आपका-अख्तर खान

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27 नवंबर 2015

इंसानियत बचाने के लिए अपनी जान देते है

तेरी सिर्फ एक निगाह ने
खरीद लिया हमें…
बड़ा गुमान था हमें
की हम बिकते नहीं…,,,,यह किसी शायर का फलसफा है लेकिन सच्चा फलसफा है ,,,,
जी हाँ दोस्तों ,,प्यार हो ,,दुलार हो ,,मोहब्बत हो ,,भाईचारा हो ,,सद्भावना हो ,,अच्छाइयाँ हो ,,खुद ब खुद इंसान को इंसान की तरफ आकर्षित करती है ,,,,हालत यह है के इंसान इंसान से प्यार और जानवर इंसान से ,,इंसानियत से नफरत करते है ,,में उन जानवरों की बात नहीं कर रहा जिन्हे खुदा ने जानवर बनाया है वोह तो फिर भी इन्सान के वफादार होते है ,,,,इंसानियत बचाने के लिए अपनी जान देते है ,,लेकिन वोह लोग जिन्हे खुदा ने इंसान बनाया तो है ,,,लेकिन नफरत की आग में ,,,बदले की आग में ,,गुस्से की आग में ,,सियासत की कुर्सी की ख्वाहिश में ,,लोगों को डरा कर चंदा बटोरने की चाह में ऐसे सभी कथित इंसान जानवर बन गए है ,,,ऐसे लोग खुद को भी तोड़ रहे है ,, देश भी तोड़ रहे है ,,समाज भी तोड़ रहे है ,,,,लेकिन इनकी सोच कितनी घटिया है इसका एक नमूना पेश है ,,यह सोचते है के रूपये से हर चीज़ खरीदी जा सकती है ,,,, मेरे एक भाई ने मेरे साथ कुछ ऐसा ही व्यवहार किया ,,एक पुराना चिरपरिचित साथी ,,,,जो कहने को मेरी लेखनी का प्रशंसक है ,,मेरा पुराना हमदर्द जानकार है ,,,मेरे कई आलेखों का प्रशंसक है ,,कहने को वोह मेरे दैनिक अख़बार के सम्पादन काल से ही आओ बस्ती चले ,,,आओ समस्याएं जाने ,,,आपसे मिलिए ,,जैसे कॉलम का प्रशंसक रहा है ,,लेकिन कुछ दिनों से वोह मुझे किसी एक साथी का ,,,बायो डाटा ,,,देकर उनके लिए लिखने की ज़िद कर रहे थे ,,,में लिखने की कोशिश करता हूँ किसी भी वर्ग ,,किसी भी धर्म ,, किसी भी समाज ,,मेरा अपना ,,मेरा पराया हो ,,मेरा लिखने का स्वभाव है ,,,इसलिए जो हक़ रखता है उसके लिए में उसकी जीवनी कार्यशैली भी लिखता हूँ ,,,दूसरी पार्टियों के लोगों के बारे में लिखने पर कई लोगों को ऐतराज़ भी है लेकिन दोस्तों बस अच्छे है अगर किसी भी पार्टी किसी भी समाज किसी भी धर्म के है तो उनके उत्साहवर्धन के लिए न सही ,,,,ऐसे लोगों का दूसरे लोगों से परिचय कराना ,,,में अपना दायित्व समझता रहा हूँ ,,,खेर ,,,मेरे यह साथी मुझ से कहते रहे ,,कहते रहे ,,में इनकी बताई हुई शख्सियत के खिलाफ कुछ गंभीर मुक़दमे होने से लिखने से बचता रहा ,,कल यह शख्स ,,मेरे पास आये ,,एक लिफाफा दिया ,,कहा लो इसमें उनका बायो डाटा है ,,प्लीज़ नियुक्तियों का दौर है कुछ लिख दीजिये ज़रूरत है ,,इन साहब के जाने के बाद जब लिफाफा खोला तो देखा ,,बायो डाटा के साथ पन्द्राह लाल लाल नोट भी इस लिफ़ाफ़े में है में सन्न रह गया ,,सकते में आ गया ,,,मेने मेरे इस भाई को फोन किये उन्होंने नहीं उठाया ,,लेकिन मेरी आत्मा बेचेंन थी ,,में उनके घर गया ,,,उन्हें जगाया ,,,गुस्से में था ,,लेकिन मेने धैर्य और संयम रखा ,,मेने हाथ जोड़े लिफाफा उनके हाथ में थमाया ,,कहा भाई ,,अगर महंताना लेकर लिखना होता ,,लिखना रोज़गार होता तो में अभी किसी अख़बार में ही नौकरी कर रहा होता ,,,मुझे नहीं पता वोह समझ पाये या नहीं ,,बस वोह माफ़ी मांगते रहे ,,,,माफ़ करने की मिन्नतें करते रहे ,,लेकिन उनका अपराध ऐसा था के में आज भी उन्हें माफ़ नहीं कर सका हूँ ,,,,,, मुझे किसी शायर का यह शेर फिट लगा के प्यार हो तो किसी को भी खरीदने की ताक़त है व्यापार हो तो जो ना बिक सके उसे कोई खरीद सके ऐसी हिमाक़त ,,ऐसी ताक़त किसी में नहीं ,,,,,,,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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