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17 दिसंबर 2017

क़ुरान का सन्देश

मूसा ने कहा खु़दा ज़रूर फरमाता है कि वह गाय न तो इतनी सधाई हो कि ज़मीन जोते न खेती सीचें भली चंगी एक रंग की कि उसमें कोई धब्बा तक न हो, वह बोले अब (जा के) ठीक-ठीक बयान किया, ग़रज़ उन लोगों ने वह गाय हलाल की हालाँकि उनसे उम्मीद न थी वह कि वह ऐसा करेंगे (71) और जब तुमने एक शख़्स को मार डाला और तुममें उसकी बाबत फूट पड़ गई एक दूसरे को क़ातिल बताने लगा जो तुम छिपाते थे (72)
खु़दा को उसका ज़ाहिर करना मंजू़र था बस हमने कहा कि उस गाय को कोई टुकड़ा लेकर इस (की लाश) पर मारो यूँ खु़दा मुर्दे को जि़न्दा करता है और तुम को अपनी कु़दरत की निशानियाँ दिखा देता है (73)
ताकि तुम समझो फिर उसके बाद तुम्हारे दिल सख़्त हो गये बस वह पत्थर के मिस्ल (सख़्त) थे या उससे भी ज़्यादा (सख्त़) क्योंकि पत्थरों में बाज़ तो ऐसे होते हैं कि उनसे नहरें जारी हो जाती हैं और बाज़ ऐसे होते हैं कि उनमें दरार पड़ जाती है और उनमें से पानी निकल पड़ता है और बाज़ पत्थर तो ऐसे होते हैं कि खु़दा के ख़ौफ से गिर पड़ते हैं और जो कुछ तुम कर रहे हो उससे खु़दा ग़ाफिल नहीं है (74)
(मुसलमानों) क्या तुम ये लालच रखते हो कि वह तुम्हारा (सा) ईमान लाएँगें हालाँकि उनमें का एक गिरोह साबिक़ में (पहले) ऐसा था कि खु़दा का कलाम सुनता था और अच्छी तरह समझने के बाद उलट फेर कर देता था हालाँकि वह खू़ब जानते थे और जब उन लोगों से मुलाक़ात करते हैं (75)
जो ईमान लाए तो कह देते हैं कि हम तो ईमान ला चुके और जब उनसे बाज़-बाज़ के साथ तखि़लया (अकेले) में मिलते हैं तो कहते हैं कि जो कुछ खु़दा ने तुम पर (तौरेत) में ज़ाहिर कर दिया है क्या तुम (मुसलमानों को) बता दोगे ताकि उसके सबब से कल तुम्हारे खु़दा के पास तुम पर हुज्जत लाएँ क्या तुम इतना भी नहीं समझते (76)
लेकिन क्या वह लोग (इतना भी) नहीं जानते कि वह लोग जो कुछ छिपाते हैं या ज़ाहिर करते हैं खु़दा सब कुछ जानता है (77)
और कुछ उनमें से ऐसे अनपढ़ हैं कि वह किताबे खु़दा को अपने मतलब की बातों के सिवा कुछ नहीं समझते और वह फक़त ख़्याली बातें किया करते हैं, (78)
बस वाए हो उन लोगों पर जो अपने हाथ से किताब लिखते हैं फिर (लोगों से कहते फिरते) हैं कि यह खु़दा के यहाँ से (आई) है ताकि उसके ज़रिये से थोड़ी सी क़ीमत (दुनयावी फ़ायदा) हासिल करें बस अफसोस है उन पर कि उनके हाथों ने लिखा और फिर अफसोस है उनपर कि वह ऐसी कमाई करते हैं (79)
और कहते हैं कि गिनती के चन्द दिनों के सिवा हमें आग छुएगी भी तो नहीं (ऐ रसूल) इन लोगों से कहो कि क्या तुमने खु़दा से कोई इक़रार ले लिया है कि फिर वह किसी तरह अपने इक़रार के खि़लाफ़ हरगिज़ न करेगा या बे समझे बूझे खु़दा पर बोहतान जोड़ते हो (80)

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