जब
मैं 10-12 साल का था तो मेरठ के बेगम ब्रिज पर न्यू मार्केट में हमारा घर
था. उसी मार्केट में एक शख्स रहता था. नाम नहीं लूंगा क्योंकि बहुत पहले
उसका निधन हो चुका है. उस शख्स के नाम के साथ सभी झक्की जोड़ कर बुलाते थे.
उसकी लंग पॉवर इतनी थी कि जब फुल वॉल्यूम पर बोलता था तो उसकी आवाज़ दूसरे
मोहल्ले तक जाती थी. अनजान आदमी तो उसकी आवाज़ से ही घबरा जाता था.
अच्छा इसका जब किसी से झगड़ा होता तो पहले ऊंची आवाज़ से रौब में लेने की कोशिश करता. दूसरा नहीं दबता तो कहता कि तू मुझे एक बार मार कर देख. वो मार देता. तो फिर पीछे हटते हुए कहता कि हिम्मत है तो मेरे घर के इस सदस्य को हाथ लगा के दिखा.इस दौरान उसका फुल वॉल्यूम बदस्तूर जारी रहता. बस यही रट लगाए रहता- अबकी मार के देख, अबकी मार के देख.
अच्छा इसका जब किसी से झगड़ा होता तो पहले ऊंची आवाज़ से रौब में लेने की कोशिश करता. दूसरा नहीं दबता तो कहता कि तू मुझे एक बार मार कर देख. वो मार देता. तो फिर पीछे हटते हुए कहता कि हिम्मत है तो मेरे घर के इस सदस्य को हाथ लगा के दिखा.इस दौरान उसका फुल वॉल्यूम बदस्तूर जारी रहता. बस यही रट लगाए रहता- अबकी मार के देख, अबकी मार के देख.
बस फिर पिट पीटा कर कुछ दिनों के लिए शांत होकर बैठ जाता. इंतज़ार करता अगले झगड़े का...
(नोट- ये 4 दशक पुराना सच्चा वाकया है, इसे आज के किसी संदर्भ से जोड़़ कर ना देखें)
(नोट- ये 4 दशक पुराना सच्चा वाकया है, इसे आज के किसी संदर्भ से जोड़़ कर ना देखें)
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