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25 सितंबर 2015

अपने गुलाम से प्रेम करने लगीं थी रजिया सुलतान, इस किले में हो गईं थी कैद


किला मुबारक और इनसेट में रजिया सुलतान की फाइल फोटो
किला मुबारक और इनसेट में रजिया सुलतान की फाइल फोटो
लुधियाना। 27 सितंबर को पूरे दुनिया में वर्ल्ड टूरिस्ट डे मनाया जाएगा। इस मौके पर आपको सिलसिलेवार देश के ऐसे टूरिस्ट स्पॉट के बारे में बताएगा, जो दुनिया भर में अपने इतिहास और खूबसूरती के लिए मशहूर है। पंजाब के बठिडा में स्थित किला मुबारक देश की राष्ट्रीय स्मारकों में से एक है। यह ईट का बना सबसे पुराना और ऊंचा स्मारक है। इसका इतिहास थोड़ा अद्भुत है। राजा बीनपाल जो कि भाटी राजपूत थे, इस किले का निर्माण लगभग 1800 साल पहले करवाया था। इसी किले में पहली महिला शासिका रजिया सुलतान को 1239 ईसवीं में कैद कर लिया गया था। रजिया सुलतान को उसके प्रेमी याकूत को मारकर इस किले में उसके गर्वनर अल्तूनिया ने कैद किया था। किले में कैद रजिया ने मौत से बचने के लिए अल्तूनिया से शादी कर ली।
रजिया पुरुषों की तरह कपड़े पहनती थी और खुले दरबार में बैठती थी। उसके अंदर एक बेहतर शासिका के सारे गुण थे। ऐसा कहा जाता है कि जब उसका पिता इल्तुतमिश शासक था तब भी वह शासन में उनकी सहायता किया करती थी। एक समय ऐसा भी आया जब लग रहा था कि रजिया दिल्ली सल्तनत की सबसे ताकतवर मल्लिका बनेगी लेकिन गुलाम याकूत के साथ रिश्ते ने उसके इरादे को मटियामेट कर दिया। कुछ इतिहासकारों के अनुसार याकूत रजिया का प्रेमी नहीं, विश्वासपात्र था। अल्तूनिया ने रजिया की सत्ता को स्वीकारने से इंकार किया। उसके और रजिया के बीच युद्ध शुरू हो गया। युद्ध में याकूत मारा गया और रजिया को अल्तूनिया ने बठिंडा के इस किले में कैद कर लिया।
इस घटना के बाद अल्तुतमिश के तीसरे बेटे बहराम शाह को गद्दी पर बैठा दिया गया। किले में कैद रजिया ने मौत से बचने के लिए अल्तूनिया से शादी कर ली। उधर रजिया के भाई बहराम शाह ने दिल्ली की गद्दी पर कब्जा कर लिया। अल्तुनिया ने अपनी पत्नी को दोबारा गद्दी पर बैठाना चाहा, लेकिन बहराम शाह ने इसका विरोध किया। बहराम शाह की लड़ाई में अल्तुनिया परास्त हुआ और रजिया के साथ वेष बदलकर भाग निकला।
सलामती और खुशहाली के लिए प्रार्थना करने आए थे दसवें सिख गुरू
दसवें सिख गुरू, गुरू गोविन्द सिंह इस किले मे 1705 के जून माह में आए थे और इस जगह की सलामती और खुशहाली के लिए प्रार्थना की थी। पटियाला राज्य के महाराजा आला सिंह ने इस किले को 1754 में अपनी अधीन कर लिया था। और इस किले का नाम गोविन्दघर कर दिया गया। लेकिन जल्द ही इस जगह को बकरामघर के नाम से बुलाने जाने लगा। इस किले के सबसे ऊपर गुरूद्वारे का निर्माण करवाया गया है। इस गुरूद्वारे का निर्माण पटियाला के महाराजा करम सिंह ने करवाया था।

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