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12 नवंबर 2017

क़ुरान का सन्देश

निरे खुरे अल्लाह के होकर (रहो) उसका किसी को शरीक न बनाओ और जिस शख़्स ने (किसी को) खु़दा का शरीक बनाया तो गोया कि वह आसमान से गिर पड़ा फिर उसको (या तो दरम्यिान ही से) कोई (मुरदा ख़्ववार) चिडि़या उचक ले गई या उसे हवा के झोंके ने बहुत दूर जा फेंका (31) 
ये (याद रखो) और जिस शख़्स ने खु़दा की निशानियों की ताज़ीम की तो कुछ शक नहीं कि ये भी दिलों की परहेज़गारी से हासिल होती है (32)
और इन चार पायों में एक मईन मुद्दत तक तुम्हार लिये बहुत से फायदें हैं फिर उनके जि़बाह होने की जगह क़दीम (इबादत) ख़ाना ए काबा है (33)
और हमने तो हर उम्मत के वास्ते क़ुरबानी का तरीक़ा मुक़र्रर कर दिया है ताकि जो मवेशी चारपाए खु़दा ने उन्हें अता किए हैं उन पर (जि़बाह के वक़्त) खु़दा का नाम ले ग़रज़ तुम लोगों का माबूद (वही) यकता खु़दा है तो उसी के फरमाबरदार बन जाओ (34)
और (ऐ रसूल हमारे) गिड़गिड़ाने वाले बन्दों को (बेहश्त की) खु़शख़बरी दे दो ये वो हैं कि जब (उनके सामने) खु़दा का नाम लिया जाता है तो उनके दिल सहम जाते हैं और जब उनपर कोई मुसीबत आ पड़े तो सब्र करते हैं और नमाज़ पाबन्दी से अदा करते हैं और जो कुछ हमने उन्हें दे रखा है उसमें से (राहे खु़दा में) ख़र्च करते हैं (35)
और कु़रबानी (मोटे गदबदे) ऊँट भी हमने तुम्हारे वास्ते खु़दा की निशानियों में से क़रार दिया है इसमें तुम्हारी बहुत सी भलाईयाँ हैं फिर उनका तांते का तांता बाँध कर हज करो और उस वक़्त उन पर खु़दा का नाम लो फिर जब उनके दस्त व बाजू कटकर गिर पड़े तो उन्हीं से तुम खु़द भी खाओ और क़नाअत पेशा फ़क़ीरों और माँगने वाले मोहताजों (दोनों) को भी खिलाओ हमने यूँ इन जानवरों को तुम्हारा ताबेए कर दिया ताकि तुम शुक्रगुज़ार बनो (36)
खु़दा तक न तो हरगिज़ उनके गोश्त ही पहुँचेगे और न खू़न मगर (हाँ) उस तक तुम्हारी परहेज़गारी अलबत्ता पहुँचेगी ख़ुदा ने जानवरों को (इसलिए) यूँ तुम्हारे क़ाबू में कर दिया है ताकि जिस तरह खु़दा ने तुम्हें बनाया है उसी तरह उसकी बड़ाई करो (37)
और (ऐ रसूल) नेकी करने वालों को (हमेशा की) ख़ु़शख़बरी दे दो इसमें शक नहीं कि खु़दा ईमानवालों से कुफ़्फ़ार को दूर दफा करता रहता है खु़दा किसी बद दयानत नाशुक्रे को हरगिज़ दोस्त नहीं रखता (38)
जिन (मुसलमानों) से (कुफ़्फ़ार) लड़ते थे चूँकि वह (बहुत) सताए गए उस वजह से उन्हें भी (जिहाद) की इजाज़त दे दी गई और खु़दा तो उन लोगों की मदद पर यक़ीनन क़ादिर (व तवाना) है (39)
ये वह (मज़लूम हैं जो बेचारे) सिर्फ इतनी बात कहने पर कि हमारा परवरदिगार खु़दा है (नाहक़) अपने-अपने घरों से निकाल दिए गये और अगर खु़दा लोगों को एक दूसरे से दूर दफ़ा न करता रहता तो गिरजे और यहूदियों के इबादत ख़ाने और मजूस के इबादतख़ाने और मस्जिद जिनमें कसरत से खु़दा का नाम लिया जाता है कब के कब ढहा दिए गए होते और जो शख़्स खु़दा की मदद करेगा खु़दा भी अलबत्ता उसकी मदद ज़रूर करेगा बेशक खु़दा ज़रूर ज़बरदस्त ग़ालिब है (40)

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