सच कितने
बदल गए हो तुम ,,
प्यार निभाने
वफ़ा दिखाने का
एक मौक़ा और मिला था
उसे भी हमने
आज गवां दिया ,,
सच कितने
बदल गए हो तुम ,,
फिर वही बेवफाई
फिर वही झूँठ
फिर वही फरेब
फिर वही तन्हाई
फिर वही जुदाई
शायद यही सब
मेरा नसीब है ,,,
मेने तो एक कोशिश की थी
बस तुम मर्ज़ी के मालिक हो
तुम मेरा नसीब नहीं ,,,,,,,
एक छुटपुट डायरी का पन्ना
बन गया हूँ में ,,,अख्तर
बदल गए हो तुम ,,
प्यार निभाने
वफ़ा दिखाने का
एक मौक़ा और मिला था
उसे भी हमने
आज गवां दिया ,,
सच कितने
बदल गए हो तुम ,,
फिर वही बेवफाई
फिर वही झूँठ
फिर वही फरेब
फिर वही तन्हाई
फिर वही जुदाई
शायद यही सब
मेरा नसीब है ,,,
मेने तो एक कोशिश की थी
बस तुम मर्ज़ी के मालिक हो
तुम मेरा नसीब नहीं ,,,,,,,
एक छुटपुट डायरी का पन्ना
बन गया हूँ में ,,,अख्तर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)