नई दिल्ली/तिरुवनंतपुरम. केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं
की एंट्री के विवादित रूल को लेकर 10 साल पुरानी पीआईएल पर सुनवाई करते हुए
कोर्ट ने सोमवार को कहा कि ट्रस्ट महिलाओं का मंदिर में जाना उनका
संवैधानिक अधिकार है। कोर्ट ने ट्रस्ट के इस फैसले पर जवाब तलब किया है।
क्यों है महिलाओं की एंट्री पर रोक...
- बता दें कि इस मंदिर में परंपरा के मुताबिक, 10 से 50 साल की महिलाओं की एंट्री पर बैन है।
- मंदिर बोर्ड की मानें तो यहां 1500 साल से महिलाओं की एंट्री का नियम है, जिसकी वजह उनकी शुद्धता (पीरियड्स) है।
- केरल के यंग लॉयर्स एसोसिएशन की ओर से इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 2006 में पीआईएल दाखिल की गई थी।
- मंदिर बोर्ड की मानें तो यहां 1500 साल से महिलाओं की एंट्री का नियम है, जिसकी वजह उनकी शुद्धता (पीरियड्स) है।
- केरल के यंग लॉयर्स एसोसिएशन की ओर से इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 2006 में पीआईएल दाखिल की गई थी।
- इस मामले की अगली सुनवाई 8 फरवरी को होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
- जस्टिस दीपक मिश्रा की बैंच ने कहा कि महिलाओं को मंदिर के अंदर जाने से नहीं रोका जा सकता है।
- मंदिर बोर्ड की इस दलील पर भरोसा नहीं किया जा सकता है कि यहां 1500 साल से मंहिलाओं की एंट्री पर रोक है।
- त्रावणकोर देवासम बोर्ड के वकील केके वेणुगोपाल से पूछा, ''क्या धार्मिक मान्यताओं के अलावा इसका कोई अन्य कारण है?
पहले भी होता रहा है विरोध
- सबरीमाला मंदिर बोर्ड के चीफ गोपालकृष्णन ने नवंबर, 2015 में महिलाओं की एंट्री को लेकर विवादित बयान दिया था।
- बोर्ड चीफ के बयान का लोगों ने काफी विरोध किया और महिलाओं ने सोशल मीडिया पर #Happytobleed कैंपेन चलाया था।
मंदिर बोर्ड चीफ ने क्या कहा था?
बोर्ड चीफ गोपालकृष्णन ने कहा था, ''जब तक पीरियड्स को टेस्ट करने वाली मशीन नहीं बन जाती है, महिलाओं को मंदिर में एंट्री नहीं मिलेगी। अभी हथियारों की जांच करने वाली मशीनें हैं, लेकिन औरतों की शुद्धता के बारे में पता लगाने की कोई मशीन नहीं है। ऐसे में उनकी शुद्धता का पता लगाना काफी मुश्किल होता है।
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