यह चुनाव भी अजीब होते है ,हर बार एक नई सीख देते है ,,चुनाव में कोई 
हिन्दू ,,कोई मुसलमान ,,कोई कोंग्रेसी ,,कोई भाजपाई,,कोई अमीर कोई गरीब 
,,कोई अगड़ा ,,,कोई पिछड़ा  नहीं होता ,,सिर्फ और सिर्फ जीत लक्ष्य होता है 
,,,कोटा में छात्रों के चुनाव ने , ,,महाविद्यालय की इस छात्र सियासत के 
दौरान,,, कई ऐसे सबक़ सीखा दिए है ,,,,कोटा में ऍन एस यू आई का प्रादेशिक 
सम्मेलन हुआ ,,लेकिन कोटा के कई कॉलेजो में ऍन एस यू आई के प्रत्याक्षी भी 
हम खड़े नहीं कर सके ,,वजह कुछ भी हो ,,लेकिन हमे निर्दलीय प्रत्याक्षियों 
का समर्थन करना पढ़ा ,,,हम जीते लेकिन ऍन एस यू आई के साथ नहीं ,,निर्दलीय 
प्रत्याक्षी के रूप में ,,,बात साफ़ है चुनावी रणनीति थी ,,कुछ ऐसे लोगो का 
सपोर्ट भी चाहिए था ,,जो ऐ बी वी पी से भीतरघात कर निर्दलीय के नाम पर हमे 
सपोर्ट कर सकते थे ,,भाजपा का आंतरिक युध्द था उसका हमने फायदा उठाया 
,,सियासी चालो में कामयाब भी हुए ,,,इधर हमे ऐ बी वी पी को जिताना था ,,कई 
जगह प्रत्याक्षी खड़े नहीं करे ,,कोंग्रेस के घर में सेंध लगाई ,,कोंग्रेस 
के घर से ऐ बी वी पी का चिराग जलाया ,,और कोंग्रेस ,,भाजपा गठबंधन का 
सन्देश दे दिया ,,, हम जीते ,,हमारा ऐ बी वी पी का प्रत्याक्षी जीता 
,,चुनाव ऐ बी वी पी के और जीत की  दुआए कोंग्रेस के घरो में ज़ाहिर है 
,,चुनाव में जीत लक्ष्य होती है ,,पार्टियां नहीं ,,वैसे भी छात्रों के 
चुनाव में पार्टियों का दखल हमारे छात्र छात्रों को एक गलत दिशा में ले जा 
रहा है ,,  क्या किसी कोंग्रेस परिवार में रहने वाले छात्र को अपनी 
इच्छानुसार अपना लक्ष्य चुनने का अधिकार नहीं है ,,क्या एक भाजपा के परिवार
 में रहने वाले छात्र को अपनी आज़ादी के साथ अपना लक्ष्य चुनने का अधिकार 
नहीं है ,,,छात्रों में सियासी समझ तो होती है ,,लेकिन यह आज़ादी छीनने के 
बाद ,,वोह सिर्फ पिच्छ लग्गू बनकर रह जाते है ,,,छात्र नेतृत्व को भाई 
साहबो ने इस्तेमाल तो किया लेकिन आगे नहीं बढ़ने दिया ,,असंख्य पूर्व छात्र 
संघ अध्यक्ष गुमनामी के अँधेरे में ज़िन्दगी जी रहे है ,,लेकिन यह तो सभी 
जानते है ,,  छात्रों के चुनाव में ,,पारिवारिक मामले होने के कारण स्थिति 
अजीब होती है ,,दलगत राजनीति और मज़हबी लगाव से ऊपर उठकर पड़ोसी ,,,मेलजोल 
,,यारी दोस्ती का ख़याल रखकर कई लोग अपने बच्चो को उनकी  इच्छा के खिलाफ वोट
 डालने को मजबूर कर ,,चुनाव के नतीजे बदलवा देते है ,,,छात्र छात्राओ में 
सियासी नफरत नहीं ,,दोस्ताना चुनाव होना चाहिए ,,,चुनाव में कोंग्रेस  
भाजपा का बन्धन बाहरी लोगो का दखल इन चुनावो को हिंसक बना देता है ,,इन 
चुनाव को खर्चीला बना देता है ,,,बाहरी दखल इन चुनावो को कॉलेज से बाहर 
निकाल कर सड़को और गलियो में लाकर आम लोगो के लिए सर दर्द बना देता है 
,,,चुनाव में बच्चे जीतते है ,,कोंग्रेस या फिर या फिर भाजपा नहीं जीतती 
,,कोई भाईसाहब न तो जीतता है न हारता है ,,बस चुनाव तो बच्चो का एक खेल है 
उन्हें नेतृत्व ,,उन्हें उनकी ज़िम्मेदारियों का अहसास दिलाने की एक 
प्रयोगशाला ,,एक प्रशिक्षण है ,,इस प्रशिक्षण को प्रशिक्षण ही रहने दो 
,,बाहरी दखल ,,सियासत की नफरत इन बच्चो में नहीं डाले तो ठीक है ,,ऐ बी वी 
पी का जीता तो भी हमे खुश होना चाहिए ,,उसे मार्गदर्शन मुबारकबाद देना 
चाहिए ,,,ऍन एस यू आई का जीता तो भी हमे उसे ज़िंदाबाद कहकर गले लगाना चाहिए
 ,,निर्दलीय जीता तो भी जो जीता वोह सिकंदर कहकर उसे छात्र राजनीति की इस 
पाठशाला में ,,,छात्रों के कल्याण ,,छात्रों की एकता ,,छात्रों की शिक्षण 
व्यवस्था के सकारात्मक माहौल के लिए शिक्षा का ज्ञान देना चाहिए ,,बच्चे मन
 के सच्चे होते है ,,देश का भविष्य होते है इसलिए इन युवा तरुणों को एक नया
 रास्ता ,,एकता का रास्ता ,, अटूटता का रास्ता ,,दोस्ती का रास्ता ,,प्यार 
का रास्ता ,,ईमानदारी का रास्ता ,,सामाजिक ज़िम्मेदारी  का रास्ता ,,रोज़गार 
,,स्वरोज़गार का रास्ता ,,ज़िम्मेदारियों के अहसास का रास्ता हमे दिखाना 
चाहिए ,,सभी जीतने वाले छात्र छात्राओ को मुबारकबाद और जिन्होंने इस  चुनाव
 में हिस्सा लेकर मुक़ाबला किया ,,उन सभी छात्र छात्राओ के हौसले को सलाम 
,,बधाई मुबारकबाद ,छात्र छात्राओ के चुनाव में बाहरी लोग सच ऐसे लगते है 
,,जैसे बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना लगता है ,,,,,अख्तर खान अकेला 
कोटा राजस्थान

 
 

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