आपका-अख्तर खान

हमें चाहने वाले मित्र

23 फ़रवरी 2015

"जिन्दादिली" इसी को कहते हैं।

दिल के टूट जाने पर भी हँसना,
शायद "जिन्दादिली" इसी को कहते हैं।
ठोकर लगने पर भी मंजिल के लिए भटकना,
शायद "तलाश" इसी को कहते हैं।
सूने खंडहर में भी बिना तेल के दिये जलाना,
शायद "उम्मीद" इसी को कहते हैं।
टूट कर चाहने पर भी उसे न पा सकना,
शायद "चाहत" इसी को कहते हैं।
गिरकर भी फिर से खडे हो जाना,
शायद "हिम्मत" इसी को कहते हैं।
उम्मीद, तलाश, चाहत और हिम्मत,
शायद "जिन्दगी" इसी को कहते हैं..

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...