परतंत्रता इंसान की मजबूरी होती है ,,क़लम हाथ में हो तो ,,भी उसके विचार
घुट घुट कर दम तोड़ते है ,,लरज़ते है ,,तड़पते है ,,,,अलफ़ाज़ मालिक के इशारे पर
थिरकते है ,,लेकिन ,,आज़ादी इन्ही अल्फ़ाज़ों को निष्पक्ष ,,बनाकर दमदार
,,मौलिक ,निर्भीक बना देते है ,,, आज़ादी की ख़ुशी में थिरकते अलफ़ाज़ ,,भाई
धीरेन्द्र राहुल की क़लम से अब आग उगल रहे है ,,पहले वोह एक प्रतिष्ठित
दैनिक के संवाददाता ,,मुख्यसंवाददाता ,,फिर सम्पादक रहे है ,,लेकिन सच यही
है के पेंशन के बाद उनकी क़लम आज़ाद होकर खुली सांस ले रही है ,,उनकी क़लम रोज़
सच्चे और अच्छे अलफ़ाज़ उगल रही है ,,,मेरे बढे भाई धीरेन्द्र राहुल ,,एक
निष्पक्ष ,,,निर्भीक पत्रकार रहे है ,उनका स्वभाव सच देखने ,,सच लिखने
,निर्भीकता से अपना नज़रिया बेबाकी से सभी के सामने रखने का रहा है ,,लेकिन
वोह ,,,सिर्फ लिख सकते थे ,छापना तो दुसरो के हाथ में था ,शायद वोह घुट भी
रहे होंगे ,,वोह खुश भी नहीं होंगे ,,,लेकिन अब ,इस बेबाक पत्रकार को
,,,सोशल मिडिया ने एक निर्भीक मंच दिया है ,,एक बेबाक चौपाल दी है
,,धीरेन्द्र राहुल रोज़ लिखते थे ,,रोज़ लिखते है ,लेकिन बहुत फ़र्क़ है तब और
अब में ,,मुझेः गर्व है के मेरे बढे भाई तब भी बेबाकी से बोलते थे ,,बेबाकी
से लिखते थे ,,वोह बात अलग है ,,मालिकाना सेंसरशिप में उनके विचार ,,उनके
अल्फ़ाज़ शहीद होते हो ,लेकिन अब वोह आज़ाद ,है ,,,सेवानिवृत्ति के बाद कुछ
दिन ,,खामोश रहने के बाद वोह सोशल मिडिया पर चहके है ,,,उनके निर्भीक
अल्फ़ाज़ ,,बेबाक विचार ,,रचनात्मक सोच ,,सोशल मिडिया को एक नई दिशा की तरफ
ले जा रही है ,,अख़बार में वोह क्या लिखते है ,,यह अलग बात है ,,लेकिन उनके
ज्वलंत ,,जीवंत विचार ,,उनके गहरी सोच ,,सोशल मीडिया पर प्रकाशित उनके
अल्फ़ाज़ों में है ,,एक वक़्त था जब भाजपा के एक पूर्व केबिनेट मंत्री द्वारा
पत्रकारों को बुलाकर देरी से आने पर कोटा के पत्रकारों ने उनका बहिष्कार
किया ,,था ,,तब इन राहुल सर ने मासूमियत से ,,बेबाक राय रखते हुए ,पत्रकार
मंडल से कहा था ,,आप लोग अख़बार के मालिक है ,,केबिनेट मंत्री के हर समारोह
के फैसले को आप निभा सकते है ,लेकिन में एक अख़बार का नौकर हूँ ,,मालिक की
मर्ज़ी के खिलाफ नहीं जा सकता ,,उस वक़्त जब वोह यह अल्फ़ाज़ कह रहे थे ,उनकी
आँखो में बेबसी ,,लाचारी नहीं ,,,पत्रकारिता मालिकाना सिस्टम के खिलाफ नफरत
,,और अंगारे थे ,,लेकिन क्या करते ,,उन्होंने दिल पत्थर रखकर सच कहा
,,,,अब राजस्थान के सभी क्षेत्रो में अपनी पत्रकारिता का जोहर दिखाकर
सेवानिवृत्ति के बाद सुकून से ,,अपनी कर्म भूमि कोटा में रहकर ,,पत्रकार
धीरेन्द्र राहुल ,अपने रचनात्मक ,बेबाक ,,,निष्पक्षः ,निर्भीक विचारो से
,सोशल मीडिया के चहेते बने है ,,,,,आज़ाद क़लम क्या होती है ,,में खुद इस
परिवर्तन को देखकर हैरान हूँ ,,मेने पहले भी उनकी क़लम देखी है ,लेकिन आज
धारधार क़लम ,,निष्पक्ष अल्फ़ाज़ मुझे हैरान किये हुए है ,,धीरेन्द्र राहुल
,,पत्रकारिता के साथ ,,एक चिंतक ,,,एक विचारक ,,एक कुशल वक्ता ,,समाजसुधारक
,,,कुशल पत्रकार ,,सम्पादक ,,है ,,,पर्यावरण की समझ इतनी के जो आज दिल्ली
के लोग ,,कोटा के लोग बढे बढे शहरो के लोग इस समस्या को लेकर चिंतित है
,,धीरेन्द्र राहुल इस समस्या के प्रति लोगो को जागरूक कर ,ऐसी समस्या से
जूझने के लिए पूर्व सुझाव लिखते रहे है ,,लोगो तक बोलकर भी पहुंचाते रहे है
,,,,धीरेन्द्र राहुल यूँ तो किसी परिचय के मोहताज नहीं ,,लेकिन कोटा में
रहकर ,,उन्होंने ,,कॉमरेडों के बढे आन्दोलन देखे है ,,हाड़ोती विश्वविद्यालय
की आग देखी है ,,कई फसादात ,,कई संघर्ष देखे है ,कई इवेंट्स ,,कई मेले
दशहरे के कार्यकम उनमे लाठीचार्ज आंसू गैस के वोह गवाह बनाकर जीवंत
रिपोर्टिंग करने को लेकर वोह चर्चित रहे है ,,कई चुनावो में उनकी एक लाइन
,,,प्रत्याक्षियों के पक्ष में माहौल बना देती थी ,तो एक लाइन प्रत्याक्षी
के खिलाफ वातावरण बना देती थी ,,धीरेन्द्र राहुल ,पत्रकारिता जैसी कोयले की
खान में ,,जहाँ पीत पत्रकारिता के इलज़ाम लगना आम बात है ,,वोह वहां रहकर
भी बेदाग़ रहे है ,,बेबाक रहे है ,निष्पक्ष रहे है ,,निर्भीक रहे है ,,कई
हमलो के बाद भी उनकी क़लम को कोई डरा नहीं सका ,,कई लाठियों के बाद भी ,,कोई
भी पुलिसकर्मी उनकी निष्पक्ष रिपोर्टिंग के हौसले को रोक नहीं सका
,,,,,,धीरेन्द्र राहुल की क़लम सोशल मिडिया पर यूँ ही मेरे जैसे नौसिखियों
,,अनाडियो को मार्गदर्शन ,,देती रहे ,,बस इसी उम्मीद के साथ ,,मेरे बढे
भाई धीरेन्द्र राहुल की जीवन शैली ,,,सात्विक पत्रकारिता को मेरा सलाम
,,,मेरा सेल्यूट ,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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