मुझे पता है
छुप छुप कर
पढ़ते हो तुम
मेरे लिखे
अल्फ़ाज़ों को
मुझे पता है
इन अल्फ़ाज़ों में
खुद को पाकर
तुम इतराते हो
तुम इठलाते हो
तुम खुश हो जाते हो
लेकिन तुम्हे पता नहीं
अपना खून टपका कर
इन अल्फ़ाज़ों में
तुम्हे में पिरोता हूँ
तुम्हारी यादे
तुम्हारे खयालात
तुम्हारे साथ बीते हुए
वोह खुशनुमा लम्हे
बस में यूँ ही
खुद को जलाकर
इन अल्फ़ाज़ों को
माला में पिरोता हूँ ,,,अख्तर
छुप छुप कर
पढ़ते हो तुम
मेरे लिखे
अल्फ़ाज़ों को
मुझे पता है
इन अल्फ़ाज़ों में
खुद को पाकर
तुम इतराते हो
तुम इठलाते हो
तुम खुश हो जाते हो
लेकिन तुम्हे पता नहीं
अपना खून टपका कर
इन अल्फ़ाज़ों में
तुम्हे में पिरोता हूँ
तुम्हारी यादे
तुम्हारे खयालात
तुम्हारे साथ बीते हुए
वोह खुशनुमा लम्हे
बस में यूँ ही
खुद को जलाकर
इन अल्फ़ाज़ों को
माला में पिरोता हूँ ,,,अख्तर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)