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02 नवंबर 2017

क़ुरान का सन्देश

और हम ने ही इबराहीम और लूत को (सरकशों से) सही व सालिम निकालकर इस सर ज़मीन (शाम बैतुलमुक़द्दस) में जा पहुँचाया जिसमें हमने सारे जहाँन के लिए तरह-तरह की बरकत अता की थी (71)
और हमने इबराहीम को इनाम में इसहाक़ (जैसा बैटा) और याकू़ब (जैसा पोता) इनायत फरमाया हमने सबको नेक बख़्त बनाया (72) 
और उन सबको (लोगों का) पेशवा बनाया कि हमारे हुक्म से (उनकी) हिदायत करते थे और हमने उनके पास नेक काम करने और नमाज़ पढ़ने और ज़कात देने की “वही” भेजी थी और ये सब के सब हमारी ही इबादत करते थे (73)
और लूत को भी हम ही ने फ़हमे सलीम और नबूवत अता की और हम ही ने उस बस्ती से जहाँ के लोग बदकारियाँ करते थे नजात दी इसमें शक नहीं कि वह लोग बड़े बदकार आदमी थे (74)
और हमने लूत को अपनी रहमत में दाखि़ल कर लिया इसमें शक नहीं कि वह नेकोंकार बन्दों में से थे (75)
और (ऐ रसूल लूत से भी) पहले (हमने) नूह को नबूवत पर फ़ायज़ किया जब उन्होंने (हमको) आवाज़ दी तो हमने उनकी (दुआ) सुन ली फिर उनको और उनके साथियों को (तूफ़ान की) बड़ी सख़्त मुसीबत से नजात दी (76)
और जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया था उनके मुक़ाबले में उनकी मदद की बेशक ये लोग (भी) बहुत बुऱे लोग थे तो हमने उन सबको डुबा मारा (77)
और (ऐ रसूल इनको) दाऊद और सुलेमान का (वाक़्या याद दिलाओ) जब ये दोनों एक खेती के बारे में जिसमें रात के वक़्त कुछ लोगों की बकरियाँ (घुसकर) चर गई थी फैसला करने बैठे और हम उन लोगों के कि़स्से को देख रहे थे (कि बाहम इक़तेलाफ़ हुआ) (78)
तो हमने सुलेमान को (इसका सही फ़ैसला समझा दिया) और (यूँ तो) सबको हम ही ने फहमे सलीम और इल्म अता किया और हम ही ने पहाड़ों को दाऊद का ताबेए कर दिया था था कि उनके साथ (खु़दा की) तस्बीह किया करते थे और परिन्दों को (भी ताबेए कर दिया था) और हम ही (ये अजाऐब) किया करते थे (79)
और हम ही ने उनको तुम्हारी जंगी पोशिश (जि़राह) का बनाना सिखा दिया ताकि तुम्हें (एक दूसरे के) वार से बचाए तो क्या तुम (अब भी) उसके शुक्रगुज़ार न बनोगे (80)

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