भारत देश के जाने माने शिक्षाविद ,,पंडित जवाहरलाल नेहरू के अभिन्न मित्र
संकट मोचक रहे मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद के जन्म दिन पर अगर वोह देश की
भावना के अनुरूप धर्मनिरपेक्षता बरक़रार रखने के लिए अढ़ते ,,अगर वोह उनके
समाज के पिछड़े ,,दलित लोगों के साथ सियासी ,,मज़हबी नाइंसाफी के खिलाफ बोलते
,,अपने विलासिता भोगी जीवन को ठुकरा कर मंत्री पद छोड़ते तो में भी आज
उन्हें श्रद्धा से याद करता ,,लेकिन मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद की एक खामोशी
,,एक मोन समर्थन के कारण उनकी ही अपनी कॉम ,,उनके अपने मज़हब के लोग आज इस
मुल्क में पिछड़ गए है ,,उनके हक़ को उन्हें एक विशिष्ठ समाज का बताकर छीन
लिया गया है ,,और यह सब मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद की मौजूदगी में हुआ जिसका
ज़हर आज भी इस कॉम को पिछड़ा बनाये हुए है ,,,जी हाँ दोस्तों में बात कर
रहा हूँ आज़ाद भारत में पिछड़े समाजो और कर्मकारो को आर्थिक पिछड़ेपन से
उबारने के पैकेज की ,,,आज़ाद भारत में काका केलकर से समाज और दस्तकारों के
बारे में सर्वेक्षण करवाया गया ,,,काका केलकर ने कहा के हमारे देश में कुछ
ट्राइबल एरिये और कुछ दस्तकार जैसे ,,,मांस का व्यवसाय करने वाले ,,चमड़े
का व्यवसाय करने वाले ,,,,कपडा बुनने वाले ,,कपड़ा रंगने वाले ,,कपड़े धोने
वाले सहित कई दस्तकार को पिछड़ा बताकर उन्हें विशेष पैकेज या योजना देकर
आर्थिक उत्थान की सिफारिश की गई ,,,,,,,राजस्थान में टोंक ,,बीकानेर
,,जैसलमेर ,,बाड़मेर ,,बिहार ,,उत्तरप्रदेश ,,कर्नाटक सहित कई स्थानो पर
अल्पसंख्यक समाज के लोग ट्राइबल थे उन्हें ट्राइबल में शामिल नहीं किया
गया ,,कोई बात नहीं लेकिन जब काका केलकर की रिपोर्ट के तहत पिछड़े लोगों के
कामकाज करने वालों को आरक्षण की बात आई तो ,,उस वक़्त उन्नीस सो इक्यावन
में परिपत्र जारी कर मांस का व्यवसाय करने वाले ,,कपड़े बुनने वाले ,, कपड़े
धोने वाले ,,रंगने वाले सहित कई दस्तकारों को आरक्षण देकर उनके आर्थिक और
सामाजिक उत्थान की बात की गई ,,हमारा देश धर्मनिरपेक्ष था ,,संविधान में
सभी को समानता का अधिकार था ,,धर्म मज़हब के आधार पर किसी पक्षपात पर
संवेधानिक पाबंदी थी लेकिन दोस्तों उस वक़्त काका केलकर की रिपोर्ट को आधार
बनाकर सभी दस्तकारों को आरक्षित सूचि में डाला गया ,,लेकिन अफ़सोस इन मौलाना
अबुल कलाम आज़ाद की मौजूदगी में इस परिपत्र में विशेष नोट अंकित किया गया
जिसमे लिखा गया केवल हिन्दुओ के लिए ,,तो जनाब हमारे खटीक भाई आरक्षित हो
गए ,,कुरैशी समाज के लोग इसका लाभ इसी व्यवसाय से जुड़े होने के बाद भी नहीं
ले सके ,,,कपड़ा बुनने वाले जुलाहे ,,अंसारी इसका लाभ नहीं ले सके जबकि
हमारे कोली समाज के भाई इससे लाभान्वित हुए ,,इसी तरह धोबी ,,नट ,,रंगरेज़
सहित कई दस्तकारों में येह पक्षपात हुआ काम एक सामाजिक दरिद्रता की स्थिति
एक लेकिन मुस्लिम समाज को आरक्षण से अलग रखा गया ,,उस वक़्त काका केलकर ने
इस परिपत्र में नाइंसाफी का विरोध किया लेकिन मौलाना अबुल कलाम आज़ाद उनके
इतने ऊँचे ओहदे पर होने के बाद भी खुद का बचाये रखने के लिए उनकी कॉम के
लोगों के साथ हुई नाइंसाफी पर चुप्पी साध गए ,,उन्होंने कोई विरोध नहीं
किया और आज अब्दुल कलाम आज़ाद की इस चुप्पी की सज़ा पुरे समाज के पिछड़ेपन को
भुगतना पढ़रही है ,,,काका केलकर ,,,,वेंकटचलैया ,,नीलम संजीव रेड्डी
,,,रंगनाथ मिश्र सहित कई लोगों ने इस नाइंसाफी के खिलाफ आवाज़ उठाई है लेकिन
मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद खामोश बने रहे ,,बाद में इस परिपत्र में सिक्ख
,,ईसाई ,,बौद्ध जुड़े लेकिन मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद की इस चुप्पी की वजह से
आज भी देश का एक बढ़ा वर्ग नाइंसाफी के बोझ तले पिछड़ रहा है ,,ऐसे में में
इस कड़वे सच को जानता हूँ ,,देश का हर पढ़ा लिखा समाज इस कड़वे सच को जानता है
तो फिर कोई कारण नहीं के में इन्हे नमन करूँ ,,वैसे भी मेरी निजी राय है
के जब जब भी कोई मौलाना को कोई सियासी पद दिया है ,,उस मौलाना ने देश
,,समाज का तो भला नहीं किया हाँ समाज और कॉम की सौदेबाज़ी कर समाज और कॉम को
कमज़ोर ज़रूर किया है ,,क्योंकि सियासत करना मौलानाओ के बस की बात भी नहीं
होती ,,,,इनको तो बस शो पीस के रूप में रखकर इनके ज़रिये कॉम और कॉम मसाइलों
की सौदेबाज़ी ही होती है ,,,,,,,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)