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18 मई 2015

मिटटी मेरे शहर की

इस पुल के जरिये उठी जारही है मिटटी मेरे शहर की
याद ही याद रह गई है उस सुहानी बनासे सहर की
बेरंग होती जारही है कुदरत मेरे शहर की
रुका पानी खुदी नदिया टूटे पहाड़ मेरे शहर के
खोये हुए सोये हुए बाशिंदे है मेरे शहर के
यह शहर रहा था केअदाबे गुलशन था चमन का
नवाब थे या नवाबी नगरी थी यहां
बनास थी के खरबूजा मंडी थी यहाँ
मोहब्बत थी खरबूजे की खुसबू थी यहां
चमन में किस तरह की नवाबी रौनक थी यहां
इसके दबे खजाने यु बर्बाद हो रहे है
गफलत में यु इस के बाशिंदे सोरहे है

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