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05 जुलाई 2015

परिवार का सवाल कुछ संभावित जवाब

जुगाळ
परिवार का सवाल
कुछ संभावित जवाब
अभी तक तो पारिवारिक मित्र के कारण बोलती बंद थी। सौ सवाल का एक जवाब! मौन। आजमाया हुआ नुस्खा। रामबाण ही मानो। दस साल खींच गए पिछले वाले। कार्यकाल के आखिरी दिनों में एक शेर। मौन श्रेष्ठ भूषणम्। आप मीडिया के सवाल टाल सकते हैं। नेताओं के संदिग्ध आचरण के सच्ची कहानियां टाइप किस्सों को मीडिया की उपज बता सकते हैं। सवाल उठाने वालों को दुनिया से उठवा सकते हैं। लेकिन परिवार के सवालों को टालना आसान नहीं। नामुमकिन। अब तक की परम्परा तो यही रही है। परिवार का फरमान पत्थर की लकीर। कौन मार्गदर्शन करेगा और कौन मंत्री बनेगा! कौन सत्ता से संगठन में आएगा और किसे संगठन से सत्ता का मजा चखने भेजा जाएगा? परिवार ही तय करता रहा है। रघुकुल रीति। परिवार के आंखें फेरते ही अच्छे-अच्छे राजनीति के परिदृश्य से गायब हो गए। बियाबान में खो गए। तो ऐसा अनुशासन है परिवार में। अुशासनहीनता मतलब अच्छेखासे करियर का अंत। तुरंत।
तो परिवार का सवाल मंत्रियों, सांसद, विधायकों और पदाधिकारियों से। सुबह-सुबह बुला लिया। कई की तो खुमारी भी नहीं उतरी होगी। अंदाज भी नहीं होगा। सत्ता वालों से सवाल? किसकी हिम्मत? लेकिन परिवार का मामला हो तो जाना पड़ता है। उद्घाटन, भाषण हो तो घंटा-दो घंटे देर से ही जाने की परंपरा है। आप किसी भी मंत्री, सांसद या विधायक के घर जाकर देख लें। साहब या तो बाथरूम में होते हैं, या पूजा में! लेकिन परिवार का बुलावा हो तो कइयों की हाजत रुक जाती है। तो फरमान आते ही पहुंच गए। जाते ही सवाल। सवाल क्या? 'मंदिर टूट रहे थे तब आप क्या कर रहे थे?' राजधानी में मेट्रो रेल के नाम पर 86 मंदिर हटा दिए, ध्वस्त कर दिए तब आखिर आप क्या कर रहे थे? मंदिर का मुद्दा कितना संवेदनशील है बताने की जरूरत नहीं। उधर अयोध्या में रामलला मंदिर के इंतजार में दशकों से तम्बू में। उन्हीं की बदौलत सारी सत्ता। सौगंध राम की खाते हैं, मंदिर वहीं बनाएंगे। रामशिलाएं। साधु-संत। कारसेवक। सभी भव्य मंदिर निर्माण के इंतजार में। इधर 86 मंदिर टूट गए। फिर भी किसी के मुंह से आह तक नहीं! जनता के विरोध को दबा दिया। पुजारियों को हिरासत में ले लिया। फिर भी कोई नहीं बोला? इतना गंभीर मामला! जनाधार का जनाजा निकलने की आशंका! फिर भी चुप? अब परिवार के सामने क्या बोलें? मजबूरी! असहाय! इस्तीफे की पेशकश! उधर परिवार वालों ने मंत्रियों-सांसद को ऊंचा-नीचा किया, इधर सीएमआर में अफसरों की खिंचाई।
ये मामला अपनी जगह। कोई रास्ता निकलेगा। निकालना पड़ेगा। मूल सवाल यह कि सत्तारूढ दल के मंत्री, सांसद और विधायक करते क्या हैं? एक जवाब तो यही कि कुछ नहीं करते। जैसे मंदिर टूटने पर चुप रहे। लोग पानी-बिजली के लिए हाय-हाय करते रहते हैं। अस्पतालों में इलाज के अभाव में मरे परिजन को रोते-पीटते घर ले जाते हैं। मास्टर नहीं हो तो स्कूलों पर ताले लगा देते हैं। चक्काजाम करते हैं। बुलडोजर के आगे लेट जाते हैं। टंकी पर चढ़ जाते हैं। कुछ जहर खा जाते हैं। पर जनप्रतिनिधि कहां बोलते! अनदेखी करते हैं। लेकिन कई काम करते भी हैं। जैसे तबादले करना। ठेके लेना या दिलवाना। मुख्यमंत्री की जयजयकार करते रहना। पारिवारिक मित्रों की मदद करना। चुनाव हों तो कार्यकर्ता की उपेक्षा कर परिवार वालों को टिकट दिलाना। अपनी सात पीढ़ियों के लिए इंतजाम कर लेना। इन्वेस्टमेंट के नाम पर सरकारी जमीन लुटा देना। हर समस्या के लिए विपक्ष को जिम्मेदार ठहराना। कुछ आप भी तो बताओ!
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