कहते
है माँ जननी होती है ,,,कहते है पत्नी संरक्षक ,,पथप्रदर्शक होती है
,,,लेकिन अंगद परिवार के संस्कार है के उनके पुत्र अभिनन्दन लढ्ढा अपनी
स्वर्गीय माँ को ,,माँ तुलसी मेरे आंगन की ,,कहकर याद करते है ,,तो एक पति
,जिनके पीछे उनकी पत्नी का हौसला हमेशा साथ रहा है वोह पति,, दादा मदन मदीर
,रोज़ अपनी उस मातृत्व शक्ति के दर्शन कर हौसला हांसिल करते है
,,,,,,,,पत्नी की मूर्ति कवि पत्रकार पति के आंगन में ,,अगर लगी हो ,,तो सच
,, पत्नी प्रेम दर्शन ,,जन्म जन्मांतर,, पति पत्नी के साथ निभाने का वचन
,,,पूरा हो जाता है ,,इस वचन को पूरा कर दिखाया है ,,वरिष्ठ पत्रकार
,,जांबाज़ लोकतंत्र सैनिक ,,लोहियावादी ,,,आक्रामक लेखक ,,पत्रकार मेरे
आदर्णीय बढे भाई,,, दादा मदन मदीर ने ,,,,आपातकाल में लोकतंत्र के प्रहरी
के रूप में ,,,संघर्षशील रहे दादा मदन मदीर ,,न डरे ,,न बिके ,न विचलित हुए
,,,इसीलिए उनका प्रशासन और मंत्री ,,सन्तरियों से छत्तीस का आंकड़ा रहा है
,,,,दादा मदन मदीर एक आक्रामक लेखक ,,आक्रामक वक्ता होने की वजह से
,,आपातकाल में मीसाबंदी बनाकर जेल भेजे गए ,,,इन्हें चुप रहकर छूट जाने के
ऑफर दिए गए ,,लेकिन इस जांबाज़ सिपाही ने ,,लोकतंत्र के रक्षक के रूप में
जांबाज़ सिपाही बनकर ,,सरकार के सभी ऑफर ठुकरा दिए ,,जयप्रकाश नारायण
,,विश्व प्रताप सिंह ,,मोरारजी देसाई ,,इंद्रकुमार गुजराल ,,चौधरी देवीलाल
,,जॉर्जफ़र्नाडीज़ सहित कई वरिष्ठ लोगो के साथ,,, कन्धे से कन्धा मिलाकर
,,किसानों ,,मज़दूरों ,,पत्रकारों के लिए संघर्ष करने वाले ,,,दादा मदन
मदीर,,, आज़ादी के बाद से अब तक ,,,की बदलाव आने वाली पत्रकारिता के,,,
आइकॉन है ,,पथप्रदर्शक है ,,,,पत्रकारों के लिए एक गाइड है ,,एक बुलन्द
आवाज़ है ,,,,मदन मदीर जब बोलते है ,,तो भ्रस्टाचारीयो ,,लुंज पुंज व्वयस्था
के खिलाफ तार्किक शब्दो में आग उगलते ,है ,जब लिखते है तो हवा का रुख
बदलने की हिम्मत दिलाते है ,,,जी हाँ दोस्तों,,, राजस्थान के बूंदी जिले
में,,, पत्रकारिता की दुनिया में ,,,पांव जमाने वाले ,, देनिक अंगद ने,,,
कोटा में भी अपना पाँव जमाने की कोशिश की हे,,, जिसे खुदा कामयाब करे,,,
लेकिन अंगद के मालिक ने,,, बूंदी या हाडोती या देश भर में ,,पत्रकारिता के
विविध आयाम स्थापित कर ,,,बहतरीन मिसाल कायम की हे ,,,अंगद के मालिक
,,,वरिष्ठ पत्रकार,, मदन मदिर हें,,, जो दादा मदन मदिर के नाम से
,,,विख्यात भी हें और भ्रष्टाचारियो में ,,,खतरनाक लेखन के लियें,, कुख्यात
भी हे,,, दादा मदन मदिर ने,,, पत्रकारिता के इस पढाव में,, कई सरकारें
देखी हें ,,,लेकिन इन्होने कोमरेड होने का,,, अपना ठप्पा नहीं बदला,,, वेसे
तो दादा मदन मदिर,,, एक अच्छे पत्रकार ,लेखक और कवि तो हे ही ,,लेकिन यह
एक अच्छे ही नहीं ,,,बहुत अच्छे व्यक्ति,,,अच्छे पति और पिता भी,, साबित
हुए हे,, मन से समाजवादी ये दादा मदन मदिर,,, आज भी पत्रकारिता के माध्यम
से ,,,,समाजवाद का ही झंडा बुलंद करते फिरते हें,,, इस मामले में,,, उन्हें
कई कठिनाइयों के दोर से भी,,, गुजरना पढ़ रहा हे लेकिन,,, जुझारू संघर्ष
शील यह व्यक्तित्व ,,,अपने पुत्रों और मित्रों के बल पर,,, हर समस्या पर
,,विजेता रहा हे और आज ,,,इसीलियें इनका जीवन अंगद के पाँव की तरह,,,
अनुकरणीय बनता जा रहा हे ,,खुद अपने क़लम से नियमित सम्पादकीय लिखने वाले,,
शायद देश के,,, यह निरंतर पत्रकार हें ,,,,जिनका सम्पादकीय पढने के
लियें,,, लोग रोज़ इनितिज़र करते हें ,,,जी हाँ दोस्तों,,, रोज़ मर्रा
,,,अपने सम्पादकीय में,, कविता के कुछ शब्दों से,,, शुरू कर समस्या और
समाधान का सुझाव,, गागर में सागर बना कर ,,पेश करने की कला ,,,शब्दों के इस
जादूगर में हें ,,, लेकिन केवल उम्र के पढाव के लिहाज़ से,,, बूढ़े हो चले
यह दादा मदन मदिर,,, अब पत्नी की म्रत्यु के बाद कमजोर से पढ़ गये
हें,,,,,अर्धांगनी के मोह से उबार नहीं पाए है ,, उम्र के पढ़ाव में
बुज़ुर्गियत की बात में ,,,इसलियें कहता हूँ के बस इन्हें,,, उम्र के कारण
ही,,, दादा कहा जा सकता हे ,,,लेकिन यह शख्सियत,,, मन कर्म से,,,, चंचल और
जांबाज़ हे,,, यारों के यार और,,, दुश्मन को छटी का दूध याद दिला कर,,,,
ज़मींन चटाने वाले ,,,यह दादा ,,,,अपनी पत्नी से,,, इतना प्यार करते हें,,
के इन्होने खुद के घर में ,,,अपनों की स्मर्तियाँ ,,,अपने साथ रखने के
लियें,,,,अपने अंगना में पत्नी की मूर्ति स्थापित कर,,, पत्नी को,,, घर
आंगन बना दिया,,, दिल में बसी पत्नी की मूर्ति,,, को घर में उकेर कर,,,
उसको लोकार्पित भी करवाया हे ,,,,, इन जनाब द्वारा लिखित ,, नर स्व लिखित
पुस्तक शब्द यात्रा का विमोचन पिछले दिनों इन्होंने करवाया हे और इसके
तुरंत बाद ,,,कुछ पंक्तियों के साथ " झांके कोई भी दर्पण में , तेरी ही
तस्वीर दिखती हे,,,,चाँद पुनमी लखे सरोवर ,तेरी लगती हे परछाई,,,,जीवन के
अर्थों में घुल कर ,तुम बन गयीं जिंदगी मेरी,,,,,इतने हुए एकाकार तेरे बगेर
झूंठे लगते अब ब्याह सगाई ,,,,,दोस्तों इस महान लेखक,,, महान शख्सियत की
आँखे नम थी और पत्नी की याद को,,, अमर अजर बनाने का संकल्प,,, इनके मन और
मस्तिष्क में था,,, इसीलियें इस शख्सियत ने,,, अपनी नम आँखों को रुमाल से
पोंछा और घर के आँगन में,,, स्थापित की गयी,,, स्वंम की अर्धाग्नी,,,
स्वर्गीय श्रीमिति शाति देवी की मूर्ति का अनावरण,,, बाबा उमा केलाश पति
दम्पत्ति से करवाया,,, इस दादा मदन मदिर की खुद के दुखों और एकाकी पन से
लड़ने और जूझने की,,, इस दादागिरी भरे अंदाज़ को देख कर सब आवाक थे ,,बच्चो
में बच्चे ,,बुज़ुर्गो में बुज़ुर्ग ,,युवाओ में युवा बनकर क़लम की आज़ादी को
ज़िंदा रखने वाली इस शख्सियत को मेरा सलाम ,,मेरा सेल्यूट ,,,,,,,,अख्तर खान
अकेला कोटा राजस्थान

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