"होठों पर रूठी सी
सपनो में झूठी सी
दिल में आहट सी
दिमाग में बौखलाहट सी
आँख में काजल सी
पैर में पायल सी
याद में धुंधली सी
जज्बात में घायल सी
साहित्य में संस्कार सी
परिवार में तिरस्कार सी
विज्ञान में आविष्कार सी
मंच पर पुरष्कार सी
दर्शन में वेदान्त सी
सच में सिद्धांत सी
अस्तित्व में सीमान्त सी
स्पर्श रेखा की तरह छू कर गुजर जाती है तू
इस गुजरते दौर में गुजारिश भी अब क्या करूं ?
तू सतह पर स्पर्श करती एक रेखा है
केंद्र में आती तो आती भी कैसे
जिन क्षणों में तैने छुआ था मुझे
उन क्षणों का शुक्रिया." -----राजीव चतुर्वेदी
सपनो में झूठी सी
दिल में आहट सी
दिमाग में बौखलाहट सी
आँख में काजल सी
पैर में पायल सी
याद में धुंधली सी
जज्बात में घायल सी
साहित्य में संस्कार सी
परिवार में तिरस्कार सी
विज्ञान में आविष्कार सी
मंच पर पुरष्कार सी
दर्शन में वेदान्त सी
सच में सिद्धांत सी
अस्तित्व में सीमान्त सी
स्पर्श रेखा की तरह छू कर गुजर जाती है तू
इस गुजरते दौर में गुजारिश भी अब क्या करूं ?
तू सतह पर स्पर्श करती एक रेखा है
केंद्र में आती तो आती भी कैसे
जिन क्षणों में तैने छुआ था मुझे
उन क्षणों का शुक्रिया." -----राजीव चतुर्वेदी
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