मुंबई में क़ानून ने अपना काम क्या ,,,जैसे आरोपियों को संदेह से पर मामले
नहीं होने पर हम रोज़ बरी कराते है ,,वैसे आरोपियों को मुंबई की अदालत ने
सेलब्रेटरी होने पर भी साक्ष्य को आधार मानकर सज़ा दी वोह भी इन्साफ था
,,लेकिन तुरत फुरत में हाईकोर्ट ने जिस तरह से अपील में अंतरिम ज़मानत देकर
राहत दी वोह एक महाइंसाफ था ,,अगर देश भर में इसी तरह की तात्कालिक क़ानून
व्यवस्था हाईकोर्ट में सज़ायाफ्ता मुल्ज़िम के लिए लागू हो जाए तो कई
निर्दोषो को इन्साफ भी मिलेगा और क़ानून के प्रति विशवास भी ,,अभी निचली
अदालत से सज़ा हो जेल जाओ और फिर अपील में नंबर आने तक जले रहो फिर चाहे मूल
अपील में बरी हो जाओ तो अभियुक्त के जेल के दिनों का मुआवज़ा किया
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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