी है....?
तो इन सभी सवालों का जवाब है "नहीं"
आज तक जो बार काउंसिल मेंबर बने उन्होंने कभी हिसाब बार काउंसिल की वेबसाइट पर क्यों नहीं डाला?
ज़ज़ और बार काउंसिल दोनों ही नहीं चाहते कि व्यवस्था बदले...क्योंकि व्यवस्था बदलने पर राज जाने का खतरा रहता है...
बार काउंसिल में नए सदस्य आने पर कोर्ट proseeding की ऑडियो वीडियो रिकॉर्डिंग की माँग उठ सकती है...
जजों के घर पर चपरासी काम कर रहे हैं जो तनख्वाह कोर्ट से लेते हैं और काम जज साहब के घर पर करते हैं....
आपको याद होगा अजमेर के एक सेशन जज अजय शारदा जो चपरासी की भर्तियों में दलालों के माध्यम से पैसे लेते पकड़े गए थे और जेल में भी रहे....
क्या ऐसे न्यायिक सिस्टम को देने के लिए हमको आजादी मिली थी क्या आजादी सही अर्थों में मिल पाई....?
आज न्यायिक व्यवस्था पर आम आदमी का विश्वास उठ रहा है.....सुप्रीम कोर्ट के ज़ज़ खुद प्रेस कॉन्फ्रेंस करके जनता को बता रहे हैं कि न्यायालयों में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है.....
क्या इसमें आप वकीलों की भूमिका उचित समझते हैं?
एक वकील साहब जिनकी 54 साल की प्रैक्टिस हो गई और वर्षों तक बार काउंसिल में रहे हैं और इस बार चुनाव 2018 में भी ताल ठोककर फिर से मैदान में आ गए हैं...कोई उनसे पूछे कि ऐसा क्या है इस चुनाव में, जो आप मरते दम तक इसे छोड़ना नहीं चाहते हो.....?और न्यायिक सिस्टम में कोई बदलाव भी नहीं लाना चाहते हो....
मेरा मानना है कि अंधकार में चले गए इन चुनावों को डिबेट के माध्यम से हर एक वकील तक और हर एक नागरिक(मालिक) तक पहुंचाया जाए....
और उस डिबेट को सार्वजनिक किया जाना चाहिए....
लेकिन सवाल करना तो सीखिए.....
मैं इस चुनाव को लड़ने का कोई गलत तरीका नहीं अपनाऊँगा चाहे एक भी वोट नहीं मिले....कुछ वकील बार काउंसिल सदस्य इसलिए बनते हैं ताकि चापलूसी करके जज बना जा सके....मैं उस भीड़ का हिस्सा भी नहीं बनना चाहता.....
अधिवक्ता इस भारत देश का सबसे जागरुक नागरिक(मालिक) है झूठे वादे और प्रलोभन से मतदाता का अपमान नहीं करना चाहता.....
मैं रसातल में जा चुके इस न्यायिक सिस्टम को ठीक करने आया हूँ.....इस न्यायिक सिस्टम में बैठे बेईमान लोग मुझे nuisance बता रहे हैं....
भ्रष्टाचार और आपराधिक प्रकृति के मुकदमों के झेल चुके पूर्व RPSC चेयरमैन डॉ. हबीब खान गौराण अब वकील बन चुके हैं,
आप खुद समझिए कौनसा जमा-जमाया सिस्टम खत्म होने की चिन्ता सता रही है ऐसे लोगों को.....?
कुल 57000 वकील मतदाताओं में से वर्ष 2008 के बाद बने नए युवा वकीलों की संख्या 26000 से ज्यादा है, इस बार काउंसिल चुनाव में विवेक से निर्णय लीजिएगा अन्यथा भावी पीढ़ी आपको कभी माफ नहीं करेगी....
जनता को लगता है यह वकीलों का आपस का मामला है लेकिन भूलें नहीं, बरबाद हो चुके इस न्यायिक सिस्टम की वजह से सबसे ज्यादा प्रताड़ित देश के नागरिक(मालिक) ही हैं अगर अब भी नहीं बोले तो फिर कब बोलोगे....
आज भी सीनियर वकील हमको जाति, क्षेत्र सहित अन्य बातों में उलझाते हुए मूल मुद्दे से भटकाकर, वोट माँग रहे हैं.....गुपचुप चल रहे इस खेल में शामिल होकर न्यायिक सुधार में अपनी भूमिका निभाईए....

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