आपका-अख्तर खान

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10 अगस्त 2015

- सियासी रहनुमा से ---


गरीबो के नगर में जब भी क़त्ले आम होता है
तुम्हारे बाजुओं में हुस्न लब पर जाम होता है
तुम्हारे ही इशारों पर चमन में आग लगती है
तुम्हारे कारनामो से बदन में आग लगती है
तुम्हें हिन्दू से हमदर्दी न मतलब है मुसलमां से
वफ़ा का दर्स गीता से लिया तुमने न कुरान से
मगर मज़हब का नाम आजाये तो नारे लगाते हो
यहाँ दैरो हरम के नाम पर झगडे कराते हो
चलाया जंगली कानून इंसानों की बस्ती में
गिरे हैं मंदिरो मस्जिद तुम्हारी सरपरस्ती में
मैं शायर हूँ जो देखूंगा वही हर बार लिखूंगा
तुम्हें गद्दार लिखा है तुम्हें गद्दार लिखूंगा

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