जियो और जीने दो का अधिकार ही ,,मानवाधिकार है ,,और मानवाधिकार का अगर
संरक्षण रहा ,,तो अराजकता का माहोल खत्म होकर ,,रामराज्य की परिकल्पना
पूर्ण हो सकेगी ,,,उक्त उदगार प्रकट करते हुए आज राजकीय महाविद्यालय कोटा
में मानवाधिकार प्रकोष्ठ द्वारा विश्व मानवाधिकार दिवस पर मानवाधिकार
कार्यकर्ता एडवोकेट अख्तर खान अकेला ने कहा के हमे सभी को ,,अपने आस पास
,,,मानवाधिकारों का उलंग्घन देखकर उसके निराकरण के प्रयास करना चाहिए
,,इसके लिए हमे कर्तव्य और अधिकारों के सामंजस्य को स्थापित करना होगा ,,अख्तर
खान अकेला ने मुख्य वक्ता के रूप में कहा के राष्ट्रिय या राज्य
मानवाधिकार आयोेग में अभी भी कई पद रिक्त है लेकिन वहां ,,शिकायत की
प्रक्रिया सरल है ,,जहां कोई भी अपनी पीड़ा लिख कर शिकायत कर सकता है
,,,,उन्होंने कहा के अफसोस की बात यह है के दस दिसंबर उन्नीस सो अड़तालीस को
घोषित इस चार्टर को पुरे पचपन साल बाद उन्नीस सो तिरानवे में राष्ट्रिय
मानवाधिकार आयोग का गठन कर इसे क्रियान्वित किया जबकि उन्नीस सो तिरानवे
में मानवाधिकार आयोग के गठन और अधिनियम के पारित होने के बाद आज तेईस साल
गुज़रने पर भी इस अधिनियम के प्रावधान के तहत ज़िलों में मानवाधिकार न्यायालय
का गठन नहीं किया गया है ,,यह अफ़सोस की बात है ,,अब तो इस मामले में
उच्चतम न्यायलय ने भी सरकारों को लताड़ पिलाई है ,,लेकिन सरकार मानवाधिकार
संरक्षण के प्रति गंभीर नहीं है ,,,,,,,,,,,राजकीय महाविद्यालय में आयोजित
इस गोष्ठी की अध्यक्षता प्राचार्य प्रोफेर डॉक्टर बी एल वर्मा ने की
,,जबकि डॉक्टर हेमलता लोया ,,श्रीमती अनिता गुप्ता विशिष्ठ अतिथी थी
,,कार्यक्रम की आयोजक मानवाधिकार प्रकोष्ठ की अध्यक्ष श्रीमती मंजू महरा थी
,,कार्यक्रम में प्रोफेसर वी के सिंह ,,डॉक्टर कमर जहाँ ,,सहित कई
प्रोफेसर और सभी छात्र छात्राएं ,,उपस्थित थी ,,,कार्यक्रम के तुरंत बाद
मानवाधिकार प्रकोष्ठ के छात्र छात्राओ ने बेटी बचाओ ,,बेटी पढ़ाओ पर एक
जीवंत लघु नाटिका पेश की जिसमे बेटी को जन्म होने पर मारने और गांय के बछड़ी
होने पर ख़ुशी दर्शाने जैसी ग्रामीण परिप्रेक्ष की कहानी बताते हुए बेटी की
अहमियत बताई गई ,,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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