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05 जुलाई 2017

राजस्थान हाईकोर्ट पुराने मुक़दमो के समयबद्ध निस्तारण को लेकर सख्त हो गया है

राजस्थान हाईकोर्ट पुराने मुक़दमो के समयबद्ध निस्तारण को लेकर सख्त हो गया है ,,आज राजस्थान की सभी अधीनस्थ न्यायालयों को पांच व् दस साल पुराने मुक़दमो के निस्तारण मामले में हाईकोर्ट ने कठोर मार्गदर्शन जारी किये है ,हाईकोर्ट ने अपने परिपत्र में पी रामचंद्र राव बनाम कर्नाटक राज्य मामले में दिए गये दिशा निर्देशों का भी हवाला दिया गया है ,,हाईकोर्ट के जारी पत्र में सभी अधीनस्थ न्यायिक मजिस्ट्रेट एवं जजों को आपराधिक प्रकरण के निस्तारण मामले में दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 436 ऐ के विशिष्ठ प्रावधान के तहत जेल में बंद अपराधियों के विचारण में समयावधि पूरी होने पर उन्हें तुरंत ज़मानत पर रिहा करने के निर्देश भी है ,,जबकि ज़मानत के प्रार्थना पत्रों के निस्तारण की समय सीमा सात दिन की तय की गयी है ,,इसी तरह से पुराने दस साल वाले मामलो का निस्तारण 31 दिसम्बर 2017 एवं पांच साल पुराने मामलो के लिए 30 सितम्बर 2018 की डेड लाइन दी गयी है ,,पुराने मामलों को रीडर पर मेकेनिकल वे में छोड़ने की अनुमति नहीं होगी ,,खुद पीठासीन अधिकारी को इस बारे में ऑर्डरशीट संधारित करना होगी ,,महिला एवं वरिष्ठ नागरिको के संबंधित मामलो को त्वरित प्राथमिकता के आधार पर निस्तारण के निर्देश है ,,,इस मामले के लिए पीठासीन अधिकारियो की प्रतिमाह ,,और पखवाड़ा बैठक में आत्मचिंतन होगा ,,जज सुपरवाइज़ करेंगे ,,पूरी जानकारी हाईकोर्ट को लगातार भेजी जाना है ,साथ ही निरीक्षक प्रभारी हाईकोर्ट जज को भी निस्तारण और पेंडिंग मामलो की संख्या और देरी के कारणों की जानकारी देना होगा ,,, राजस्थान हाईकोर्ट ,,सुप्रीमकोर्ट सेकड़ो बार ऐसे परिपत्र निकाल चुका है ,,सुप्रीमकोर्ट ,हाईकोर्ट कई मामलो में मार्गदर्शन देकर ,,अधीनस्थ न्यायलयों को पाबंद कर चुके है ,,निरीक्षक जजों को मार्गदर्शित किया गया है ,,लगातार उचित मार्गदर्शन के साथ परिपत्र जारी किये जाते रहे है ,,लेकिन घरेलु हिंसा अधिनियम ,,चेक अनादरण मामलो सहित मिसलेनियस क़ानूनों के असंख्य मामले होते है ,साथ ही नियमित दर्ज मुक़दमे ,सिविल मामले ,,अपील ,रिविज़न लगातार सुनवाई के लिए आते है ,खुद दण्डप्रक्रिया संहिता में सेशन ट्रायल का मतलब दिन प्रतिदिन सुनवाई से रखा गया है ,,कमिटल फिर डिस्चार्ज ,,चार्ज की अपील ,रिविज़न के भी असंख्य मामले है ,ज़मानत की दरख्वास्त निचली अदालत से ख़ारिज होने पर सेशन में पेश होने फिर आदेश नीचे आने ,,ज़मानत तस्दीक़ होने में भी भारी समय खराब होता है ,,,जबकि अदालतों में स्टाफ की कमी है ,,बैठने की व्यवस्था नहीं है ,,जजों और मजिस्ट्रेटों की कमी के कारण ऐवजी काम या अतिरिक्त चार्ज दे रखा है ,,,इधर बाबुओ ,,रीडरों के काम पर भी निगरानी नहीं है ,,गवाहों के सम्मन समयः पर निकले या नहीं ,निकले तो पुलिस ने तामील कराकर पहुंचाए या नहीं ,,नहीं पहुचाये तो क्या कार्यवाही हुई ,,पुलिस के खिलाफ प्रसंज्ञान लिया या नहीं ,,अभियुक्त की तलबी हुई या नहीं ,,,मुक़दमो के प्रथम प्रस्तुति के बाद तुरंत रिपोर्ट होकर पत्रावली नियत तिथि पर पीठासीन अधिकारी की टेबल पर निर्धारित समय पर क्यों नहीं पहुंचती रिपोर्ट में बचकाने ऑब्जेक्शन ,नक़ल का समय पर नहीं मिलना ,,गवाहों का नहीं आना ,,कभी पुलिस की कमी के कारण ,,बंदी की बीमारी के कारण ,,अन्य शहर में मुक़दमे में जाने के कारण बंदी भी अदालत नहीं पहुँचपाते है पर नतीजन मामला आगे बढ़ता है ,,गवाह के वक़्त एफ एस एल रिपोर्ट नहीं आती है ,,कई ज़ब्तशुदा माल समय पर नहीं आता है ,,कई ऐसी मजबूरियां है जिनकी वजह से भी सुनवाई में देरी होती है ,चेक अनादरण के मामले छह माह में निस्तारित होना क़ानून में लिखा है ,,लेकिन कई अदालते एक तारीख ही छह छह माह की दे रही है ,घरेलु हिंसा में महिलाओ को तत्काल न्याय के लिए तुरतं अंतरिम मामले की सुनवाई का क़ानून है लेकिन प्रस्तुत प्रकरण की रिपोर्ट और तलबी में ही तारीख एक दो माह की आमतौर पर दी जाती है ,आधे दिन लंच बाद कुछ अदालते सुनवाई करती है ,,ऐसे में कई प्रकरण ,,प्रबंधन के समन्वय और तकनीकी कारणों से भी बेवजह लंबित रहते है जबकि कई पीठासीन अधिकारी सुनवाई समय में अधिकतम चेंबर में बैठे मिलते है ,,हाईकोर्ट की मुक़दमा निस्तारण आंकड़ों को वोह राज़ीनामा होने पर भी बेवजह बयांन रिकॉर्ड करवाकर बयानों की संख्या बढ़ाते है जबकि छोटे छोटे मामलो की भूलभुलैया कर अपने आंकड़े पुरे करने की कोशिश करते है ,,रेलवे ,यातायात तुच्छ प्रकृति के मामलो में प्रकरण निस्तारण , जुर्म स्वीकार के आंकड़े भी ऐसे में शामिल होते है ,अगर अदालतों और चेम्बरों में सी सी टीवी कैमरे हो ,या फिर वकीलों को यह छूट मिल जाए के वोह निर्धारित समयावधि के बाद बिना किसी युक्तियुक्त कारण के पीठासीन अधिकारी के इजलास में नहीं बैठने पर ,,तत्काल खाली कुर्सी का फोटो खेंच कर जिला जज ,,या फिर रजिस्ट्रार राजस्थान हाईकोर्ट को एक इस मामले में पोर्टल बनाकर शिकायत प्राप्त करने कोई व्यवस्था हो ,,वाट्सएप्प शिकायत नंबर हो जिसपर भी फोटोग्राफ भेजे जा सकते तो डिजिटल प्रबंधन और शिकायत प्रणाली से भी पीठासीन अधिकारी समयबद्ध कार्यक्रम के तहत इजलास में बैठकर त्वरित निस्तारण कर सके ,,,निरीक्षक जजों को यह भी देखना होगा जिन मामलों में चाहे वोह घरेलु हिंसा के हो ,,तुच्छ प्रकृति के हो ,,चेक अनादरण मामलों सहित आई पी सी व् अन्यः मामले हो ,,उनमे राज़ीनामा होने पर भी तुरतं तस्दीक़ करने की जगह अनावश्यक लोकअदालत की तारीख दी जाती है ,अनावश्यक मामला ऐ डी आर में भेजा जाता है ,,जब राज़ीनामा योग्य मामले में फरियादी ,,अभियुक्त दोनों मौजूद है ,तो गवाही की क्या ज़रुरत है ,,तुरंत मामला तस्दीक़ कर निस्तारण क्यों नहीं हो पाता इस पर भी परीक्षण करना होगा ,,अनावश्यक लोकअदालत के आँकड़े बढ़ाने के लिए मामला वहां भेजना ,,,ऐ डी आर में भेजकर निस्तारित कराने के दो वर्षो के मामलो में ,,बेवजह फरियादी की गवाह लेकर ,गवाह का कोटा बढ़ाने और अदालत का टाइम खराब करने के मामले के भी सूक्ष्म परीक्षण कर आवश्यक दिशा निर्देश जारी करना आवश्यक हो गया है ,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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