दोस्तों कल शबबरात थी सभी बहनो भाइयों ने एक दिवसीय माफ़ी नामा से प्रेरित
होकर सोशल मिडिया पर जाने अनजाने में गलतियों के लिए मुआफ़ी मांगी मुझे
अजीब सा लगा ,,में शुक्र गुज़ार हूँ मेरे उस खुदा का जिसने मेरी हर तोबा
क़ुबूल की हर गलती मुआफ की ,,,में शुक्रगुज़ार हूँ मेरे खुदा का जिसने मुझे
गलतियों से ग़ीबत से बचने की सलाहियत दी ,,जिसने मुझे सिखाया के अगर किसी का
दिल दुःख जाए तो साल भर का इन्तिज़ार नहीं तुरंत अहसास होते ही मुआफ़ी मांग
लो ,,,गलती हो तुरंत तोबा कर लो ,,यह जाने अनजाने की गलती
का अलफ़ाज़ इस्लाम में नहीं है इस्लाम में एक्यूरेसी है शत प्रतिशत है गलती
हुई तुरंत माफ़ी ,,,तुरंत तोबा ,,काश मेरे भाइयों ने क्षमा वाणी से माफ़ी का
तरीका सीखने के बजाय क़ुरआन और हदीस से तोबा और मुआफ़ी का तरीका सीखा होता
जिसमे किसी पड़ोसी ,,किसी भी व्यक्ति ,इंसान ,,जानवर ,,चरिन्दे ,,परिंदे
,,पैढ़ पौधों को कोई तकलीफ न पहुंचे ऐसी हिदायत है ,,,,इस्लामिक चेहरा वोह
जिसकी किसी भी हरकत से कोई दुखी ना हो ,,लेकिन विनम्रता का मतलब कायरता भी
नहीं झूंठ ,,फरेब ,,मक्कारी से बचने के साथ साथ धर्मयुद्ध यानी सच के लिए
युद्ध ,,कोई अगर किसी दूसरे पर भी ज़ुल्म करता है ,,अन्याय अत्याचार करता है
तो उसे बचाने के लिए युद्ध प्रतीकार की हिदायत है ,,क़ुरबानी का जज़्बा
इस्लाम सिखाता है ,,,,किसी भाई से अगर सुबह विवाद हो जाए तो सूरज डूबने के
पहले उसे ढूंढ कर माफ़ी मांगने का हुक्म है ,,पुरे सालभर का तो शबबरात के
दिन लेखा जोखा होता है ,,साल भर गलतियां ,,ज़ुल्म ज़्यादतियाँ ,,बेईमानियां
,,मक्कारियां झूंठ फरेब और फिर केवल एक दिन सिर्फ एक दिन माफ़ी नामा इस्लाम
का सिद्धांत नहीं है ,,इस्लाम का सिद्धांत है अव्वल तो गलतियों से बचो और
फिर भी अगर गलती हो जाए तो तुरंत बिना किसी झिझक के अपनी भूल सुधार कर उससे
माफ़ी मांग लो ,,एक शख्स जिससे में नहीं मिला उसकी तस्वीर मेरे सामने गंदी
बताई गई मेरे दिमाग में उसके लिए बदगुमानी थी लेकिन जब हम मिले साथ उठे
बैठे तो मुझे लगा मेरे पास गलत तस्वीर पेश की गई मेने इस शख्स से सैकड़ों
बार माफ़ी मांगी और अपनी गलती इन्हे बताई इस शक्श ने मुझे माफ़ तो कर दिया
लेकिन मुझे आज भी मलाल है के बिना जाने ,,,बिना मिले मेने सभी क़ुरानी
हिदायते त्याग कर कैसे किसी शख्स के खिलाफ बदगुमानी पाली ,,,खेर दोस्तों
खुदा का शुक्र है के मुझे मेरे दूसरे सातियों की तरह सोशल मीडिया पर एक
दिवसीय माफ़ी नामे को आगे नहीं बढ़ाना पढ़ा ,,मेने फिर क़ुरआन और हदीस की रौशनी
में देखा तो में सच था माफ़ी तुरंत गलती हो तो मांग लो ,.,,तोबा तुरंत कर
लो ,,,,,अल्लाह सभी को माफ़ करने वाला है ,,,,,,,,,,,,माफ़ी दिल से हो दिखावे
के लिए नहीं क्योंकि माफ़ी कोई खेल नहीं एक प्रायश्चित है ,,पश्चाताप है
,,,,,,,,,,,,दिखावा नहीं ,,,,,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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