----------------------------------
------------------------------------
वो उम्र निकल गयी, वो हाल बदल गए
जिंदगी गुज़र गयी, कई साल बदल गए...
अब नहीं आएगा वो बचपन का ज़माना
लुट चुका हो वो खिलौनों का ख़ज़ाना...
वो लड़ना झगड़ना वो शिकायतें लगाना...
वो हंसना-हँसाना, वो रोना-रुलाना......
वो दीदी की कॉपी को छुपा कर के रखना
वो भईया की पतंगों का उड़ना, वो कटना..
वो मोहल्ले के बच्चों से लड़ना-झगड़ना
वो अम्मा का चिल्लाना, वो बाबा का डपटना...
वो पड़ोसन का मम्मी को उल्हाने देना
फिर बंद हो जाता घर से बाहर जाने देना...
वो गिल्ली, वो डंडे, वो कंचे वो गुट्टे
वो बेरी, वो चूरन, वो कुल्फी, वो भुट्टे...
कभी बागीचों से वो इमली चुराना
पतंग लूटने किसी घर में घुस जाना...
मैदानों की मिट्टी में कबड्डी का खेला
मोहल्ले के नुक्कड़ पे आईसक्रीम का ठेला...
वो भागा, वो दौड़ी, वो छुपना छुपाना
वो गेंद पकड़ने को ज़मीं पे लोट जाना...
फिर मैले कुचैले कपड़ों में घर आना
माँ का चिल्लाना, डांट के नहलाना...
जब पापा की शाम को घर आमद होती
तो समझो अपनी तो पूरी शामत होती...
मम्मी सुनाती थी रो-रो के किस्सा
हाथ से निकल गया है ये बच्चा...
पता नहीं बड़ा होके क्या ये करेगा
सब्जी बेचेगा कि जूते पोलिश करेगा...
मेरी तो ये बिल्कुल सुनता नहीं है
मुझसे तो बिल्कुल सम्भलता नहीं है...
तुम तो दिन भर घर में रहते नहीं हो
मैं बताती भी हूँ तो तुम कुछ कहते नहीं हो...
तंग आ गयी हूँ बाप-बेटा दोनों से अब तो
इन्हें मतलब नहीं मेरे रोनों से अब तो...
बाबूजी फिर मंद ही मंद मुस्काते
मुझपे चिल्ल्ताते, झूठा गुस्सा दिखाते...
फिर बातें बनाते, अम्मा को मनाते
मुझे भी समझाते, उन्हें भी समझाते...
यूं ही बीत गया जो बचपन था अपना
बचा है तो बस इन आँखों में सपना...
जानता हूँ अब नहीं आयेगा वो ज़माना...
वो उम्र, वो दौर, वो बचपन सुहाना...
लिहाजा अब खुली आँखों से वो सपन ढूंढता हूँ
और अपने बच्चों में अपना बचपन ढूंढता हूँ...
अपने बच्चो में अपना बचपन ढूंढता हूँ...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)