तुमने नहीं देखा तुमने नहीं देखा खुद को
मेरी हाथ की लकीरों में
शायद इसी मुगालते में
हर बार तुम इंकार करते हो
हर बार इंकार के साथ मिलते हो ,,,अख्तर
मेरी हाथ की लकीरों में
शायद इसी मुगालते में
हर बार तुम इंकार करते हो
हर बार इंकार के साथ मिलते हो ,,,अख्तर
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