दिल के टूट जाने पर भी हँसना,
शायद "जिन्दादिली" इसी को कहते हैं।
ठोकर लगने पर भी मंजिल के लिए भटकना,
शायद "तलाश" इसी को कहते हैं।
शायद "जिन्दादिली" इसी को कहते हैं।
ठोकर लगने पर भी मंजिल के लिए भटकना,
शायद "तलाश" इसी को कहते हैं।
सूने खंडहर में भी बिना तेल के दिये जलाना,
शायद "उम्मीद" इसी को कहते हैं।
टूट कर चाहने पर भी उसे न पा सकना,
शायद "चाहत" इसी को कहते हैं।
गिरकर भी फिर से खडे हो जाना,
शायद "हिम्मत" इसी को कहते हैं।
उम्मीद, तलाश, चाहत और हिम्मत,
शायद "जिन्दगी" इसी को कहते हैं..
शायद "उम्मीद" इसी को कहते हैं।
टूट कर चाहने पर भी उसे न पा सकना,
शायद "चाहत" इसी को कहते हैं।
गिरकर भी फिर से खडे हो जाना,
शायद "हिम्मत" इसी को कहते हैं।
उम्मीद, तलाश, चाहत और हिम्मत,
शायद "जिन्दगी" इसी को कहते हैं..
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