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04 सितंबर 2015

रोज घटता है श्रीकृष्ण का गोवर्धन पर्वत, क्या है इसकी कहानी, जानिए अभी

गोवर्धन पर्वत।
गोवर्धन पर्वत।
जयपुर. गोवर्धन पर्वत की कहानी बेहद रोचक है। यह वही पर्वत है जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी एक अंगुली पर उठा लिया था और लोगों की रक्षा की थी। माना जाता है कि 5000 साल पहले यह पर्वत 30 हजार मीटर ऊंचा हुआ करता था। अब इसकी ऊंचाई बहुत कम हो गई है। इसके रोज घटने के पीछे भी एक रोचक कहानी है। कहा जाता है कि पुलस्त्य ऋषि के शाप के कारण यह पर्वत एक मुट्ठी रोज कम होता जा रहा है।
दो राज्यों में है यह पर्वत
इस पर्वत की प्ररिक्रमा कर लोग भगवान श्रीकृष्ण की अराधना करते हैं। इसकी परिक्रमा के दौरान 7 किमी का हिस्सा राजस्थान में आता है और बाकी का हिस्सा उत्तर प्रदेश में है। रोज घटता है श्रीकृष्ण का ये पहाड़, क्या है इसके पीछे की कहानी,
क्यों दिया था ऋषि ने पर्वत को रोज कम होने का शाप
बेहद पुरानी मान्यता है कि गिरिराजजी की सुंदरता को देख पुलस्त्य ऋषि बेहद खुश हुए। उन्होंने इन्हें द्रौणाचल पर्वत से उठाया और अपने यहां ले जाने लगे। उठाने से पहले गिरिराजजी ने कहा था कि आप मुझे जहां भी पहली बार रखेंगे मैं वहीं स्थापित हो जाउंगा। रास्ते में साधना के लिए ऋषि ने पर्वत को नीचे रख दिया। ऋषि की लाख कोशिशों के बाद भी पर्वत हिला नहीं। इसके बाद गुस्से में ऋषि ने पर्वत को शाप दिया कि वह रोज कम होगा। माना जाता है कि उसी समय से गिरिराज जी वहां हैं और कम होते जा रहे हैं। दूसरी मान्यता यह भी है कि जब रामसेतुबंध का कार्य चल रहा था तो हनुमानजी इस पर्वत को उत्तराखंड से ला रहे थे, लेकिन तभी देव वाणी हुई की सेतुबंध का कार्य पूरा हो गया है, यह सुनकर हनुमानजी इस पर्वत को ब्रज में स्थापित कर दक्षिण की ओर पुन: लौट गए।
क्यों उठाया गोवर्धन पर्वत
इस पर्वत को भगवान कृष्ण ने अपनी एक अंगुली से उठा लिया था। कारण यह था कि मथुरा, गोकुल, वृंदावन आदि के लोगों को वह घनघोर बारिश से बचाना चाहते थे। नगरवासियों ने इस पर्वत के नीचे इकठ्ठा होकर अपनी जान बचाई। यह बारिश इंद्र ने करावाई थी। लोग इंद्र से डरते थे और डर के मारे सभी इंद्र की पूजा करते थे, तभी कृष्ण ने कहा था कि आप डरना छोड़ दे...मैं हूं ना।
परिक्रमा का महत्व
इस पर्वत की परिक्रमा का लोगों में महत्व है। वल्लभ सम्प्रदाय के वैष्णवमार्गी लोग तो इसकी परिक्रमा अवश्य ही करते हैं क्योंकि वल्लभ संप्रदाय में भगवान कृष्ण के उस स्वरूप की आराधना की जाती है जिसमें उन्होंने बाएं हाथ से गोवर्धन पर्वत उठा रखा है और उनका दायां हाथ कमर पर है। इस पर्वत की परिक्रमा के लिए समूचे विश्व से कृष्णभक्त, वैष्णवजन और वल्लभ संप्रदाय के लोग आते हैं। यह पूरी परिक्रमा 7 कोस अर्थात लगभग 21 किलोमीटर है।

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