में वोट के वक़्त अन्नदाता कहा जाता हूँ ,,में किसान हूँ ,,कभी में खेती के
वक़्त दवा यूरिया डालते वक़्त मर जाता हूँ ,, कभी धूप में लू लगने से ,,कभी
कड़ाके की सर्दी में ,,सर्दी लगने से ,,कभी में बारिश में भीगजाने ,,,या फिर
बहजाने से मर जाता हूँ ,,कभी में फसल खराब होने के सदमे में हार्ट अटेक से
मर जाता हूँ ,,तो कभी में खुद ही अपना जीवन बर्बाद होते देख ,,आत्महत्या
कर अपने ही हाथो मर जाता हूँ ,,कभी में ज़िंदा रहता हूँ ,,तो आंदोलन पर उतर
आता हूँ ,,मुझ पर सियासत तो होती है ,,लेकिन कभी में राजस्थान के टोंक
सोयला में ,,तो कभी में मध्य्प्रदेश में ,,अपनी ही सरकार के हाथो मर जाता
हूँ ,,कभी में यहां मरता हूँ ,,कभी में वहां मारा जाता हूँ ,,, में सिर्फ
चुनाव के वक़्त अन्नदाता कहलाता हूँ ,,में सिर्फ चुनाव के वक़्त सियासी
वायदों का पिटारा कहलाता हूँ ,,,अख्तर
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