आपका-अख्तर खान

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11 जून 2015

रिपोर्टर हूँ मैं.....

~~~.
जी हां, एक रिपोर्टर हूं मैं...
बेसाख्ता दौड़ता हूं, आपके अधिकारों
की रक्षा के लिये ।।
जज्ब कर लेता हूँ ,कमजोरों का दर्द ,
और टकरा जा ता हूँ ताकतवर
दीवारों से।।
खो देता हूँ अपना अमन चैन ,
और कर लेता हूँ ,अपना खाना खराब ।।
करता रहता हूं नित नयी कोशिशें,
जिससे मिल सके आपको इन्साफ ।।
बैचेन रहता हूं मैं,
आपके अधिकारों के लिये ।।
वो क्या समझ पायेंगे मुझे...
जो हर वक्त लगे रहते हैं,
बदकारियों में ।।
तल्ख़ होती हैं नज़रें,
कभी पुलिस तो कभी अपराधियों
की।
देते हैं धमकियां भी देख लेने की,
रहता हूं फिर भी,
बेलौस मुस्कराता।
हारता नही हूं,
हार जाते हैं भ्रष्ट अधिकारी।
इधर पल पल दरकता रहता हूं मैं...
छोटे-छोटे टुकड़ों में ।
भर जाता है, मेरा सीना,
अन्याय और बदी के लावे से।
तडप उठता हूं, बेइन्तहा दर्द से,
और सहम जाता है, मेरा परिवार,
किसी धमकी की सुगबुगाहट पर।
और मैं...
रोता हूं खून के आंसू,
हर एक नाइंसाफी पर।
जी हां, रिपोर्टर हूं मैं।
क़लम का सिपाही...
हर रोज, लड़ता हूं ;
नाइन्साफी के खिलाफ जंग ,
समाज के लिये...
ताकि सलामत रहें आपके अधिकार।
जीवित रहे सच्चाई...
जी हां... रिपोर्टर हूँ मै
**एक पत्रकार का दर्द**

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