श्रीनगर। ये है असिया अंद्राबी। कश्मीर की इकलौती महिला
अलगाववादी। कट्टर इतनी है कि कहती है मैं कश्मीरियत या राष्ट्रवाद को नहीं
मानती। देश या तो मुस्लिम होता है या गैर मुस्लिम। असिया कश्मीर में
मलिका-ए-मौत के नाम से भी जानी जाती है। असिया को फिल्मों और इसमें काम
करने वाले लोगों से भी काफी चिढ़ है। आसिया बॉलीवुड स्टार सलमान खान को
हत्यारा बता चुकी हैं। आसिया ने कश्मीर में बड़े पैमाने पर महिलाओं को
बुर्का पहनने के लिए कैंपेन चलाया था। जो महिलाएं बिना बुर्के की दिखती
थीं, असिया और उसके संगठन के लोग उनके चेहरे पर कालिख पोत देते थे।
असिया दुख्तराने-ए-मिल्लत की संस्थापक और मुखिया है। यह संगठन बना तो
एक सामाजिक संगठन के रूप में था लेकिन अब यह एक ऐसा अलगाववादी संगठन बन
गया है, जिसमें महिलाएं जुड़ी हैं। इसका उद्देश्य रहा है कि कश्मीर को भारत
से अलग करना और इस्लामिक कानून लागू करना।
कश्मीर में सिनेमाघरों को बंद कराने के पीछे असिया का बड़ा हाथ है।
उसने 1988 से लंबा आंदोलन कर कश्मीर के सिनेमाघरों को बंद कराया था। हाल ही
में बॉलीवुड स्टार सलमान खान ने जब अपनी फिल्म बजरंगी भाईजान की शूटिंग
कश्मीर में की और वहां पर दोबारा सिनेमाहॉल खुलवाने की बात की तो असिया ने
उन्हें भी नहीं छोड़ा। असिया ने कहा कि सलमान एक कातिल हैं अौर उन्हें
कश्मीर में क्या होना चाहिए ये बताने की जरूरत नहीं है। उसका मानना है कि
भारत सरकार और बॉलीवुड कश्मीर में फिल्मों के माध्यम से संस्कृति को खराब
करने की कोशिश कर रहे हैं। अपने तालिबानी आदेशों के कारण असिया को कश्मीर
में मलिका-ए-मौत के नाम से भी जाना जाता है। वो अपने पर्स में हमेशा चाकू
रखती है और महिलाओं को भी चाकू रखने के लिए कहती है।
कश्मीर में फहराया चुकी है पाकिस्तान का झंडा
हाल ही में पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस के दिन असिया ने पाकिस्तान
का झंडा फहराया और फोन पर पाकिस्तान में एक रैली को संबोधित भी किया। माना
जाता है यह रैली जमात-उद-दावा की थी और इसमें हाफिज सईद भी शामिल हुआ था।
असिया इससे पहले इसी साल पाकिस्तान के राष्ट्रीय दिवस (23 मार्च) पर भी
पाकिस्तान का झंडा फहरा चुकी है। 2010 में भी उसे इसी हरकत के लिए जेल भेजा
गया था। वो इससे पहले भी अलगवादी गतिविधियों में कई बार जेल जा चुकी है।
1993 में तो एक बार उसका छोटा बच्चा भी 13 माह उसके साथ जेल में रहा था।
1987 में किया दुख्तराने-ए-मिल्लत का गठन
असिया ने बीएससी की है। इसके बाद उसने कश्मीर यूनिवर्सिटी से अरबी में
पोस्ट ग्रेजुएशन कोर्स किया है। वह पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए दार्जीलिंग
जाना चाहती थी लेकिन माता-पिता ने उसे वहां जाकर पढ़ाई करने की इजाजत नहीं
दी। बाद में वह जमात-ए-इस्लामी की महिला विंग से जुड़ी। 1985 में असिया ने
जमात-ए-इस्लामी को छोड़ दिया। 1987 में दुख्तराने-ए-मिल्लत का गठन किया।
इसका संगठन सबसे पहले तब चर्चा में आया जब उसने 1991 में घाटी में बड़े
पैमाने पर महिलाओं को बुर्का पहनने के लिए कैंपेन चलाया। जो महिलाएं बिना
बुर्के की दिखती थीं, असिया और उसके संगठन के लोग उनके चेहरे पर कालिख पोत
देते थे। असिया ने 1990 में आशिक हुसैन फक्तू, जिसे मोहम्मद कासिम के नाम
से भी जाना जाता है से शादी की। फक्तू भी कश्मीर में आतंकवादी रहा है। उसे
मानव अधिकार कार्यकर्ता एचएन वांछू की हत्या में संलिप्तता के कारण उम्रकैद
हुई है।
अपने मां बाप का गुस्सा ये औरत कश्मीर की सारी लड़कियों से निकाल रही है।
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