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11 जून 2015

बैठक। दण्ड बैठक

जुगाळ
बैठक। दण्ड बैठक। तीसरा, बारहवाँ और उठावणे की बैठक। समाज की बैठक। होली या दीपावली हो तो स्नेह मिलन। मामला गंभीर हो तो बात महा पडाव। पति-पत्नी में झगड़ा हो तो बैठक। बेटी ससुराल नहीं जा रही तो बैठक। बहू मायके से नहीं आ रही तो बैठक। रिश्ता जोड़ने के लिए बैठक। तोड़ने के लिए बैठक।
ये सामाजिक किस्म की बैठकों के कुछ विषय हैं। जितने विषय उतनी बैठकें। समाज उत्थान पर बैठक। शैक्षिक उत्थान पर बैठक। पतन पर बैठक। युवा पीढ़ी की दशा और दिशा पर बैठक। बुजुर्गों की हालत पर बैठक।
लगता है बैठकें करना हमारा सामाजिक दायित्व है। राष्ट्रीय धर्म है। या मर्ज है? जो भी हो। बैठक करनी पड़ती है। बैठक का बुलावा आए तो जाना ही पड़ता है। नहीं जाने पर असामयिक होने का ठप्पा लगने का खतरा।
सामाजिक बैठकों का अपना समाजशास्त्र होता है। किसने बुलाई। किस-किस को बुलाया। किसे नहीं बुलाया। इसे बुलाया तो वो नहीं आएगा। वो नहीं आया तो मजा नही आएगा। स्टेटस देखना पड़ता है। विषय देखा जाता है। समय की अहमियत भी होती है। सुबह या दोपहर की बैठकों में जाना कम ही लोग पसंद करते हैं। ऐसी बैठक में चाय-नाश्ते से ज्यादा की उम्मीद नहीं होती। शाम को होने वाली बैठकों की बात अलग। कुछ खास इंतजाम की उम्मीद रहती है। बैठक की सफलता ऐसे इंतजाम पर निर्भर करती है। या खुद मूड बनाकर जा सकते हैं। मूड ठीकठाक हो तो चिंतन भी स्तरीय होता है। कई लोग मूड बनाने बैठकों में जाते हैं। कई इसलिए नहीं जाते की इंतजाम नहीं था। समझदार लोग पहले ही पता कर लेते हैं। वैसे समझदार आयोजक निमंत्रण के साथ ही संकेत दे देता है।
अथिकांश बैठकों का नतीजा अधिकतर एक जैसा होता है। सभी इस बात पर एकमत होकर उठते हैं कि बैठक अच्छी रही। चर्चा सारगर्भित थी। आयोजन सफल रहा। इंतजाम अच्छा हो तो लगे हाथ यह भी पूछ लिया जाता है कि अगली बैठक कब? बल्कि कुछ लोग तो आयोजक से तारीख तय कराके ही उठते हैं।
कभी-कभार बैठकों मे बात जुबानी जमा खर्च से आगे बढ़ जाती है। आपस में मारपीट। कपड़े फाड़ना। मुंह काला कर देना। आयोजक को या अतिथि को ही ठोक देना।
राजनीतिक बैठकें इसी बिंदु पर समाप्त होती हैं। यही चरमोत्कर्ष होता है।
ऐसी घटनाएं होने पर ही बैठक होने का पता चलता है। लेकिन पीटने वाला या पिटने वाला कभी स्वीकार नहीं करता कि बैठक में चर्चा के अलावा और भी कुछ हुआ। कोई पूछे तो उल्टा सवाल यह कि किसने कहा?
सरकारी बैठकें कुछ अलग होती हैं। मीटिंग। जिला स्तरीय। संभाग स्तरीय। राज्य या केंद्र स्तरीय। सचिव या मंत्री स्तरीय। मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री स्तर की। डिपार्टमेंट की। केबिनेट की। मंत्रिमंडल की। मंत्रियों के समूह की। निवेशकों के साथ। दलालों के साथ। ठेकेदारों के साथ। जनता की भलाई के नाम पर। खुद के भले के लिए। मीडिया के लिए। फीडबेक के लिए। लक्ष्य निर्धारण के लिए। उपलब्धियां बताने के लिए। धूल झोंकने के लिए। विरोधियों को लताड़ने के लिए। अनंत। अंतहीन।
मीटिंग-सिटिंग और सेटिंग। इनसे ही देश की तरक्की हो रही है। ये सब किसके लिए। आपके लिए। आम जनता के लिए।

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