आपका-अख्तर खान

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25 फ़रवरी 2015

मेरी मोत,,,

मेरी मोत की पेशनगोई
तुम्हे पता थी फिर भी
तुमने इसे झूंठ समझा था
आज अधूरे ख़्वाब
अधूरी ख्वाहिशों के साथ
मुझे क़ब्र में सुलाया जा रहा है
कितनी ही पत्थर हो तुम
लेकिन फिर भी
नक़ाब तुम्हारा आंसुओं से
भीगा जा रहा है ,,,,,,
काश के तुम ने
मेरी मोत की पेंशनगई सच माना होता
शायद में
तुमसे मिलने
तुम्हारे प्यार की हसरत लिए
यूँ ही आधा अधूरा मरा नही होता ,,
रूह मेरी जिस्म से निकल तो गई
लेकिन में देखो
तुम्हारे लिए तुम्हारे खातिर
मेरी रूह को छुड़ा लाया हूँ ,,अख्तर

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