भोपाल।
मध्य प्रदेश के व्यापमं (व्यावासायिक परीक्षा मंडल) घोटाले की जांच
मध्य प्रदेश पुलिस की क्राइम ब्रांच और एसटीएफ ने जिस तरह की, उस पर
सीबीआई नाराज बताई जा रही है। दरअसल एसटीएफ ने अपनी जांच में कई संदिग्धों
को आरोपी तक नहीं बनाया, किसी को पकड़ा तो उसे जेल से निकलने ही नहीं दिया
और किसी को जेल जाने ही नहीं दिया (यानी उनकी अग्रिम जमानत का भी विरोध
नहीं किया)। सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर पर जांच अपने हाथ में लेने वाली सीबीआई
अब उन कड़ियों को जोड़ रही है जो एसटीएफ की जांच में यूं ही छोड़ दी गई
थीं। सीबीआई जल्द ही इस मामले में मर्डर की दूसरी (नम्रता डामोर केस के
बाद) एफआईआर दर्ज करने की तैयारी में है।
व्यापमं में हुई 9 मौतों पर सीबीआई ने शुरू की प्रारंभिक जांच
इस बीच शनिवार को ईद की छुट्टी के बावजूद सीबीआई ने एसटीएफ के साथ
मैराथन बैठक के बाद व्यापमं घोटाले से जुड़े 9 लोगों की मौत पर प्रारंभिक
जांच शुरू कर दी है। सीबीआई ने इन मौतों को संदिग्ध मानते हुए जांच शुरू की
है। सीबीआई ने आनंद सिंह, आशुतोष तिवारी, ज्ञान सिंह, अनंत राम टैगोर,
रावेंद्र प्रकाश सिंह, प्रेमलता पांडे, विकास पांडे, राजेंद्र आर्य और संजय
कुमार यादव की मौत की जांच शुरू की है।
क्यों सीबीआई की नजर में शक के घेरे में है एसटीएफ की जांच
1- एसटीएफ ने तब हायर एजुकेशन मिनिस्टर रहे लक्ष्मीकांत
शर्मा, कई नेताओं और अफसरों के खिलाफ दिसंबर, 2013 में एफआईआर दर्ज की। बाद
में जब शर्मा को गिरफ्तार किया गया तो एसटीएफ ने कोर्ट में हमेशा उनकी
जमानत का विरोध किया। वह अब भी जेल में है। दूसरी ओर, मुख्यमंत्री के
तत्कालीन पीएस (पर्सनल सेक्रेटरी) प्रेम प्रसाद पर मई 2014 में एफआईआर
दर्ज हुई और अगले ही महीने उन्होंने अग्रिम जमानत ले ली। एसटीएफ ने कोर्ट
के पूछने पर कह दिया कि प्रेम के भाग जाने का डर नहीं है, इसलिए उनकी जमानत
का विरोध नहीं कर रहे। इसी तरह गुलाब किरार, उनके बेटे शक्ति सिंह और
सुधीर सिंह भदौरिया को भी एफआईआर दर्ज होने के बावजूद एसटीएफ ने अरेस्ट
नहीं किया। सीबीआई ने अब इनके खिलाफ अलग से एफआईआर दर्ज की है।
2- दूसरी ओर, 2014 में गिरफ्तार किए पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत
शर्मा सहित कई लोगों की जमानत आज तक नहीं हो सकी है। एसटीएफ ने उन्हें बेल
दिए जाने का लगातार विरोध किया।
3- एसटीएफ इसे अरबों रुपए के नकद लेनदेन वाला घोटाला बताती रही है, लेकिन टोटल रिकवरी 4 करोड़ रुपए से भी कम की हुई है।
4- इस घोटाले में एमपी के राज्यपाल रामनरेश यादव की कथित
भूमिका के बारे में एसटीएफ को नवम्बर 2013 में ही पता चल गई थी। लेकिन,
उनके खिलाफ एफआईआर 23 फरवरी, 2015 को दर्ज की गई।
5- इसी तरह राज्यपाल के बेटे शैलेश यादव के बारे में एक दलाल
वीरपाल सिंह ने 2014 में ही बता दिया था कि उसने शैलेश को 3-3 लाख रुपए
देकर भर्तियां करवाईं, फिर भी एसटीएफ ने उन्हें आरोपी नहीं बनाया। कुछ
महीने पहले शैलेश की संदिग्ध हालत में मौत हो गई।
6- सीबीआई को इस बात पर भी आपत्ति है कि एसटीएफ ने अपनी एफआईआर में एक
जगह "मंत्राणि " और दूसरी जगह "मिनिस्टर वाइफ़" क्यों लिखा है। सीबीआई इस
बात को लेकर बहुत नाराज़ है कि जांच करने वाली एमपी की सबसे बड़ी एजेंसी इतने
महीनों में ये नहीं पता कर पाई कि मंत्राणि कौन है..? या फिर एसटीएफ
जानबूझकर उसका नाम सामने नहीं लाना चाहती थी।
6- क्राइम ब्रांच ने घोटाले का मास्टरमाइंड माने जाने वाले
डॉक्टर जगदीश सागर की गिरफ़्तारी में देरी की थी। सबसे पहले मामले की जांच
करने वाली क्राइम ब्रांच (इंदौर पुलिस) ने 5 जुलाई, 2013 को तीन
स्टूडेंट्स को गिरफ्तार किया था, लेकिन डॉ. सागर की गिरफ्तारी एक हफ्ते
बाद (12 जुलाई) को हुई थी। जबकि, व्यापमं घोटाले में सबसे पहले गिरफ्तार
किए गए आरोपियों ने मास्टरमाइंड के तौर पर डॉ. सागर का नाम ले लिया था।
उनकी गिरफ्तारी में देरी और कुछ अन्य मसलों पर एसआईटी ने क्राइम ब्रांच से
जवाब तलब भी किया था। हालांकि एसआईटी के प्रमुख रहे चंद्रेश भूषण से जब
dainikbhaskar.com ने पूछा तो वह इस मामले में कुछ भी कहने से बचते रहे।
...कुछ और कमजोर कड़ियां
सीबीआई का मानना है कि एसटीएफ ने घोटाले से जुड़ी बड़ी मछलियों पर हाथ
नहीं डाला और केवल उन स्टूडेंट्स को ही पकड़ा जिन्होंने पैसे देकर
दाखिला लिए थे। यही नहीं, सीबीआई की नजर में न्रमता डामोर के अलावा विजय
पटेल के केस में भी एसटीएफ ने मामला ढंकने की कोशिश की। अब सीबीआई पटेल की
मौत के सिलसिले में भी मर्डर का केस दर्ज कराने वाली है।
क्या था विजय पटेल का मामला
विजय पटेल को पुलिस आरक्षक भर्ती परीक्षा और नापतौल नियंत्रक भर्ती
परीक्षा में घोटाले करने का आरोपी बनाया गया था। उसे एसटीएफ ने अरेस्ट तो
किया था, लेकिन उसके खिलाफ अदालत में मजबूती से पक्ष नहीं रखा गया और उसे
जमानत मिल गई।
संदिग्ध परिस्थिति में मिली थी विजय की लाश
मध्य प्रदेश निवासी विजय की भोपाल में इसी मामले में 17 अप्रैल, 2015
को पेशी थी। उसने अपने वकील से कहा था कि वह दो घंटे में कोर्ट पहुंच रहा
है, लेकिन वह कोर्ट नहीं आया और 10 दिन बाद (27 अप्रैल) विजय की लाश
छत्तीसगढ़ के कांकेर में एक भाजपा नेता के होटल में मिली थी। विजय की मौत की
जांच छत्तीसगढ़ पुलिस कर रही है।
सीबीआई से जुड़े सूत्र बताते हैं कि उसे इस बात पर हैरानी है कि उससे
पहले जांच कर रहे एसटीएफ ने विजय की मौत का कोई सिरा व्यापमं घोटाले से
नहीं जोड़ा। सीबीआई को लगता है कि विजय का मर्डर किया गया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)