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22 अक्तूबर 2015

मैं भी ढ़ूंढ रहा था कि मेरे पास कोई गाली की डिक्शनरी हो.,,,,

नई दिल्ली: एबीपी न्यूज़ के लाइव शो
साहित्यकार बनाम सरकार के दौरान उर्दू के
सबसे लोकप्रिय शायर मुनव्वर राना ने अपना
साहित्य अकादमी अवॉर्ड लौटा दिया,
जिस वक़्त उन्होंने अवॉर्ड लौटाने का
एलान किया उस समय न्यूज़रूम में देश के 14
बड़े साहित्यकार, लेखक और कवि मौजूद थे
जिनमें कई अपने अवॉर्ड लौटा चुके हैं.
पढ़ें किन शब्दों और दर्द के साथ मुनव्वर
राना ने लाइव शो में अवॉर्ड लौटाने का
एलान किया.
अवॉर्ड लौटाने के दौरान की बातें
मुनव्वर राना की जुबानी:-
मैंने सोचा कि मैं ज़रा सुन लूं लोगों की
बातें, क्योंकि मेरे लिए बोलना बड़ा
मुश्किल काम है, इसलिए कि कोई
कम्युनिस्ट पार्टी का बताया जा रहा
है...कोई कांग्रेस का बताया जा रहा है...
बदकिस्मती से हम मुसलमान भी हैं. हम कुछ
बोलेंगे तो फौरन पाकिस्तानी बता दिये
जाएंगे. फौरन कहा जाएगा कि आप अब
पाकिस्तान चले जाइए. अभी बिजली के
तार इस मुल्क में जुड़ नहीं पाए...मुसलमानों
के तार दाउद इब्राहिम से जोड़ दिए जाते हैं.
मेरे कहने का मतलब यह है कि मैंने आजतक
अवॉर्ड वापस नहीं किया था, लेकिन मैंने
यह बात कही थी कि जो प्रोटेस्ट कर रहे हैं
हम उनके साथ हैं...लेकिन, प्रोटेस्ट का अपना
एक तरीका होता है. मैंने यह शेर भी फेसबुक
पर डाला था कि....
ए शकेब अपने तआरुफ़ के लिए ये बात काफी
है, हम उससे बच के चलते हैं जो रास्ता आम हो
जाए.
मैं शर्मिंदा हूं कि इतने बड़े-बड़े साहित्यकारों
के बीच में मुझे कुछ बोलना पड़ रहा है. मेरा
खयाल तो यह था कि आज ये जो बहस हो
रही है इसमें एक फैसला यह होता कि जैसे
अभी बिहार के चुनाव में लालू जी के पास
एक गाली की डिक्शनरी है. मेरे पास करीब
डेढ़ सौ डिक्शनरी है...तो मैं भी ढ़ूंढ रहा था
कि मेरे पास कोई गाली की डिक्शनरी हो.
लेकिन गाली कोई मिली नहीं. हां एक
डिक्शनरी मुझे जरूर मिली जिसमें आतंक के
मायने क्या हैं ये लिखे हुए हैं.
जिस दिन अखलाक का कत्ल हुआ था, मैं
दोहा के मुशायरे में था. वहां लोगों ने मुझे
बताया...वहां बहुत से पाकिस्तानी भी
थे...सब थे. सब लोगों ने जानना चाहा कि
मेरा इस पर मैं क्या कहना है? लेकिन दाग
देहलवी का शेर है-
नज़र की चोट जिगर में रहे तो अच्छा है... ये
बात घर की है, घर में रहे तो अच्छा है.
वहां मैंने कुछ बात नहीं की. यहां मैं आया
आने के बाद फेसबुक पर मैंने यह लिखा कि ये
एक आतंकी हमला था. मुझ पर इतनी
गालियां पड़ी कि मुझे फेसबुक से अपना
बयान हटाना पड़ा. मैं सिर्फ यह पूछना
चाहता हूं, इतने साहित्याकार बैठे हुए हैं.
अगर और भी साहित्याकार हों किसी
पार्टी के हों. बीजेपी को हों, कम्युनिस्ट
के हों, विदेश से बुला लिए जाए...ये तय
किया जाए कि आतंक के मायने क्या हैं?
आजतक जिस मुल्क में यह फैसला न हुआ हो
कि आंतक के मायने क्या है. अगर एक
पटाखा कोई मुसलमान फोड़ देता है तो वह
आतंकवादी हो जाता है. ऐसे नहीं इंसाफ
हो सकता है. ये साहित्यकारों का मामला
था और मैं साहित्यकारों के साथ था.
सरकार और साहित्यकार का कोई झगड़ा
नहीं है. सरकार बेवजह परेशान है, सरकार से
कोई लेना-देना नहीं है ये तो साहित्यकारों
का अपना मामला है...भाई-भाई का झगड़ा
है. आज की तारीख में मुझे जो अवॉर्ड
मिला था उसे मैं लेकर आया हूं. ये एक लाख
का चेक साथ लेकर मैं आया हूं. आपके सामने मैं
इसे वापस कर रहा हूं. मैंने यह तय कर लिया है
कि ये जो इल्जाम आता है कि इस सरकार के
नहीं उस सरकार के चाटुकार हैं. वहां के हैं, वे
कांग्रेस के दरबार में थे तो माफ कीजिएगा
मैं रायबरेली का रहने वाला हूं. सत्ता हमारे
शहर के नालियों से बहकर दिल्ली पहुंचती
थी.
अगर मुझे ऐसा शौक होता...लिहाजा मैं यह
अवॉर्ड और ये चेक दोनों मैं एबीपी के सामने
वापस करता हूं. ये रखा हुआ है. ये एक लाख
रुपये का चेक है. मैंने इसमें किसी का नाम
नहीं भरा है. ये आप चाहे तो कलबुर्गी को
भेजवा दें या चाहे तो पनसारे को या
अखलाक को या फिर किसी भी ऐसे मरीज़
को जो अस्पताल में मर रहा हो जिसको
हुकूमत वाले न देख पा रहे हो. ये लीजिए
शुक्रिया...
एक चीज और कह रहा हूं आखिरी उम्र में हूं
बंगाल उर्दू अकादमी में मैं बीस साल तक था
मैंने कभी कोई अवॉर्ड नहीं लिया. मैंने
किसी अकादमी में अपनी किताब शामिल
ही नहीं की. मैंने शायद गलती से यह अवॉर्ड
ले लिया हो. मैं यह वादा करता हूं कि मैं
अपनी जिंदगी में कोई सरकारी अवॉर्ड
नहीं लूंगा...नीलकमल की सरकार हो,
हाथी की हो, घोड़े की हो, मर्गी की हो.
इसके अलावा मेरा बेटा भी ग़ैरतदार होगा
तो कोई सरकारी अवॉर्ड नहीं लेगा.
असल बात यह है कि हम लोग यहां जो बैठे
हुए हैं जो मुल्क में हंगामे हो रहे हैं. हमारे छोटे
भाई की तरह हैं ये पात्रा और ये राकेश
सिन्हा. ये लोग फौरन घुम के चले जाते हैं
मोदी जी. भाई मोदी जी से क्या लेना-
देना है. अगर मुल्क के हालात खराब हैं तो
उसमें हम भी शामिल होंगे एक शहरी की
हैसियत से. पूरा मुल्क उसमें शामिल है. हर
वक्त कैमरा घुम करके कहना कि मोदी जी
को बदनाम करने की साजिश है. मोदी जी
से मेरा क्या लेना-देना है. वह हमारे देश के
प्रधानमंत्री हैं.
अभी आप ये सोचिए कि खौफ का यह
आलम है कि 10 तारीख को मुझे
पाकिस्तान मुशायरे में जाना था मैं नहीं
गया...कल को ये बोल दे कि ये पाकिस्तान
से कुछ सीख कर आये हैं...तो इतनी नफरत के
माहौल को दूर करने के लिए हर शहरी भी
जिम्मेदार है और एक शहरी की तरह मोदी
जी भी जिम्मेदार हैं.

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