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29 जुलाई 2015

टुकड़ों में पैदा हुआ था ये क्रूर इंसान, 14 दिनों तक दी भीम को टक्कर



जयपुर।
महाभारत में ऐसे अनेक लोगों का वर्णन है जो अपने अच्छे या बुरे कर्मों की वजह से आज भी याद किए जाते हैं। जरासंध भी महाभारत का ऐसा ही एक पात्र है जो अपने खोटे कारनामों के कारण कुख्यात हो गया। उसकी मृत्यु का प्रसंग जितना भयानक है उतनी ही रोचक है उसके जन्म की कथा।1- जरासंध मगध का राजा था। वर्तमान में यह इलाका बिहार में आता है। शक्ति के बल पर उसका आतंक इतना ज्यादा बढ़ गया था कि अनेक राजाओं ने उसके सामने पराजय स्वीकार कर ली। जिन्होंने युद्ध किया वे भी हार गए। उन सबको बंदी बनाकर जरासंध ने जेल में डाल दिया था।
2- आखिरकार भगवान कृष्ण की एक योजना से उसका अंत हुआ तथा धरती से जरासंध का आतंक नष्ट हो गया। भीम ने उसका वध किया था।
3- आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि कंस और जरासंध का भी गहरा रिश्ता था। दोनों की प्रवृत्तियों में काफी समानता थी। जरासंध कंस का ससुर था। उसकी दो बेटियों की शादी कंस के साथ हुई थी।
जब कृष्णजी ने कंस का वध कर दिया तो उसने भगवान से प्रतिशोध लेने के लिए उन पर आक्रमण भी किया लेकिन सफल नहीं हुआ।
4- कंस के अलावा एक और व्यक्ति की जरासंध से निकटता थी। उसका नाम था- शिशुपाल, जिसका वध कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से किया था। शिशुपाल जरासंध का सेनापति था। वह काफी शक्तिशाली और पराक्रमी था।
5- जरासंध शिवजी का भक्त भी था। वह पूरी पृथ्वी का शासक बनना चाहता था। इसके लिए किसी ने उसे सलाह दी कि वह महादेव को सौ राजाओं के मस्तक चढ़ाए तो उसकी इच्छा जरूर पूरी होगी।
वह अमर हो जाएगा। उसे कोई नहीं हरा सकेगा। उसकी कैद में 86 राजा मौजूद थे। सिर्फ 14 राजाओं की कमी थी, लेकिन महादेव ने उसके मंसूबे पूरे नहीं होने दिए और उसका भयानक अंत हो गया।
6- जरासंध के जन्म के संबंध में भी एक रहस्यमय कथा है। कहते हैं कि मगध के राजा बृहद्रथ के दो रानियां थीं। उन्हें दोनों से ही कोई संतान नहीं थी। एक दिन राजा बृहद्रथ ऋषि चंडकौशिक के पास गए।
उनकी सेवा से प्रसन्न होकर ऋषि ने उन्हें एक फल दिया और कहा, अपनी पत्नी को ये फल खिला दो। तुम्हें संतान की प्राप्ति हो जाएगी।
7- राजा ने भूल से वह फल काटकर दोनों रानियों को खिला दिया। इसके बाद दोनाें रानियों को आधे-आधे बालक की प्राप्ति हुई। ऐसे विचित्र बालक को देखकर उसके टुकड़े बाहर फेंक दिए। उसी क्षण एक राक्षसी ने बालक के दोनों अंश देख लिए।
8- उसने दोनों टुकड़ों को जोड़ लिया। इससे वह पूर्ण शिशु बन गया। पूर्ण होने के बाद शिशु रोने लगा। उसका रुदन सुनकर राजा बृहद्रथ रानियों सहित बाहर आए। राक्षसी के मुख से सभी बातें सुनने के बाद वे बहुत प्रसन्न हुए। उस राक्षसी का नाम जरा था। अतः बालक का नामकरण जरासंध कर दिया।
9- भगवान कृष्ण ने जरासंध के अंत की भूमिका तैयार की थी। वे भीम और अर्जुन के साथ ब्राह्मण का वेश बनाकर जरासंध के महल में गए और उसे युद्ध के लिए चुनौती दी। कहते हैं कि उसने भीम के साथ कुश्ती लड़ी और कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा से 13 दिवस तक लड़ता रहा।
10- आखिरकार 14वें दिन भीम ने कृष्ण के संकेत पर उसके दो टुकड़े कर उल्टी दिशाओं में फेंक दिए। इस तरह जरासंध का आतंक हमेशा के लिए खत्म हो गया।
11- जरासंध वध के बाद कृष्ण ने उसकी कैद में मौजूद सभी राजाओं को स्वतंत्र कर दिया। वहीं भगवान ने जरासंध के बेटे सहदेव को वहां का राजा बना दिया। इस तरह भगवान ने परमार्थ के लिए यह योजना बनाई और जरासंध की क्रूर कथा का अंत हुआ।

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