बहुत सुन्दर शब्द जो एक गुरुद्वारे के दरवाज़े पर लिखे थे :
"सेवा करनी है तो, घड़ी मत देखो !
लंगर छ्कना है तो, स्वाद मत देखो !
सत्संग सुनाना है तो, जगह मत देखो !
बिनती करनी है तो, स्वार्थ मत देखो !
समर्पण करना है तो, खर्चा मत देखो !
रहमत देखनी है तो, जरूरत मत देखो !!
यार से ऐसी यारी रख
दुःख में भागीदारी रख,
चाहे लोग कहे कुछ भी
तू तो जिम्मेदारी रख,
वक्त पड़े काम आने का
पहले अपनी बारी रख,
मुसीबते तो आएगी
पूरी अब तैयारी रख,
कामयाबी मिले ना मिले
जंग हौंसलों की जारी रख,
बोझ लगेंगे सब हल्के
मन को मत भारी रख,
मन जीता तो जग जीता
कायम अपनी खुद्दारी रख.
"सेवा करनी है तो, घड़ी मत देखो !
लंगर छ्कना है तो, स्वाद मत देखो !
सत्संग सुनाना है तो, जगह मत देखो !
बिनती करनी है तो, स्वार्थ मत देखो !
समर्पण करना है तो, खर्चा मत देखो !
रहमत देखनी है तो, जरूरत मत देखो !!
यार से ऐसी यारी रख
दुःख में भागीदारी रख,
चाहे लोग कहे कुछ भी
तू तो जिम्मेदारी रख,
वक्त पड़े काम आने का
पहले अपनी बारी रख,
मुसीबते तो आएगी
पूरी अब तैयारी रख,
कामयाबी मिले ना मिले
जंग हौंसलों की जारी रख,
बोझ लगेंगे सब हल्के
मन को मत भारी रख,
मन जीता तो जग जीता
कायम अपनी खुद्दारी रख.
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