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17 सितंबर 2015

वसुंधरा राजे सिंधिया सरकार पर गंभीर आरोप

जयपुर
एक आईपीएस ऑफिसर ने राजस्थान में
वसुंधरा राजे सिंधिया सरकार पर गंभीर आरोप
लगाए हैं। अंग्रेजी अखबार इंडियन
एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक इस
आईपीएस का कहना है कि उन्होंने प्रदेश
सरकार से चौतरफा प्रेशर के बावजूद
वीएचपी और बजरंग दल के
दंगाइयों को छूट नहीं दी इसलिए
उन्हें टारगेट किया जा रहा है। बूंदी के पूर्व
एसपी पंकज चौधरी ने
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस से कहा
कि उन्हें प्रशासन की ओर से दबाव का विरोध
करने के कारण पद से हटा दिया गया। चौधरी
ने कहा कि यह प्रेशर सीनियर आईएएस
और आईपीएस ऑफिसर्स की
तरफ से भी था कि दंगाइयों को छोड़ दिया जाए
और मुस्लिमों पर फर्जी केस दर्ज किये
जाएं।
राजस्थान आर्म्ड कांस्टेब्युलरी
की 11वीं बटालियन के हेड
पंकज चौधरी सोमवार को दिल्ली
में थे। राजस्थान सरकार ने इनके खिलाफ आरोपत्र दाखिल
किया है। चौधरी पर आरोप है कि वह 12
सितंबर, 2014 को बूंदी के नैनवा और
खानपुर में दंगे को रोकने में नाकाम रहे। चौधरी
के आरोपों के बारे में राजस्थान के गृह मंत्री
गुलाब चंद कटारिया से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि सरकार
पूरे आरोपों की स्टडी के बाद
कोई प्रतिक्रिया देगी। कटारिया ने कहा कि वह
कुछ भी कहने के लिए स्वतंत्र हैं। यदि
हमें उनकी तरफ से कुछ आधिकारिक रूप से
मिलेगा तो पूरे मामले की जांच की
जाएगी।'
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक
चौधरी ने कहा कि मुझे सरकार के आरोपत्र
के जरिए प्रशासन के भीतर गद्दारों को
एक्सपोज करने का मौका मिला है। उन्होंने कहा कि दंगे यूं
ही नहीं होते, दंगे करवाये जाते
हैं। उन्होंने कहा कि यदि इन मामलों में पुलिस को स्वतंत्र
रूप से कदम उठाने दिया जाए तो कुछ भी
गलत नहीं हो पाएगा। चौधरी ने
इंडियन एक्सप्रेस से कहा, 'जब गद्दार सरकार के
ही भीतर हों तो वे अपने
स्वार्थ के लिए देश को बेच सकते हैं।
चार्जशीट के जरिए हमें मौका मिला है कि
ऑल इंडिया सर्विस में गद्दारों के नकाब उतारे जाएं।'
2009 बैच के इस ऑफिसर ने कहा कि जो
चार्जशीट से डरते हैं वे देशभक्त और इस
देश के संविधान को मानने वाले नहीं हो
सकते।
नैनवा और खानपुर में पिछले साल सितंबर में एक अफवाह
के बाद कथित तौर पर मस्जिद को नुकसान पहुंचाया गया
था। अफवाह फैलाई गई थी कि मंदिर
की मूर्तियों को अपवित्र किया गया है।
चौधरी ने कहा, 'इस मामले में जांच के दौरान
मंदिर के पुजारी से भी पूछताछ
की गई। पुलिस इस निष्कर्ष पर
पहुंची कि दंगे को साजिशन रचा गया था। सब
कुछ योजनाबद्ध था। टारगेट भी तय थे कि
कौन बस पर हमला करोगा और कौन तोड़फोड़। जल्द
ही सरकार की तरफ से इस
मामले में दबाव बनाने के लिए फोन आने लगे। यहां तक कि
सीनियर पुलिस और प्रशासनिक ऑफिसरों ने
आदेश दिया कि दंगाइयों को छोड़ दिया जाए। मेरे ऊपर दंगाइयों
को छोड़ने और निर्दोष मुस्लिमों के खिलाफ झूठे मुकदमे
दर्ज करने का जबर्दस्त दबाव था। मुस्लिमों पर
फर्जी रूप से हिंसा भड़काने का केस दर्ज
करने का प्रेशर था। लेकिन मैंने सभी दबावों
को झेला और ऐसा करने से इनकार कर दिया। इसके बाद
मुझे सरकार ने पिछले साल 21 सिततंबर को पद से हटा
दिया। जिला एसपी के तौर पर मैं पुलिस
टीम का नेतृत्व कर रहा था।
वीएचपी और बजरंग दल को
11 लोगों को अरेस्ट किया गया था। सभी के
क्रिमिनल रेकॉर्ड्स थे। 5 मुस्लिमों को पूछताछ के लिए
हिरासत में लिया गया था। यदि हम इस मामले में सक्रिय हो
कर ऐक्शन नहीं लेते तो मामला बिगड़ जाता।'
अखबार के मुताबिक चौधरी ने
चार्जशीट में मुख्य आरोप पर कहा, 'मैं दंगे
स्थल के लिए तत्काल ही निकल गया था।
मुझे वहां तक पहुंचने में तीन घंटे का वक्त
लगा था। मौके पर मौजूद पुलिसकर्मियों से मैं संपर्क मेंं था।
उस रात हमलोगों ने छह लोगों को पकड़ा था।
अगली सुबह कर्फ्यू लगा दिया गया। मुस्लिम
समुदाय के लोग मस्जिद में तोड़फोड़ से बेहद खफा थे
लेकिन उन्हें कानून पर भरोसा था। उन्होंने प्रतिक्रिया में
किसी भी तरह की
तोड़फोड़ नहीं की
थी। मुझे हटाये जाने के बाद
सभी दंगाइयों को छोड़ दिया गया। इससे
पुलिसबल का मनोबल टूटा है। जिस टीम को
मैंने लीड किया था उसके लोगों ने मुझे फोन
कर बताया कि दंगाइयों का हौसला बढ़ाया गया है। दंगाइयों ने
बाहर आने के बाद कहा कि पुलिस को हिम्मत है तो अब
हमारे खिलाफ कोई ऐक्शन लेकर दिखाए।'

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