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11 अगस्त 2015

आई ड्रॉप की जगह मां ने बच्चों की आंख में डाला फेविक्विक, 18 घंटे बाद खुली आंखें

महिमा, रितिका और कालिया की आंख में मां ने दवा की जगह फेविक्विक डाल दिया था।
महिमा, रितिका और कालिया की आंख में मां ने दवा की जगह फेविक्विक डाल दिया था।
इंदौर। कई बार अनजाने में कुछ ऐसा हो जाता है जो जीवन में भूचाल ला देता है। अलीराजपुर जिले के अांबुआ में रहने वाले दिनेश के परिवार के साथ सोमवार को कुछ ऐसा ही हुआ। सुबह जब दिनेश के तीनों बच्चे जागे तो उनकी आंख ही नहीं खुली। घबराए माता-पिता इन्हें लेकर अस्पताल पहुंचे तो पता चला मां ने रात में आई ड्रॉप की जगह उनकी आंख में फेविक्विक डाल दिया था। इससे उनकी आंखें पूरी तरह चिपक गई थी। इसे मुश्किल केस मानते हुए डॉक्टर ने दाहोद के दृष्टि नेत्रालय रेफर कर दिया, जहां चार डाॅक्टरों की टीम ने 6 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद आंख खोलने में सफलता पाई। इस दौरान करीब 18 घंटे तक बच्चों की आंखें बंद रही और उनके माता-पिता की सांसे अटकी रही।

 यह है पूरा घटनाक्रम
आंबुआ के छोटा इटारा में रहने वाले दिनेश की बेटी महिमा (7), रितिका (4) और कालिया (2) की आंखों में रविवार शाम से दर्द था। तकलीफ देख मां भंगड़ीबाई, मेडिकल स्टोर से आई ड्रॉप ले आई। घर पहुंचकर वह ड्रॉप रख कुछ काम करने लगी। इतने में बच्चे के कराहने की आवाज आर्इ तो मां ने जल्दबाजी में आई ड्रॉप की जगह पास रखी फेविक्विक उठाकर तीनों बच्चों की आंख में डाल दिया। सुबह जब वह उन्हें उठाने गई तो तीनों की आंखें पूरी तरह चिपक गई थी। कुछ देर कोशिश के बाद भी जब आंख नहीं खुली तो माता-पिता उन्हें लेकर आंबुआ के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे। जहां डॉ. शुभेंद्र सिंह ने जांच के बाद उन्हें दृष्टि नेत्रालय दाहोद रेफर कर दिया।

चार डॉक्टरों ने छह घंटे की मशक्कत के बाद पाई सफलता
दृष्टि नेत्रालय की एडमिनिस्ट्रेटर डॉ. श्रेया शाह ने बताया कि इस तरह का केस उनके लिए भी पहला ही था। हॉस्पिटल के मेडिकल इंचार्ज डॉ. मेहुल शाह के मार्गदर्शन में चार डॉक्टरों की टीम ने बच्चों का इलाज शुरू किया। डॉक्टरों को सबसे ज्यादा मुश्किल बच्चों की आंख खोलने में हुई। काफी प्रयास के बाद एक बच्चे की आंख खोलकर उसकी सफाई शुरू की, ताकि आंख में जमा फेविक्विक निकाला जा सके। इसके बाद दूसरे और फिर तीसरे बच्चे के साथ भी यही प्रक्रिया अपनाई गई। डॉ. शाह के अनुसार, हमारे सामने सबसे बड़ी चुनाैती बच्चों के आंखों की रोशनी बचाना था। इसके लिए सुबह 10 बजे से इलाज शुरू हुआ जो शाम साढ़े चार बजे तक चला। करीब एक घंटे तक डॉक्टरों ने बच्चों को अपनी देखरेख में रखने के बाद छुट्टी दे दी। बच्चों की आंख पूरी तरह से ठीक होने में करीब 15 दिन का समय लगेगा।

उखड़ गए पलकों के बाल 
डॉ. शाह ने बताया कि बच्चों की आंख खोलने के दौरान उनके पलकों के बाल तक उखड़ गए। उन्होंने कहा कि महिमा की आंख में सबसे ज्यादा सावधानी बरतनी पड़ी। क्योंकि उसकी आंख में सबसे ज्यादा फेविक्विक जमा था। बच्चों का पूरा इलाज अस्पताल की तरफ से किया गया। इसके लिए अस्पताल ने उनसे कोई चार्ज नहीं लिया। अस्पताल में प्रतिवर्ष करीब 10 हजार ऑपरेशन होते हैं, जिनमें से करीब 80 प्रतिशत नि:शुल्क किए जाते हैं। इन बच्चों का इलाज भी इसी के तहत हुआ है।

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