(तो तुम देखते क्या होता) ऐ इमानदारों शैतान के क़दम ब क़दम न चलो और जो
शख़्स शैतान के क़दम ब क़दम चलेगा तो वह यक़ीनन उसे बदकारी और बुरी बात
(करने) का हुक्म देगा औार अगर तुम पर ख़ुदा का फ़ज़ल (व करम) और उसकी रहमत न
होती तो तुममें से कोई भी कभी पाक साफ न होता मगर ख़ुदा तो जिसे चहता है
पाक साफ़ कर देता है और ख़ुदा बड़ा सुनने वाला वाकिफ़कार है (21)
और तुममें से जो लोग ज़्यादा दौलत और मुक़द्दर वालें है क़राबतदारों और
मोहताजों और ख़ुदा की राह में हिजरत करने वालों को कुछ देने (लेने) से क़सम
न खा बैठें बल्कि उन्हें चाहिए कि (उनकी ख़ता) माफ कर दें और दरगुज़र करें
क्या तुम ये नहीं चाहते हो कि ख़ुदा तुम्हारी ख़ता माफ करे और खु़दा तो
बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (22)
बेशक जो लोग पाक दामन बेख़बर और इमानदार औरतों पर (जि़ना की) तोहमत लगाते हैं उन पर दुनिया और आखि़रत में (ख़ुदा की) लानत है और उन पर बड़ा (सख़्त) अज़ाब होगा (23)
जिस दिन उनके खि़लाफ उनकी ज़बानें और उनके हाथ उनके पावँ उनकी कारस्तानियों की गवाही देगें (24)
उस दिन ख़ुदा उनको ठीक-ठीक उनका पूरा पूरा बदला देगा और जान जाएँगें कि ख़ुदा बिल्कुल बरहक़ और (हक़ का) ज़ाहिर करने वाला है (25)
गन्दी औरते गन्दें मर्दों के लिए (मुनासिब) हैं और गन्दे मर्द गन्दी औरतो के लिए और पाक औरतें पाक मर्दों के लिए (मौज़ूँ) हैं और पाक मर्द पाक औरतों के लिए लोग जो कुछ उनकी निस्बत बका करते हैं उससे ये लोग बुरी उल जि़म्मा हैं उन ही (पाक लोगों) के लिए (आखि़रत में) बख़शिश है (26)
और इज़्ज़त की रोज़ी ऐ इमानदारों अपने घरों के सिवा दूसरे घरों में (दर्राना) न चले जाओ यहाँ तक कि उनसे इजाज़त ले लो और उन घरों के रहने वालों से साहब सलामत कर लो यही तुम्हारे हक़ में बेहतर है (27)
(ये नसीहत इसलिए है) ताकि तुम याद रखो पस अगर तुम उन घरों में किसी को न पाओ तो तावाक़फियत कि तुम को (ख़ास तौर पर) इजाज़त न हासिल हो जाए उन में न जाओ और अगर तुम से कहा जाए कि फिर जाओ तो तुम (बे ताम्मुल) फिर जाओ यही तुम्हारे वास्ते ज़्यादा सफाई की बात है और तुम जो कुछ भी करते हो ख़ुदा उससे खूब वाकिफ़ है (28)
इसमें अलबत्ता तुम पर इल्ज़ाम नहीं कि ग़ैर आबाद मकानात में जिसमें तुम्हारा कोई असबाब हो (बे इजाज़त) चले जाओ और जो कुछ खुल्लम खुल्ला करते हो और जो कुछ छिपाकर करते हो खुदा (सब कुछ) जानता है (29)
(ऐ रसूल) इमानदारों से कह दो कि अपनी नज़रों को नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें यही उनके वास्ते ज़्यादा सफाई की बात है ये लोग जो कुछ करते हैं ख़ुदा उससे यक़ीनन ख़ूब वाकि़फ है (30)
बेशक जो लोग पाक दामन बेख़बर और इमानदार औरतों पर (जि़ना की) तोहमत लगाते हैं उन पर दुनिया और आखि़रत में (ख़ुदा की) लानत है और उन पर बड़ा (सख़्त) अज़ाब होगा (23)
जिस दिन उनके खि़लाफ उनकी ज़बानें और उनके हाथ उनके पावँ उनकी कारस्तानियों की गवाही देगें (24)
उस दिन ख़ुदा उनको ठीक-ठीक उनका पूरा पूरा बदला देगा और जान जाएँगें कि ख़ुदा बिल्कुल बरहक़ और (हक़ का) ज़ाहिर करने वाला है (25)
गन्दी औरते गन्दें मर्दों के लिए (मुनासिब) हैं और गन्दे मर्द गन्दी औरतो के लिए और पाक औरतें पाक मर्दों के लिए (मौज़ूँ) हैं और पाक मर्द पाक औरतों के लिए लोग जो कुछ उनकी निस्बत बका करते हैं उससे ये लोग बुरी उल जि़म्मा हैं उन ही (पाक लोगों) के लिए (आखि़रत में) बख़शिश है (26)
और इज़्ज़त की रोज़ी ऐ इमानदारों अपने घरों के सिवा दूसरे घरों में (दर्राना) न चले जाओ यहाँ तक कि उनसे इजाज़त ले लो और उन घरों के रहने वालों से साहब सलामत कर लो यही तुम्हारे हक़ में बेहतर है (27)
(ये नसीहत इसलिए है) ताकि तुम याद रखो पस अगर तुम उन घरों में किसी को न पाओ तो तावाक़फियत कि तुम को (ख़ास तौर पर) इजाज़त न हासिल हो जाए उन में न जाओ और अगर तुम से कहा जाए कि फिर जाओ तो तुम (बे ताम्मुल) फिर जाओ यही तुम्हारे वास्ते ज़्यादा सफाई की बात है और तुम जो कुछ भी करते हो ख़ुदा उससे खूब वाकिफ़ है (28)
इसमें अलबत्ता तुम पर इल्ज़ाम नहीं कि ग़ैर आबाद मकानात में जिसमें तुम्हारा कोई असबाब हो (बे इजाज़त) चले जाओ और जो कुछ खुल्लम खुल्ला करते हो और जो कुछ छिपाकर करते हो खुदा (सब कुछ) जानता है (29)
(ऐ रसूल) इमानदारों से कह दो कि अपनी नज़रों को नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें यही उनके वास्ते ज़्यादा सफाई की बात है ये लोग जो कुछ करते हैं ख़ुदा उससे यक़ीनन ख़ूब वाकि़फ है (30)
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